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शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

फाँसी की सजायाफ्ता रेहाना की माँ को चिट्ठी

          ईरान की रेहाना जब्बारी को 25 अक्टूबर,2014 के दिन 26 वर्ष की आयु में इस आरोप में फांसी पर लटका दिया गया कि उसने बलात्कार की कोशिश करने वाले मुर्तजा अब्दुलअली सरबन्दी को जो कि ईरान की सेक्रेट सर्विस का अधिकारी था, चाकू से प्रहार कर मार दिया था। उसे 19 वर्ष की आयु में 2007 में गिरफ्तार किया गया था। संपूर्ण विश्व से रेहाना को मुक्त करने की माँग उठी पर उसे नजरअंदाज करते हुए ईरान के कानून के अंतर्गत रेहाना को सजा-ए-मौत दे दी गई।रेहाना की मां ने कहा कि उसे छोड़ मुझे सूली पर चढ़ा दो पर उसकी बात सुनी नहीं गई। रेहाना ने अपनी मां को एक मार्मिक चिट्ठी लिखी जो हम सबको कुछ सोचने के लिए और खास तौर पर समाज में स्त्रियों की स्थिति पर विचार करने के लिए विवश करती है। निश्चय ही जिन समाजों में आज भी कानून स्त्रियों के प्रति पक्षपातपूर्ण है वहाँ उसे बदलने के लिए जोरदार आवाज उठाने की जरूरत है। रेहाना की चिट्ठी का हिन्दी में अनूदित मजमून निम्नवत है- 

प्रिय शोलेह ( माँ),
                    आज मुझे ज्ञात हुआ कि अब मेरी बारी किसास (ईरान में बदले का कानून) का सामना करने की है। मुझे इस बात का दुःख है कि तुमने स्वयं मुझे यह नहीं बताया कि मैं अपने जीवन की पुस्तक के अंतिम पृष्ठ पर पहुँच चुकी हूँ। क्या तुम ऐसा नहीं सोचती हो कि यह मुझे मालूम होना चाहिए था। मैं इस बात पर लज्जित हूँ कि तुम दुःखी हो। तुमने मुझे वह अवसर क्यों नहीं दिया कि मैं तुम्हारे और अब्बा के हाथों का चुंबन ले सकती?

          इस विश्व ने मुझे 19 वर्ष ही जीवित रहने दिया। उस मनहूस रात्रि में मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी। मेरा शव नगर के एक कोने में फेंक दिया गया होता और कुछ दिनों के बाद पुलिस मेरे शव की पहचान करने के लिए तुम्हें ले जाती और वहाँ तुम्हें यह भी ज्ञात होता कि मेरे साथ बलात्कार भी हुआ था। हत्यारे के बारे में कुछ पता नहीं चल पाता क्योंकि हमारे पास न तो उसकी तरह धन है और न ही ताकत । तो भी तुम इसी तरह कष्ट और लज्जा की स्थिति में होतीं और इनके बोझ के तले कुछ वर्ष के बाद तुम मृत्यु के समीप पहुँच जातीं।

          पर उस शापित प्रहार के साथ कहानी परिवर्तित हो गईं। मेरा शव फेंका नहीं गया बल्कि मुझे एविन जेल के एकांत वार्ड रूपी कब्र और उसके बाद अब शहर-ए-रे की कब्र जैसी जेल में अकेला डाल दिया गया। शहर की यह जेल कब्र जैसी ही होती हैं। पर सब कुछ भाग्य पर छोड़ देना है और किसी प्रकार की शिकायत नहीं करनी है। तुम बेहतर जानती हो कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है। तुमने मुझे सिखाया था कि मनुष्य इस विश्व में अनुभव प्राप्त करने और सीखने के लिए आता है और हर जन्म के साथ आदमी के कंधों पर जिम्मेदारी आ जाती है। मैंने सीखा कि कभी-कभी मनुष्य को संघर्ष करना पड़ता है। मुझे याद है कि तुमने मुझे बताया था कि एक गाड़ीवान ने मुझे कोड़े मारे जाने का विरोध किया था परंतु कोड़े मारने वाले ने उसके चेहरे और सिर पर वार किया ,जिससे अंततोगत्वा उसकी मौत हो गई। तुमने मुझे बताया है कि मूल्यों के सृजन या उन्हें बनाए रखने के लिए यदि जीवन का भी त्याग करना पड़े तो वह श्रेयस्कर है। 

