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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

अकादमी पुरस्कार वापस करना कितना प्रासंगिक ?

                                      अकादमी पुरस्कार वापस करना कितना प्रासंगिक ?
          नयनतारा सहगल के पुरस्कार वापस करने के बाद से साहित्य अकादमी पुरस्कारों को वापस करने की होड़ लगी हुई है और अब तक 25 साहित्यकार पुरस्कार वापस कर चुके हैं। कल मैंने अकादमी पुरस्कार वापस करने के संबन्ध में मुनव्वर राणा और असगर वजाहत साहब के विचार पढ़े थे कि वे ऐसा करने वालों की इज्जत करते हुए भी इस उपाय के प्रभावी होने में विश्वास नहीं करते हैं । अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी साहित्यकार मृदुला गर्ग ने बड़ा मौजूँ सवाल उठाया है कि पुरस्कार वापस कर या अकादमी से इस्तीफा देकर साहित्यकारगण क्या अकादमी की स्वायत्ता के लिए खतरा नहीं पैदा कर रहे हैं। उनका कहना है कि सभी राज्यों में फैली हिंसक असहिष्णुता का और इस सबके प्रति केन्द्र और राज्य सरकारों की उपेक्षापूर्ण दृष्टि का वे पुरजोर विरोध करती हैं। जो भी लोग पुरस्कार लौटा रहे हैं या त्यागपत्र दे रहे हैं उनके साथ वे सहानुभूति रखती हैं। उनका कहना है कि स्वनियुक्त नैतिक पहरेदारों द्वारा एकांगी सांस्कृतिक मूल्य व्यवस्था थोपने का विरोध और असहिष्णुता से असहमति लेखन का अंतर्निहित तत्व है।

         परंतु त्यागपत्र देकर और पुरस्कार वापस कर विरोध का जो तरीका अपनाया जा रहा है वह ऐसा दर्शाता है जैसे कि साहित्य अकादमी कोई स्वायत्त संस्था न होकर सरकार की ही एक शाखा है। मृदुला गर्ग का कहना है कि साहित्यकारों द्वारा ऐसा किया जाना सरकार को साहित्य अकादमी में अपने प्रतिनिधियों को नियुक्त करने का अवसर प्रदान कर सकता है। संस्कृति मंत्री कह ही चुके हैं कि अकादमी में विरोध पर उनकी नजर है। नि:संदेह साहित्य अकादमी को कालबुर्जी की हत्या की निंदा करनी चाहिए थी और शोक सभा आयोजित करनी चाहिए थी। केवल साहित्य अकादमी के ही पुरस्कार क्यों लौटाए जा रहे हैं, अन्य सरकारों द्वारा दिए गए अन्य पुरस्कार भी लौटाए जाने चाहिए थे (एक समाचार के अनुसार नृत्यांगना माया राव ने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार वापस लौटाने की घोषणा की है)।

          मृदुला गर्ग आशंका व्यक्त करती हैं कि सरकार के स्थान पर साहित्यकारों की अपनी विधिवत निर्वाचित स्वायत्त संस्था को प्रहार का केन्द्र बनाकर उसे कमजोर किया जा रहा है। साहित्यकार स्वयं आपस में झगड़ कर सरकार के लिए स्वायत्त संस्था को अधिकृत कर लेने का रास्ता साफ कर रहे हैं।

         मेरा अपना मत है कि जब विभिन्न लेखकों/रचनाकारों को पुरस्कार विभिन्न सरकारों के शासनकाल में प्रदान किए गए हैं तो उन्हें आज वापस करना जब एक अलग विचारधारा वाली सरकार है जिसने यह पुरस्कार नहीं प्रदान किए थे , उनकी वापसी के औचित्य को सिद्ध नहीं करता। इसी आधार पर आज पुरस्कार वापस करने वाले अपनी तुलना रवीन्द्रनाथ टैगोर से नहीं कर सकते हैं। कविगुरु ने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई नाइटहुड की उपाधि ब्रिटिश सरकार को ही लौटाई थी। इंद्रजीत हाजरा का कहना है कि इस प्रकार का विरोध अवांछित तौर पर भारत के विधिक अस्तित्व पर सवाल उठाता है और मैं उनसे सहमत हूँ। देश में दक्षिणपंथी तत्वों के अत्युत्साह के कारण कहीं- कहीं अतिरंजित स्थिति देखने में आ रही है उसके बावजूद भारत " बनाना रिपब्लिक" नहीं बन गया है। जहाँ भी अति की स्थिति है उसको नियंत्रित करने हेतु सरकार पर दबाव बनाने के और भी तरीके हैं। परंतु पुरस्कृत साहित्यकार जो रास्ता अपना रहे हैं वह विश्व में भारत को सीरिया,इराक और अफगानिस्तान की श्रेणी में लाकर खड़ा करता है जहाँ फिलहाल आप अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की बात ही नहीं सोच सकते। कम से कम दुनिया को गलत संदेश देने से हमें परहेज करना चाहिए।

          जब इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन के पीछे राजनीति होने की बात कही जाती है तो वह निराधार नहीं है। मैलियाना और हाशिमपुरा के नरसंहारों तथा बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समय स्थिति कम सांप्रदायिक नहीं थी । तब हमारे पुरस्कृत साहित्यकारों ने यह रास्ता क्यों नहीं अपनाया। सवाल यह भी है कि क्या समस्त पुरस्कार कार्यकर्ताओं द्वारा पुरस्कार लौटा देने के साथ ही विरोध की भी इतिश्री हो जाएगी। त्यागपत्र दे देने और पुरस्कार लौटा देने का निर्णय मुझे "पैसिव" विरोध का लगता है जो सक्रिय या पुख्ता विरोध का तरीका नहीं है और ड्राइंगरूम में बैठकर लिया गया निर्णय प्रतीत होता है जिसका असर सीमित होगा और कुछ दिनों में समाप्त हो जाएगा। विरोध व्यक्त करने के लिए यदि हमारे साहित्यकार अन्य सक्रिय तरीके अपनाते जिनमें नैरंतर्य का समावेश रहता जो समाज को लंबे समय तक अनुप्राणित कर सकता तो वह अधिक कारगर सिद्ध होता।

3 टिप्‍पणियां:

  1. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 15/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद[123---अकादमी पुरस्कार वापस करना कितना प्रासंगिक]
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...


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  2. क्षमा करें...
    जय मां हाटेशवरी....

    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 18/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...


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