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शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

स्वतंत्रता का उनहत्तरवाँ पर्व (कविता)


आओ तज धर्म-जाति का बंधन
एक पंक्ति में खड़े हो जाएं
आज फिर वीरों को याद करें
और तिरंगा प्यारा लहराएं।।

राजनीति छोड़ देश का विकास
हो ध्येय राजनीतिज्ञों को समझाएं
जोड़- तोड़ से नहीं, काम करोगे
तभी मिलेंगे वोट आओ इन्हें बताएँ।।

सांप्रदायिकता और जातिवाद से नहीं
सियासतदाँ जनता को भरमाएं
चैन से न बैठे कोई , जब तक
गरीबी और अशिक्षा से सब न मुक्ति पाएं।।

सभ्यता और संस्कृति का यह देश,
असभ्यता की बातें न इसको भाएं
संसद है देश के लोकतंत्र का आइना
आओ सड़कतंत्र से इसे बचाएं ।।

प्रहार करो,शब्दाघात करो पर
कमर के नीचे न वार करो इन्हें बताएँ
संसद है देश के सेवाव्रतियों के लिए
सत्ता और विपक्ष मिल कर इसे चलाएं।।

छल-प्रपंच में उलझी राजनीति
नीचे गिरने की अब तोड़ती सीमाएं
संसद में करो सार्थक बहस,
सब मिल- बैठ देश को आगे बढाएं ।।

देशहित में काम करने का सब लें संकल्प,
यही राजनीतिज्ञ भी दुहराएं
निराशा से रख ऊपर आशा, चलो
स्वतंत्रता का उनहत्तरवाँ पर्व मनाएँ।।
           -संजय त्रिपाठी


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