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सोमवार, 30 मई 2016

पाकिस्तानी संसद में पत्नी की पिटाई संबंधी विधेयक (विमर्श)


Alpana Verma की फ़ोटो.


श्री अनूप शुक्ल:

          इधर भारत में कुछ महिलाओं द्वारा यौन सम्बन्धों में आजादी की बात चल रही है उधर पाकिस्तान में पत्नी द्वारा शारीरिक संबंध के लिए मना करने पर पिटाई की आजादी मांगी जा रही है।पाकिस्तान में प्रस्तावित विधेयक में यह कहा गया है कि यदि पत्नी पति की बात नहीँ मानती, उसकी इच्छा के मुताबिक कपडे नहीं पहनतीं और शारीरिक संबन्ध बनाने को तैयार नहीं होती तो पति को अपनी पत्नी की थोड़ी सी पिटाई की इजाजत मिलनी चाहिए।यदि कोई महिला हिजाब नहीं पहनती है, अजनबियों के साथ बात करती है, तेज आवाज में बोलती है और अपने पति की सहमति के बगैर लोगों की वित्तीय मदद करती है तो उसकी पिटाई करने की भी आजादी मिलनी चाहिए।
        हालांकि हाजी मोहम्मद सलीम का कहना है कि यह अव्यवहारिक है पर कुछ लोग तो यह मांग कर ही रहे हैं।
        हिंदुस्तान में इधर कुछ महिलाएं 'फ्री सेक्स' की बात कर रही हैं वहीँ पाकिस्तान में कुछ पुरुष 'थोड़ी पिटाई' की इजाजत मांग रहे हैं। कितनी विविधता है मांगों में। क्या पता पाकिस्तान में विधेयक पारित होने पर कुछ 'हिंदुस्तानी मर्दों' के मन पाकिस्तान जाने के लिए मचलने लगें।
        अब अगर हम पूछने लगें कि क्या दोनों देशों की आजादी में नेहरू और जिन्ना का अंतर है तो क्या यह पोस्ट राजनैतिक हो जायेगी?अगर हाँ तो भैया हम नहीं पूछ रहे कुछ ऐसा। फिर तो सिर्फ यही कहेंगे -'भारतमाता की जय, वन्देमातरम, इंकलाब जिंदाबाद।'


मेरी प्रतिक्रिया:

          जिन भारतीय महिलाओं के संदर्भ में यह बात कही जा रही है उनकी संख्या नगण्य है और महज एक शोशेबाजी है जबकि पाकिस्तान में इस प्रकार की मांग महिलाओं पर पुरुषों का नियंत्रण बनाए रखने की इच्छा के कारण है। दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है क्योंकि भारत में जिस मांग की बात कही जा रही है, सभी जानते हैं कि वह शोशेबाजी है इसलिए कोई उसे गंभीरता से नहीं लेता,यदि यहाँ महिलाएँ मुखर होती हैं तो भी हम उसके लिए मानसिक रूप से तैयार हैं। यही कारण है कि पत्नियों को लेकर सबसे ज्यादा जोक बनते हैं जो सोशल मीडिया पर चलते रहते हैं। वास्तविकता यह है कि हमें अपनी पत्नियों से कोई भय नहीं लगता इसलिए हम उनकी माँगों को हँसी में टाल जाते हैं। पर पाकिस्तान में समस्या वास्तविक है। वहाँ मुखर महिलाओं से पुरुष वास्तविक रूप में भयभीत हैं। इसलिए वे महिलाओं की पिटाई रूपी शस्त्र या सुरक्षा कवच की माँग कर रहे हैं। यह अंतर लोकतांत्रिक और सामंतवादी समाज के अंतर का है। लोकतंत्र में कोई किसी से भयभीत नहीं होता पर सामंती समाज में अधिकारप्राप्त वर्ग सदैव दूसरों की तनिक भी आजादी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं होता क्योंकि उसे अपने अधिकारों के छिन जाने का और अपने जमीन पर आ जाने का भय सताता रहता है। आजादी के पहले के भारत में कांग्रेस की स्थापना समाज के संभ्रांत वर्ग द्वारा की गई थी पर लोकतांत्रिक प्रभाव से वह आम लोगों की कांग्रेस बन गई ।मुस्लिम लीग की स्थापना नवाबी और जमीनदार तबके द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रतिक्रिया स्वरूप धर्म की आड़ में सामंती अधिकारों की रक्षा के लिए की गई थी। सन 1940 के बाद मुस्लिम अधिकारों की रक्षा के नाम पर पहली बार मुस्लिम लीग को मुसलमानों के एक बड़े हिस्से को अपने साथ जोड़ने का मौका मिला पर मुस्लिम लीग का स्वरूप सामंती ही रहा वह लोकतांत्रिक नहीं हो पाया। इस कारण भिन्न वातावरण में, सत्ता में आने वाले दलों की भिन्न पृष्ठभूमि के साथ आजाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान का जन्म हुआ। परिणामस्वरूप एक कुलोद्भव होने के बावजूद भारत और पाकिस्तान के डी एन ए में फर्क आ गया और यह आगे भी बना रहने वाला है।











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