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मंगलवार, 19 मई 2015

भारतीय समाज पर अरुणा शंबाग का कर्ज

          अरुणा शंबाग इस पूरे देश की व्यवस्था पर एक सवाल खड़ा करती हैं। कुछ लोग उन्हें यूथनेशिया संबन्धी डिबेट के लिए धन्यवाद दे रहे हैं। कुछ लोग श्रद्धांजलि दे रहे हैं। पर मेरी नजर में अरुणा शंबाग सबसे बड़ा सवाल इस देश के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पर खड़ा करती हैं, इस देश की सामाजिक व्यवस्था पर खड़ा करती हैं। 

          सहकर्मी कर्मचारी के वेष में एक जघन्य अपराधी ने अरुणा शंबाग के साथ वह कृत्य किया कि वह जब तक जिंदा रही हजारों-हजार बार मरती रही।पर न जाने किन सामाजिक कारणों से अपराधी के विरुद्ध सिर्फ डकैती का मामला दर्ज कराया गया। सभी अपराधी का अपराध जानते थे पर वह डकैती के अपराध के अंतर्गत सात वर्ष की सजा पाकर छूट गया। यहाँ सवाल यह उठता है कि अपराधी का वास्तविक अपराध जानते हुए भी पुलिस व्यवस्था और न्याय व्यवस्था क्यों उसके प्रति पंगु बनी रही और क्यों यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि अपराधी को उसके द्वारा किए गए अपराध के अनुरूप सजा दी जाए ताकि समाज में एक संदेश जाए। अरुणा शंबाग इस देश और समाज की विफलताओं का एक उदाहरण हैं। वह एक ऐसा कर्ज चढ़ाकर गई हैं जो तब तक पूरा नहीं होगा जब तक इन व्यवस्थागत खामियों को दूर कर पुलिस और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह सुधारा नहीं जाता। तभी यह समाज सच्ची श्रद्धांजलि दे सकता है और सच्चे अर्थों में पश्चाताप कर सकता है। जब भी कहीं अरुणा शंबाग का नाम आता है इस देश के नागरिक के तौर पर मेरा सर शर्म से झुक जाता है। 

          अरुणा शंबाग के पूरे प्रकरण में अगर कहीं कोई आशा की किरण है तो वह के ई एम अस्पताल की नर्सें हैं। तुम्हें मुक्ति मिली पर हम सब माफ करने लायक नहीं हैं अरुणा, हमें कभी माफ मत करना।

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