hamarivani.com

www.hamarivani.com

सोमवार, 14 मार्च 2016

संविधानसभा द्वारा हिन्दी सर्वसम्मति से राजभाषा चुनी गई थी (आलेख)

 ~ संविधानसभा द्वारा हिन्दी सर्वसम्मति से राजभाषा चुनी गई थी (आलेख) ~
         हिन्दी को लेकर एक प्रकार की भ्रांति  फैली हुई है कि संविधानसभा में हिन्दी मात्र 1 वोट के बहुमत से राजभाषा चुनी गई जबकि तथ्य यह है कि हिन्दी सर्वसम्मति से राजभाषा चुनी गई थी। हिन्दी के राजभाषा बनने की संवैधानिक पृष्ठभूमि और संविधानसभा द्वारा राजभाषा के प्रश्न को कैसे हल किया गया नीचे इसकी चर्चा की गई है।
        सन 1946 में संविधान सभा की प्रथम बैठक के समय अधिकांश प्रमुख नेता हिन्दुस्तानी को राजभाषा बनाए जाने के पक्ष में थे। उस समय तक यह स्पष्ट नहीं था कि पाकिस्तान बनेगा या नहीं। विभाजन को रोकने के प्रयास चल रहे थे।
          14 जुलाई, 1947 को संविधानसभा की चौथी बैठक हुई। इस समय तक यह स्पष्ट हो चुका था कि पाकिस्तान बनने जा रहा है। इसलिए सेठ गोविंददास और पी डी टंडन जैसे संविधान सभा सदस्य और उनके समर्थक जो अब तक देश की एकता को ध्यान में रखते हुए हिन्दुस्तानी का समर्थन कर रहे थे खुलकर हिन्दी के पक्ष में आ गए। इस बारे में जब समझौते के प्रयास असफल हो गए तो मतदान कराया गया। हिन्दुस्तानी के समर्थकों को गहरा धक्का लगा क्योंकि 63 वोट हिन्दी के पक्ष में पड़े जबकि 32 वोट हिन्दुस्तानी के पक्ष में पड़े। लिपि के लिए भी मतदान कराया गया जिसमें 63 वोट देवनागरी के पक्ष में पड़े और 18 वोट इसके खिलाफ पडे( संदर्भ : हिन्दुस्तान टाइम्स 17 जुलाई 1947) । सरदार पटेल को मत विभाजन की स्थिति को देखते हुए लगा कि यदि इस समय भाषा के मुद्दे को महत्व दिया जाता है तो इससे अन्य मुद्दों पर भी असर पड़ेगा। इसलिए उनके सुझाव पर इस मुद्दे पर विचार टाल दिया गया। सेठ गोविन्द दास ने इसकी आलोचना भी की ( संदर्भ- सेठ गोविन्द दास: आत्म निरीक्षण,भाग 3 पृ.121)।
          5 अगस्त 1949 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने इस आशय का एक प्रस्ताव पास किया कि अखिल भारतीय उद्देश्य के लिए एक राजभाषा होगी जिसमें संघ के कार्य संपादित किए जाएंगे।हिन्दी के समर्थकों को इससे बड़ी निराशा हुई। सेठ गोविन्ददास ने दिल्ली में 6-7 अगस्त 1949 को एक राष्ट्रभाषा सम्मेलन आयोजित किया जिसमें विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्यकार शामिल हुए। इस सम्मेलन में माँग की गई कि देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली संस्कृतनिष्ठ हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया जाए।
          पूरे अगस्त माह के दौरान इस बात के प्रयास किए गए कि राजभाषा के प्रश्न पर मतैक्य बन जाए। प्रमुख मतभेद लिपि के प्रश्न पर था क्योंकि कुछ लोग अरबी लिपि को और कुछ लोग रोमन लिपि को अपनाने का भी सुझाव दे रहे थे।बहुमत हिन्दी के पक्ष में था फिर भी कुछ लोग अभी भी राष्ट्रीय एकता के परिप्रेक्ष्य में हिन्दुस्तानी के पक्षधर थे ( संदर्भ- कानस्टीट्यूशनल असेम्बली रिपोर्ट वोल्यूम 7,पृ 321)। 16 अगस्त 1949 को डा राजेन्द्र प्रसाद ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी का समर्थन किया ।परन्तु उनका कहना था कि हिन्दी को अन्य भारतीय एवं विदेशी भाषाओं के शब्दों को भी ग्रहण करना चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि कुछ समय तक जो लोग चाहें उन्हें उर्दू लिपि का प्रयोग करने की भी अनुमति दी जाए ( संदर्भ- हिन्दुस्तान टाइम्स, 21 अगस्त 1949)। हिन्दी समर्थक समूह अंकों के लिए देवनागरी लिपि के मामले पर अडिग था। 16 अगस्त को कांग्रेस के संविधान सभा के सदस्यों की बैठक हुई जिसमें अंकों की लिपि के प्रश्न पर मतदान हुआ। 75 मत अंकों की देवनागरी लिपि के पक्ष में पड़े तथा 74 मत अंकों के अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप के पक्ष में पडे। 
