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बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

बिसाडा के सरताज से हमें और भी सरताज चाहिए!

       
          दादरी के बिसाडा गाँव में गौकसी की अफवाह के कारण हुई मुहम्मद अखलाक की हत्या के बाद उक्त घटना को लेकर पक्ष और विपक्ष के बीच चल रही राजनीति जोरों पर है। पर इस सबके बीच उनके बड़े पुत्र वायुसेना में कारपोरल के रूप में कार्यरत सरताज ने बड़े ही संयम के साथ अपनी बात रखी है जो गौर करने लायक है-
         " हमारी पीड़ा समझने के बजाय राजनीतिज्ञों को अपनी राजनीति की फिक्र है। मेरे पिता की मृत्यु राजनीति का विषय बन गई है। बहुत से राजनीतिज्ञ मेरे घर पर सिर्फ इसलिए आए कि मीडिया में उनका नाम आए।"
          " मेरा परिवार देशभक्त है। इसी कारण मैंने वायुसेना में नौकरी की है। सांप्रदायिक सद्भाव लोकतंत्र का मूल तत्व हैं। हमारा देश सांप्रदायिक सद्भाव के लिए जाना जाता है। मेरी अपील है कि लोग शांति भंग न करें।"
          " न्याय इस प्रकार का होना चाहिए कि एक उदाहरण बने। लोगों के दिमाग से डर दूर करें। यह घटना इस तरह की अंतिम घटना होनी चाहिए। यद्यपि मैं सीमा पर तैनात नहीं हूँ, मैंने समर्पण के साथ देश के लिए काम किया है। मेरा छोटा भाई दानिश भी सेना में जाने के लिए तैयारी कर रहा था। घटना से एक घंटा पहले मैंने परिवार के साथ बात की थी और सब कुछ सामान्य था। बिना किसी कारण के मेरे पिता को मार दिया गया।........कोई उनकी मदद के लिए नहीं आया"।
          इस देश के एक नागरिक के तौर पर हम तुमसे माफी माँगते हैं सरताज! जिन परिस्थितियों में तुम्हारे पिता का इंतकाल हुआ उसमें तुम्हें किस तरह का सदमा पहुँचा होगा ,हम समझ सकते हैं। तुम्हारे ऐसे और भी सरताजों की इस देश को बहुत जरूरत है।
          दादरी की घटना पर एक तरफ गृह मंत्रालय ने राज्यों को एडवाइजरी जारी करते हुए कहा है कि साम्प्रदायिक घटनाओं को जिनसे देश की धर्मनिरपेक्षता कमजोर पड़ सकती है और जिनके द्वारा धार्मिक भावनाओं को भुनाने का प्रयास किया जाए, तनिक भी बर्दाश्त न किया जाए (मंत्रालय ने दादरी की घटना पर उत्तर प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी थी जो उसे प्राप्त हो चुकी है)। दूसरी तरफ कृषि राज्य मंत्री संजीव बाल्यान का कहना है कि गोमांस की अफवाह के बाद भीड़ के द्वारा अखलाक की हत्या पूर्वनियोजित न होकर तात्कालिक रूप से घटित हुई और एक हादसा है। उनका यह भी कहना है कि यह साम्प्रदायिक घटना नहीं है और इसे साम्प्रदायिक रंग देने का प्रयास न किया जाए। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से गौकसी की घटनाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहा हैं। बी जे पी विधायक संगीत सोम का कहना है कि अखलाक की हत्या के मामले में पकड़े गए लोग बेगुनाह हैं और सही हत्यारों को पकड़ा जाए। उन्होंने भी कहा है कि वे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री और राज्यपाल से मिलकर गोकसी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग करेंगे । साक्षी महाराज और योगी आदित्यनाथ अपने बयान अलग दे रहे हैं। दिनांक 6/10/2015 की रात्रि की एक खबर यह भी है कि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने उत्तेजक बयानबाजी करने वाले अपने नेताओं को दादरी मामले से दूर रहने की सलाह दी है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घटना की निन्दा करते हुए कहा है कि समाज के सभी जिम्मेदार तत्वों की जिनमें केन्द्रीय और राज्य सरकार शामिल हैं, यह सुनिश्चित करना जिम्मेदारी है कि इस प्रकार की घटनाएँ न घटित हों।
          इन सबसे अलग उत्तरप्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खान साहब ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून को चिट्ठी लिखी है जिसमें गुहार लगाई गई है कि मोदी जी की सरकार आर एस एस और उसके आनुषंगिक संगठनों को परोक्ष सहायता दे रही है ताकि वे अल्पसंख्यक समुदायों को भयग्रस्त कर उनका धर्म परिवर्तन कर दें और भारत 2022-23 तक हिन्दू राष्ट्रीय बन जाए।
          इस विषय पर मेरा अपना मत है कि- 1.यद्यपि केन्द्र सरकार के नं 2 एवं नं 3 यानी कि श्री राजनाथसिंह और श्री अरुण जेटली ने अपना अभिमत दे दिया है तथापि उन्होंने जो बात कही है वह प्रधानमंत्री की तरफ से आनी चाहिए क्योंकि नदी की धारा सदैव पर्वत शिखर से सागर की तरफ बहती हैं। प्रधानमंत्री यदि स्पष्टतः गृह मंत्रालय द्वारा कही गई बात को अपने मुखारबिन्दुओं से व्यक्त करते हैं तो इससे पूरे देश में एक संदेश जाएगा और उनकी अपनी पार्टी के भडकाऊ बयान देने वाले तत्वों पर लगाम लगेगी। यह एक संवेदनशील मसला है और उन्हें इसे अपने मातहतों के सुपुर्द कर निश्चिन्त नहीं हो जाना चाहिए। एक तरफ गृह मंत्रालय तथा अरुण जेटली के बयान और दूसरी तरफ संजीव बाल्यान और संगीत सोम त़था कुछ अन्य भाजपा नेताओं के बयान इस धारणा को बल देते हैं कि सरकार दो स्वर में बोलती है। फिर भी यह एक शुभ संकेत है कि पी एम ओ ने मामले की रिपोर्ट गृह मंत्रालय से माँगी है।
2. स्थानीय भाजपा नेता संजय राणा (जिनके पुत्र की गिरफ्तारी मामले में हुई है) का कहना है कि उन्होंने रात्रि10.26 पर पुलिस को फोन किया। इसी से कुछ मिनट पहले मुहम्मद अखलाक(जिनकी हत्या की गई) ने गाँव के अपने एक मित्र को फोन कर मदद का आग्रह किया था। उसने भी संजय राणा के फोन के कुछेक मिनट पहले पुलिस को फोन किया था । रात्रि में 10.50 पर पुलिस पहुँच गई। इस बीच मुहम्मद अखलाक को मरणान्तक चोट लग चुकी थी तथा उनका छोटा पुत्र दानिश गंभीर रूप से घायल हो चुका था। संजय राणा का यह भी कहना है कि घटना में कोई बाहर का व्यक्ति नहीं था। सभी गाँव के ही लोग थे ।
          यहाँ यह ज्वलंत प्रश्न यह है कि गाँवों की जो संस्कृति है उसमें सभी एक दूसरे को बिना जाति-धर्म के भेदभाव के चाचा,ताऊ, बेटा,भतीजा के रूप में संबोधित करते और जानते हैं। गाँवों का वातावरण इतना सांप्रदायिक या हिंसक कैसे हो गया है कि लोग नाते-रिश्ते भूल कानून को अपने हाथ में लेने लगे हैं और अपनों में से ही किसी की हत्या करने पर उतारू हो गए। गाँवों के वातावरण को विषाक्त होने और वहाँ के सामाजिक संतुलन के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न होने से कैसे बचाया जाए, इस पर विचार करने की जरूरत है।
          रात गए गाँव के मंदिर से लोगों को एकत्रित करने के लिए उद्घोषणा और रात साढ़े दस बजे भीड़ का मुहम्मद अखलाक के घर की तरफ जाना नियोजित हमले की तरफ इशारा करते हैं । इसके क्या कारण थे और इसके पीछे किसका दिमाग था, इस बात की तहकीकात की जरूरत है।
3. श्री आजम खान दादरी के मसले पर जब संयुक्त राष्ट्र संघ को चिट्ठी लिखते हैं तो एक प्रकार से अपनी ही सरकार जिसमें वे मंत्री हैं, की विफलता को स्वीकार करते हैं। उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की है। इसलिए कम से कम यह पत्र लिखने के पहले उन्हें समाजवादी सरकार से इस्तीफा दे देना चाहिए था क्योंकि उनका यह कदम बताता है कि उन्हें अपने दल और उसके नेतृत्व तथा स्वयं अपने मुख्यमंत्री पर भी भरोसा नहीं है अन्यथा उनसे बात करने के बजाय वे सीधे संयुक्त राष्ट्र संघ को चिट्ठी क्यों लिखने लगते। दूसरे देश के सबसे बड़े प्रदेश के सत्ताधारी दल के प्रमुख राजनीतिज्ञ के तौर पर उन्हें सीधा यू.एन. जाने के बजाय पहले देश के भीतर अपनी समस्या को उठाना चाहिए था। यू एन जाने का विकल्प यह दर्शाता है कि जैसे इस देश में आजम खाँ के लिए कोई ठौर नहीं रह गया है। यह देश में और बाहर भी एक गलत संदेश देता है। यह दायित्व केन्द्र के साथ- साथ प्रदेश सरकार का भी है कि दादरी जैसी घटनाएँ न हों।
4. सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को इस मसले पर मिल-बैठकर विचार करना चाहिए और इस बारे में एकमत पर पहुँचना चाहिए कि वे गाय नामक निरीह प्राणी के नाम पर राजनीति नहीं करेंगे और न ही किसी के द्वारा इस पर की जाने वाली राजनीति को प्रोत्साहित करेंगे। साथ ही इस प्रकार की सारी स्थितियों को समाप्त करेंगे जो गाय के नाम पर राजनीति को अवसर देती हैं।

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