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रविवार, 27 दिसंबर 2015

~-बिछुडना पिता से (कविता) -~

~-  बिछुडना पिता से -~
(एक वर्ष पूर्व लिखी गई कविता )

एक खोया हुआ सामान ढूँढते-ढूँढते
तमाम वस्तुओं को उलटते-पुलटते
मिल गया मुझे वर्षों पुराना एक राशनकार्ड
कुछ फोटोग्राफ, पेंशन के कुछ कागजात
मन दुःख और विषाद से भर गया
फोटोग्राफ से झाँक रहे थे दिवंगत पिता
पेंशन के कागजातों में उनका नाम था
तेरह वर्ष पूर्व मैंने उन्हें खो दिया था
दिल का एक कोना खाली हो गया था
आज तक कुछ भी न उसे भर सका था

स्मृतियाँ पुरानी कौंध आईं
जब झटका सा लगा था
आपके पिता अधिकतम जिएंगे छः माह
भविष्यवक्ता सदृश डा पटेल ने कहा था
कैंसर के भयंकर रूप के
वे शिकार हैं
दशा ऐसी विकट है कि
कुछ भी कहना बेकार है

घर आनेे पर साढ़े तीन वर्षीय पुत्र
मेरी गोद में चढ़ गया
उसने कुछ कहा
जिससे वज्रपात सा हुआ
बोला आज मैंने देखा है
बाबा के पापा को
वहीं खड़े थे और उन्होंने
चूमा मेरे माथे को
मेरी स्थिति ऐसी थी
जिसे काटो तो खून नहीं
क्या यहाँ सब कुछ
विज्ञान की परिधि में नहीं
पिता को स्वास्थ्य संबन्धी
थी कुछ शिकायत
पर उनसे बिछड़ने मात्र की
कल्पना थी मेरे लिए हृदयविदारक

नियति के क्रूर हाथों को
अगले पाँच महीने तक मैं देखता रहा
जिनसे वह मेरे पिता को छीनती रही
और मैं बेबस-अबस देखता रहा
अंततः बीस फरवरी दो हजार एक के दिन
मैंने उन्हें खो दिया
पर मुझे यह सोच कर
हृदय में संतोष मिला
स्थाई बन गए कष्टों से आखिर
उन्हें छुटकारा मिला

पाँच महीनों की परीक्षा भरी
उस अवधि के दौरान
हुआ मुझे दुनिया की अच्छाइयों
और अच्छे लोगों का ज्ञान
मित्र और परिचित
 जो हौसला बँधाते रहे
अपना कीमती समय दे
 मेरे पास आते रहे
कार्यालय के साथी
जो खून देने आगे आए
डा चिटणीस जिन्होंने चिकित्सक से
दार्शनिक बन दिलासा दी
मेरे श्याले जिन्होंने सात समंदर पार से
मुझे सही चिकित्सकीय सलाह दी
मेरी बहन के घर के लोग
जिन्होंने समय-समय पर व्यवस्थाएँ कीं
मेरे मित्र जिन्होंने अर्थ की आवश्यकता होने पर
निःसंकोच बताने के लिए कहा
वे लोग जो अलग-अलग प्रांतों के थे
पर मेरे पिता को आगे आकर कंधा दिया
उन सबके प्रति मैं सदैव
कृतज्ञता से भरा रहता हूँ
ऐसे अच्छे लोगों से दुनिया आबाद रहे
यही कामना करता हूँ
- संजय त्रिपाठी


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