          तुमने मुझे सिखाया था कि विद्यालय जाने पर झगड़े या शिकायत का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्या तुम्हें याद है कि तुमने आचरण के तौर-तरीकों पर कितना जोर दिया था । तुम्हारा अनुभव नाकाम साबित हुआ। जब मेरे साथ यह घटना घटी तो मिली हुई सीखें मेरे काम नहीं आईं। अदालत में प्रस्तुत किए जाने के समय मैं नृशंस हत्यारिन और निर्दयी अपराधी के रूप में देखी जा रही थी। मैंने आँसू नहीं गिराए । मैंने फरियाद नहीं की। मैं ताकत भर रोई नहीं क्योंकि मुझे कानून पर विश्वास था।

          पर मुझ पर अपराध के प्रति कोई अफसोस न होने का आरोप लगाया गया।तुम्हें मालूम है कि मैंने कभी एक मच्छर तक नहीं मारा और काक्रोचों को उनके ऐंटीना से पकड़ कर बाहर फेंक आया करती थी। लेकिन अब मुझे एक सोची-समझी हत्या का अपराधी बताया गया । जीवों के प्रति मेरे व्यवहार को मुझमें लड़कों के गुण होने के रूप में लिया गया। जज ने इस तथ्य का संज्ञान लेने का कोई कष्ट नहीं किया कि घटना के समय मैंने लंबे नाखून रखे थे और उन पर नेलपालिश लगाई थी।   

          जिसने जजों से न्याय की उम्मीद की थी वह बहुत आशावादी है। जजों ने इस बात को कोई तरजीह नहीं दी कि मेरे हाथ महिला खिलाड़ियों विशेषकर बाक्सरों की तरह रूखे नहीं हैं। जब मैं इन्ट्रोगेटर के सवालों की बौछार से रो रही थी और अत्यधिक अश्लील शब्दावली सुन रही थी तो इस देश ने जिसके प्रति तुमने मेरे भीतर प्यार पैदा किया था, न तो मुझे चाहा और न ही किसी ने मेरा समर्थन किया। जब मैंने स्वयं से सौंदर्य के अंतिम प्रतीक बालों को अपना सिर मुंडवा कर हटा दिया तो मुझे बतौर पुरस्कार तनहाई के ग्यारह दिन दिए गए। 

          प्रिय माँ शोलेह तुमने जो कुछ सुना है उसके लिए रोना मत । थाने में प्रथम दिन मुझे एक अविवाहित एजेन्ट ने सुन्दर नाखून के लिए चोट पहुँचाई तो मेरी समझ में आ गया कि आज की दुनिया में सुन्दरता की जरूरत नहीं है चाहे वह देखने में हो, विचारों या इच्छाओं की हो, हस्तलेखन की हो, आँखों की हो या फिर मोहक आवाज की हो ।

          मेरी प्यारी माँ मेरी विचारधारा बदल गई है पर इसके लिए तुम जिम्मेदार नहीं हो । मेरी बातों का अंत नहीं है और मैंने सब कुछ लिखकर किसी को दे दिया है ताकि अगर तुम्हारी जानकारी के बिना या तुम्हारी अनुपस्थिति में मुझे फाँसी दे दी जाए तो यह तुम्हें दे दिया जाए। मैंने विरासत के तौर पर कई हस्तलिखित दस्तावेज छोड़ दिए हैं।

