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रविवार, 3 जनवरी 2016

मेरे दादाजी की पसंद का फिल्मी गीत

                            
                      
                                              मेरे दादाजी की पसंद का फिल्मी गीत  

          " झिलमिल सितारों का आँगन होगा" इस फिल्मी गीत के साथ मेरी एक याद जुडी हुई है। मेरी तब नौ वर्ष की उम्र थी और मैं अपने सबसे छोटे मामा की शादी में बारात गया हुआ था। मेरे सबसे बडे ताऊ जिन्हें मैं दादाजी कहता था, भी इस शादी में गए हुए थे । वे स्वामी करपात्रीजी के शिष्य थे और वस्तुत: वे उनके एकमात्र गृहस्थ शिष्य थे । स्वामी करपात्रीजी के शेष सभी शिष्य सन्यासी एवं ब्रह्मचारी थे। दादाजी काश्मीरियों जैसे गौरवर्ण के थे और घनी सफेद दाढी-मूँछे रखे हुए थे। सन्यास लेने से पूर्व वे काली टोपी लगाया करते थे । दादाजी ने रेलवे की नौकरी से समयपूर्व सेवानिवृत्ति ले ली थी। उनकी जीवनचर्या का अधिकांश समय पूजा -पाठ में व्यतीत हुआ करता था ।
         मेरे पितामह का देहावसान हो जाने के बाद दादाजी ने दो छोटी बहनों और भाइयों को पढाने-लिखाने से लेकर उनके शादी- विवाह तक की जिम्मेदारी निभाई थी तथा घर में बडे भाई होते हुए भी उनका स्थान पिता के जैसा था। मेरे दादाजी बडे ही अनुशासनप्रिय थे तथा घर में उनके आगे लोग दबी सहमी आवाज में ही बात किया करते थे। मेरे घर में सिनेमा देखना या उसकी बात करना भी एक प्रकार की गुस्ताखी समझी जाती थी। पर मेरा दादाजी से परिचय एक बच्चे के तौर पर था, इस कारण मेरे मन में उन्हें लेकर किसी प्रकार के भय आदि की भावना नहीं थी जैसाकि मैं घर में और लोगों के साथ पाता था। मैं बचपन से उनसे बालसुलभ ढंग से बातें किया करता था तथा वे भी मुझसे स्नेहपूर्वक बातें करते थे।
         मेरे दादाजी को मामाजी की शादी में वी.आई.पी. का ट्रीटमेंट देते हुए एक अलग गाडी में ले जाया गया था। मैं एक दूसरे वाहन में अपने बडे मामा के साथ गया था। बारात जब वधूपक्ष के द्वार पर पहुँच गई और नियत कार्यक्रम आरंभ हो गए तब मैं अपने दादाजी के पास पहुँच गया और उनसे बातें करने लगा। थोडी देर में वहाँ वह ड्राइवर आ गया जो उन्हें लेकर आया था। वह भी दादाजी के साथ बात करने लगा। उसने दादाजी से पूछा कि क्या उनके रुकने की ठीक व्यवस्था हो गई। वस्तुत: दादाजी खाने आदि में बहुत ही परहेज किया करते थे और अगर घर से बाहर हों तो जहाँ भी हों, यदि विश्वसनीय रूप में उनके अनुसार खाने की व्यवस्था हो जाए तो ठीक अन्यथा अपना खाना खुद बनाते थे। इसी तरह उनके पूजा - तपस्या के कार्यक्रम में कोई बाधा न आए, इसलिए कहीं भी हों एक अलग कमरे में रहा करते थे। ड्राइवर शायद उसी संबंध में पूछ रहा था। दादाजी ने उसे आश्वस्त किया कि उनके रुकने की उचित व्यवस्था हो गई है। वहाँ फिल्मी गीत बज रहे थे। कुछ देर के बाद यह गीत -' झिलमिल सितारों का आँगन होगा' बजने लगा। ड्राइवर बात करना बंद कर यह गीत गुनगुनाने लगा। जब गीत समाप्त हो गया तो उसने दादाजी से कहा- बाबाजी मुझे यह गाना बहुत ही पसंद है। इस पर दादाजी ने भी इस गीत की प्रशंसा की और कहा कि इसके भाव बडे सुंदर हैं तथा उन्हें भी यह गीत पसंद है। खैर मैं अब स्वयं को भाग्यशाली समझता हूँ कि शायद मैं ही घर में एकमात्र हूँ जिसे यह मालूम है कि दादाजी को कोई फिल्मी गीत भी पसंद था। कभी-कभी मैं भी इस गीत को गुनगुना लेता हूँ और जब कोई इस पर टिप्पणी करता है तो मैं कहता हूँ कि यह मेरे दादाजी का मनपसंद गीत है।

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