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बुधवार, 5 अगस्त 2015

कोई शर्त न रखिए जहाँ प्रीति की राह हो ( गजल)

कोई शर्त न रखिए जहाँ प्रीति की राह हो  
हार कर भी जीत है जहाँ प्रीति की चाह हो ॥

उस पथिक के पग न डगमगाएँ क्यूँ
जो फिरता लिए यहाँ  हृदय में दाह हो॥

डूबने के डर से वो रहे किनारे बैठा क्यूँ
जिसे सरिता के उफनते जल की थाह हो॥

है मंजिल पाना तो बहते नीर में चले चलिए  
भले ही जार-जार बरसता श्रावण माह हो ॥

चपला अपनी चमक से दिखा देगी डगर
यदि है विश्वास भले ही रात स्याह हो॥

दर्प की नींव पर खडे महल हैं खोखले
प्रीति जिसकी रीति उसी की यहाँ वाह हो ॥

जिसके लिए मनुजता से बढ़ नहीं कोई धर्म
 'संजय' वो नहीं तो कौन जगत का शाह हो॥
      -संजय त्रिपाठी

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