          मैं अपनी मौत से पहले तुमसे कुछ निवेदन करना चाहती हूँ जिसे तुम अपनी पूरी ताकत लगानी पड़े तो भी और कैसे भी करके पूरा करना। वास्तव में यही एक बात है जो मैं दुनिया से, देश से और तुमसे चाहती हूँ। मुझे मालूम है कि तुम्हें इसके लिए समय चाहिए ।इसलिए मैं तुम्हें अपनी इच्छा का यह हिस्सा जल्दी से बता रही हूँ। कृपया बिना रोए हुए सुनो! मैं चाहती हूँ कि तुम न्यायालय जाकर उन्हें मेरी इस प्रार्थना के बारे में बता दो। मैं जेल के भीतर से ऐसी चिट्ठी नहीं लिख सकती जो जेल के अध्यक्ष द्वारा अनुमोदित हो, इसलिए एक बार फिर तुम्हें मेरे कारण कष्ट उठाना पड़ेगा । यह एक ऐसी बात है जिसके लिए अगर तुम्हें रिरियाना भी पड़े तो मुझे कष्ट नहीं होगा। हालाँकि मैंने कई बार तुमसे अनुरोध किया है कि मेरी जान बचाने के लिए किसी से भीख नहीं माँगना ।

          मुझे प्राणों से भी प्यारी मेरी प्रिय माँ शोलेह , मैं मिट्टी के अंदर सड़ना नहीं चाहती। मैं अपनी आँखों और जवान दिल को मिट्टी नहीं बनने देना चाहती । इसलिए अनुरोध करती हूँ कि फाँसी के बाद शीघ्रातिशीघ्र मेरा दिल,किडनी,आँखें,हड्डियाँ और जो कुछ भी ट्राँसप्लाँट किया जा सकता है वह सब मेरे शरीर से निकाल लिया जाए और उसे भेंट के तौर पर दे दिया जाए जिसे इनकी जरूरत है। मैं नहीं चाहती हूँ कि जिसे मेरा अंग दिया जाए वह मेरा नाम जाने ,मेरे लिए गुलदस्ता खरीदे या मेरे लिए प्रार्थना करे।

          मैं अपने दिल की गहराइयों से बता रही हूँ कि मैं नहीं चाहती कि मेरी कब्र हो जहाँ पर आकर तुम मेरी मृत्यु का शोक मनाओ और कष्ट अनुभव करो। मैं नहीं चाहती हूँ कि तुम मेरे सोग में काले कपड़े पहने। तुम भरसक मेरे इन कठिन दिनों को भूल जाना। हवाओं को मुझे ले जाने देना।

          दुनिया को हमसे प्यार नहीं था। मुझे ऐसे भाग्य की चाह नहीं थी। अब मैंने इसके आगे समर्पण कर दिया है और मृत्यु का वरण कर रही हूँ। क्योंकि खुदा की अदालत में मैं इंसपेक्टरों पर, इंसपेक्टर शामलोऊ पर, जज पर और देश के सर्वोच्च न्यायालय के जजों पर जिन्होंने मुझे जागृत अवस्था में प्रताड़ित किया और मेरा उत्पीड़न करने से बाज नहीं आए ;आरोप लगाऊँगी। उस दुनिया बनाने वाले की अदालत में मैं डॉ फरवंडी, कसीम शबानी और जिन्होंने अज्ञानतावश या अपने झूठ से मेरे साथ गलत किया तथा मेरे अधिकारों का हनन किया और इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि कई बार जैसा दिखता है, वास्तविकता उससे भिन्न होती है; उन सब पर आरोप लगाऊँगी ।

          कोमल हृदय माँ शोलेह, उस दूसरी दुनिया में तुम और मैं आरोपकर्ता होंगे और यहाँ के आरोपकर्ता आरोपी होंगे। देखते हैं कि अल्लाह की क्या मर्जी है! मैं मौत के आगमन तक तुम्हारे साथ आलिंगनबद्ध रहना चाहती थी। तुम्हारे प्रति प्यार!
                         रेहाना, 1अप्रैल 2014




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