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शनिवार, 18 जुलाई 2015

सरकार की प्राथमिकता आम जनता हो विश्वगुरू बनना नहीं

          भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री अमित शाह साहब का कहना है भारत वर्ष को विश्व गुरू की स्थिति में पहुँचाने के लिए 25 वर्ष लगेंगे और इसके लिए भारतीय जनता पार्टी को लगातार पाँच चुनाव जीतने होंगे।

          राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतवर्ष को एक गौरवशाली देश के रूप में व्याख्यापित करता रहा है और इसके साथ जुड़ी गर्व की भावना को अपने अनुयाइयों में भरने का प्रयास करता रहा है। यह गौरव बोध कराने के लिए संघ उन्हें बहुत सी बातें बताता है। इसी का हिस्सा यह भी है कि भारतवर्ष देवभूमि है जहाँ भगवान जन्म लेते रहे हैं और भारतवर्ष विश्वगुरू रहा है और है। चूँकि अमित शाह की पृष्ठभूमि संघ की है , इसलिए संघ की अवधारणाओं को दुहराना उनके लिए लाजमी है। अंतर यह है कि उन्होंने जैसे यह मान लिया है कि भारतवर्ष अब विश्वगुरू नहीं है और उस स्थिति में उसे लाने के लिए 25 वर्ष लगेंगे। शायद अमित शाह अपने कार्यकर्ताओं की देशभक्ति जाग्रत कर उन्हें परिश्रमपूर्वक काम करने के लिए प्रेरित करना चाहते थे। कुछ मीडियाकर्मियों ने इसका अर्थ यह बताया कि मोदी जी द्वारा जिन अच्छे दिनों को लाने का वादा चुनाव के पहले किया गया था उन अच्छे दिनों को लाने में 25 वर्ष लगेंगे।

          इस बारे में ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल द्वारा स्पष्टीकरण दिया गया कि अमित शाह का आशय विश्वगुरू बनने में 25 वर्ष लगने से है न कि अच्छे दिन आने में इतना समय लगने के बारे में है ।

          यहाँ मुझे यह लगता है कि भारतीय जनता पार्टी यदि 25 वर्षों की योजना बना कर चल रही है तो यह स्वयं में अच्छा होते हुए भी कुछ अधिक महत्वाकांक्षा से परिपूरित है । भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार को प्रथम तो वर्तमान पाँच वर्षों की अवधि ( जिसमें से एक वर्ष की अवधि बीत चुकी है) के लिए आम जनता हेतु एक ठोस योजना रखनी और कार्यान्वित करनी चाहिए और फिर उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आदर्शों और उनके परिप्रेक्ष्य में और समय की बात सोचनी चाहिए। जनता जब इन पाँच वर्षों के आपके काम से राहत और संतोष अनुभव करेगी तभी आपको 2019 के बाद अगले पाँच वर्ष देगी , अन्यथा नहीं। सन 1977 से आयोजित सभी आम चुनाव इस बात को प्रमाणित करते हैं। केवल 1984, 1999 और 2009 में तत्कालीन सत्ताधारी दल दोबारा सत्ता में आने में सफल रहे। 1989, 1991 ,1996 ,1998,2004 और 2014 सत्ता परिवर्तन के वर्ष रहे। इस प्रकार सत्ता परिवर्तन का पलड़ा भारी रहा है।

          पर अगर हम सत्ता की निरंतरता के वर्षों 1984, 1999 और 2009 को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि जनता बहुत अधिक महत्वाकांक्षी नहीं है । यदि कोई भावनात्मक मुद्दा आ जाता है जहाँ उसे देश के लिए खतरा लगता है अथवा उसे लगता है कि कुल मिलाकर शासन ठीक- ठाक चला है या विपक्षी दल उसे सत्ताधारी दल की अपेक्षा खराब स्थिति में दिखाई देते हैं तो वह सत्ताधारी दल को दोबारा मौका दे देती है। सन 2004 में अनुकूल छवि और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे प्रखर वक्ता प्रधानमंत्री के होते हुए भी भारतीय जनता पार्टी को हार का मुँह देखना पड़ा था। शायद इसलिए कि आम आदमी राहत नहीं महसूस कर रहा था और भारतीय जनता पार्टी को इस बात का अहसास तक नहीं था।

          हाल ही में जारी जनगणना के सामाजिक- आर्थिक आँकडों के अनुसार देश के गाँवों में एक तिहाई लोग भूमिहीन हैं। इनमें से अधिकांश हुनरमंद नहीं है इस कारण मजदूरी करने को छोड़ उनके सामने कोई विकल्प नहीं है। इन्हीं आँकडों के अनुसार गाँवों में रहने वाले लगभग आधे लोग गरीब की श्रेणी में आते हैं। तीन चौथाई ग्रामीण परिवारों की मासिक आय रू. पाँच हजार प्रतिमाह तक ही है। लगभग 14 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास ही कृषि या मजदूरी को छोड़कर आय का और साधन है।  

          इसलिए मोदी सरकार को अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं से भी ऊपर आम आदमी को राहत पहुँजाने को प्राथमिकता देनी चाहिए। गरीब के हाथों में काम हो, उसे दो वक्त रोटी मिल जाए, सर पर एक छत का आसरा हो, वक्त जरूरत पड़ने वाले खर्च के लिए चार पैसे उसके हाथ में हों, जरूरी चीजें उसकी क्रयशक्ति के भीतर उपलब्ध हों, कानून- व्यवस्था की स्थिति ठीक हो ताकि वह भयमुक्त रहे एवं भ्रष्टाचार नियंत्रित हो ताकि वह उसकी चक्की में पिसने से बच जाए और इस पर अगर बिजली-पानी मिलते रहें तो फिर सोने में सोहागा है, बच्चों को शिक्षा मिल सके तो फिर कहना ही क्या। फिर तो गरीब के लिए अच्छे दिन आ गए।

          मोदी सरकार ने सबका साथ- सबका विकास, स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया, स्किल एवं स्केल, डिजिटल इंडिया, 100 स्मार्ट सिटी, नवामि गंगे, सबको 2022 तक आवास जैसी योजनाएँ एवं नारे दिए हैं पर इन्हें कार्य रूप में परिणत होते दिखना चाहिए। यदि अगले तीन वर्षों में इनका कार्य रूप नहीं दिखता तो वर्ष 2019 तक यह महज जुमले के रूप में रह जाएंगे और तिस पर अगर गरीब को राहत नहीं मिलती दिखाई दे तो सरकार को 2019 के बाद अगले पाँच वर्ष मिलने उस स्थिति को छोड़कर जब कोई भावनात्मक ( इमोटिव) मुद्दा सृजित हो जाए ,मुश्किल हो जाएंगे।

          राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश को एक प्रकार के सांस्कृतिक-धार्मिक राष्ट्रवाद के साँचे में ढालने का लक्ष्य रखता है पर देश की केन्द्रीय सरकार की नौका इस प्रकार के लक्ष्य के सहारे पार नहीं हो सकती। आम जनता उसके लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।





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