         डा के एम मुंशी, गोपालास्वामी आयंगार तथा डा श्यामाप्रसाद मुखर्जी को भाषा के प्रश्न पर सर्वसहमति बनाने की जिम्मेदारी दी गई। 2 सितम्बर 1949 को संविधानसभा के कांग्रेस सदस्यों की बैठक हुई जिसमें मुंशी- आयंगार फार्मूला प्रस्तुत किया गया। पर सभा में सहमति नहीं बन पाई,वोटिंग हुई और 77-77 से मामला टाई पर अटक गया। अतः कांग्रेस के सदस्यों को संविधान सभा में अपने विवेकानुसार मतदान की छूट दी गई।
          12 सितंबर 1949 को भाषा के प्रश्न पर विचार करने के लिए संविधानसभा की बैठक हुई। सभा के अध्यक्षता के तौर पर डा राजेन्द्र प्रसाद ने सभी से संयम बरतने और किसी को आहत न करने की अपील की। सभा में हिन्दी को राजभाषा के रूप में अपनाए जाने के पक्ष में आम सहमति बन गई। मुंशी- आयंगार फार्मूले के अनुसार निम्नलिखित प्रस्ताव रखा गया- हम इस बात के पक्ष में हैं कि भारत के संविधान में व्यवस्था की जाए कि राजभाषा और राजभाषा की लिपि क्रमशः हिन्दी और देवनागरी होंगी। हिन्दी को एकदम अपनाने में व्यावहारिक कठिनाइयों को देखते हुए अंग्रेजी का प्रयोग अगले 15 वर्षों तक जारी रखने की बात कही गई। प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि अंकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप का प्रयोग किया जाए। पर अंकों की लिपि और अंग्रेजी को जारी रहने के लिए कितना समय दिया जाए इस पर सहमति नहीं बन पाई क्योंकि सेठ गोविन्ददास ने इन प्रावधानों का कड़ा विरोध किया। तीन दिनों तक बहस चलती रही पर समझौते का रास्ता नहीं निकल पा रहा था। 14 सितम्बर 1949 को 1 बजे अप. सभा 5 बजे अप. तक के लिए एडजार्न कर दी गई। 3 बजे अप. संविधानसभा के कांग्रेस सदस्यों की बैठक रखी गईं। इस बैठक में सायं 5 बजे के ठीक पहले आम सहमति बन गई। सायं 5 बजे जब संविधानसभा की पुनः बैठक आरंभ हुई तो अध्यक्ष डा राजेन्द्र प्रसाद को इसकी सूचना दे दी गईं।
          सायं 6 बजे डा के एम मुंशी ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें सेठ गोविन्ददास और उनके समर्थकों की आपत्तियों को समायोजित करने का प्रयास किया गया। तद्नुसार यह भी जोड़ा गया कि लोकसभा 15 वर्षों के बाद देवनागरी अंकों के प्रयोग को विधि द्वारा अधिकृत कर सकती है। राष्ट्रपति की अनुमति से क्षेत्रीय और उच्च न्यायालयों में हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग किया जा सकेगा । बिल आदि के लिए राज्य अपनी भाषा का प्रयोग कर सकेंगे और साथ ही संविधान के आठवें अनुच्छेद में संस्कृत को जोड़ा गया। संविधान सभा ने इस प्रस्ताव को पारित कर दिया। सभा के अध्यक्ष डा राजेन्द्र प्रसाद ने सभी को बधाई देते हुए कहा- आज यह पहली बार हो रहा है कि हमारा अपना एक संविधान है, अपने संविधान में हम एक भाषा का उपबंध कर रहे हैं जो संघ के प्रशासन की भाषा होगी।
           एक वोट से हिन्दी के राजभाषा बनने की जो बात कही जाती है उसके मूल में अंकों के स्वरूप पर हुआ मतदान है जिसमें हिन्दी स्वरूप 1 मत से विजयी रहा था। डा सुनीति कुमार चाटुर्ज्या, डा अम्बेडकर तथा सेठ गोविन्ददास ने भी 1 वोट से हिन्दी के राजभाषा बनने की बात कही है ।इस बारे में सुधाकर द्विवेदी जो राजभाषा विभाग के संस्थापकों में हैं ,का कथन द्रष्टव्य है-The above gentlemen obviously refer to the voting that had taken place on 26 August 1949 on the question of numerals. The question of official language had been settled in July 1947 itself when there was overwhelming support for adopting Hindi as the Official Ianguage of the Union.(संदर्भ- सुधाकर द्विवेदी: हिन्दी आन ट्रायल, पृ 23) ग्रैनविल आस्टिन ने लिखा है- "Ambedkar and Govind Das have confused the facts or have interpreted the one vote majority for Nagari Numerals, if such there was,as victory for Hindi"(संदर्भ- ग्रैनविल आस्टिन: दि इंडियन कानस्टीट्यूशन, कार्नर स्टोन आफ ए नेशन,पृ 300)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें