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बुधवार, 10 जून 2015

योग-दिवस का सांप्रदायिक विरोध

उद्योगपति राजीव बजाज के अनुसार योगगुरू  बी.के.एस. आयंगार ने एक बार उनसे कहा था -

           "प्रबंधन और योग  संरेखण मात्र से संबंधित हैं - एक हिस्से को दूसरे हिस्से से मिलाना, सभी हिस्सों को समग्रता के साथ एकाकार करना और इस समष्टि को एक वृहत उद्देश्य के साथ एकाकार करना।"

           मैं नहीं समझ पाता हूँ कि योगगुरु आयंगार द्वारा बताई गई उक्त परिभाषा में धर्म कहाँ से आ जाता है। अपने मन और शरीर की बेहतरी के लिए किए जाने वाले योग को जिसे संपूर्ण विश्व शून्य के समान भारत द्वारा सौंपी गई धरोहर के रूप में स्वीकार कर चुका है, धर्मविशेष के साथ जोडने वाले निश्चय ही भ्रमित हैं और इसका कारण जानकारी का अभाव है। योग शब्द का भारतीय परंपरा में व्यापक और विस्तृत  व्यवहार किया गया है तथा इसकी विविध परिभाषाएं और मत-मतांतर मिलते हैं । परंतु इतना तो सुस्पष्ट है कि  शारीरिक योग;  योग की धार्मिक धाराओं राजयोग, सांख्ययोग, हठयोग,ज्ञानयोग , भक्तियोग और कर्मयोग से अलग है । अगर शारीरिक योग के साथ धार्मिक दृष्टि से कहीं कुछ आपत्ति की बात हो सकती है तो वह ओम के उच्चारण और ध्यानस्थ होने पर हो सकती है। पर यदि आप ध्यानस्थ निर्विकार भाव से होते हैं, जहाँ उद्देश्य मन को उस अवधि के लिए विचारशून्य बना देना है तो इसमें किसी की धार्मिक आस्था का क्षरण कहाँ से हो जाता है? फिर देवबंद इस बारे में कह भी चुका है कि ओम के उच्चारण के दौरान मौन रहिए या अल्लाह का उच्चारण करिए। मौन रह कर ध्यानस्थ होने में देवबंद को भी कोई आपत्ति नहीं है। फिर भी कुछ समझ में नहीं आता तो चुपचाप अलग रहिए। पर समस्त भारतीयों के लिए एक गौरव का जो दिवस आया है जब पूरी दुनिया योग -दिवस मना कर भारत के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करेगी तो विरोध में चिल्लाने और शोर मचाने वाले यही दर्शाते हैं कि  आप से तो सऊदी अरब और ईरान भले हैं जो इस दिवस को मनाने जा रहे हैं।योग दिवस का विरोध नितांत सांप्रदायिकता है और कुछ नहीं।

         खैर चलिए, छोडिए इन छाती पीटने वालों को।  इन्हें छोड हम सब दृढ्प्रतिज्ञ हों कि नित्यप्रति शारीरिक योग के क्रम का पालन कर स्वयं को स्वस्थ रखेंगे ताकि हम कभी अपनों के ऊपर और समाज के ऊपर बोझ न बनें और जब तक जिएं स्वस्थ रहें!


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