hamarivani.com

www.hamarivani.com

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

क्या गुमनामी बाबा नेता जी सुभाषचंद्र बोस थे? (आलेख)


क्या गुमनामी बाबा नेता जी थे?
(12 अप्रैल को स्वयं द्वारा नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर लिखी गई पोस्ट के क्रम में आगे)

          आज के टाइम्स आफ इंडिया में संपादकीय पेज पर अधीर सोम का आलेख प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने यह सवाल उठाया है कि गुमनामी बाबा कौन थे?

          अपने उक्त आलेख में अधीर सोम ने जस्टिस मुखर्जी आयोग के उस निष्कर्ष का हवाला दिया है जिसमें यह कहा गया है कि 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में कोई प्लेन क्रैश हुआ ही नहीं था और इस कारण उक्त तिथि को नेताजी की मृत्यु हवाई दुर्घटना में होने की पुष्टि नहीं होती है। आगे चलकर 2006 में यू पी ए सरकार ने जस्टिस मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को ही अस्वीकार कर दिया। यहाँ सवाल यह उठता है कि किन आधारों पर यू पी ए सरकार ने उक्त आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार किया? क्या उन्हीं राष्ट्रीय हितों और विदेशी सरकारों से संबन्ध खराब होने के भय के आधार पर, जिन आधारों पर आज एन डी ए सरकार नेताजी से संबन्धित कागजातों को डिक्लासीफाई करने से इन्कार कर रही है? या फिर यह कारण है कि एक तरफ तो विदेशी शक्तियाँ विशेषकर ब्रिटेन और अमेरिका इस बात पर एतराज जताएंगे कि कि द्वितीय विश्वयुद्ध के उनकी तरफ से घोषित युद्ध अपराधी को भारत सरकार ने छिपा कर रखा और दूसरी तरफ देश की जनता इस बात पर हल्ला मचाएगी कि नेताजी को जनता के सामने लाने के बजाय छिपाकर रखा गया और और स्वाभाविक तौर पर जनता की नजर में तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों द्वारा अपनी सत्ता को सुरक्षित रखना इस अपराध का कारण होगा।

          आप सोच रहे होंगे कि मैं नेताजी को छिपाकर रखने की बात कहाँ से ले आया। इसका कारण जस्टिस मुखर्जी का आफ रेकॉर्ड बातचीत में यह कहा जाना है (जो किसी ने यूट्यूब पर अपलोड भी कर दिया है) कि उन्हें शत-प्रतिशत विश्वास है कि गुमनामी बाबा सुभाषचंद्र बोस थे। मैं प्राचीन इतिहास का विद्यार्थी रहा हूँ जहाँ प्रायः हमें लिखित इतिहास नहीं मिलता है और विभिन्न स्रोतों से तथ्यों की खोज कर इतिहास का निर्माण करना पड़ता है। अपने उस अध्ययन एवं अनुभव के आधार पर अगर जस्टिस मुखर्जी ऐसा कहते हैं तो मैं 99% यह मानने के लिए तैयार हूँ कि गुमनामी बाबा सुभाषचंद्र बोस थे।

          मैंने अपनी पिछली पोस्ट में अनुज धर द्वारा हवाला दिए गए पं जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1957 में हस्ताक्षरित उस पत्र का उल्लेख किया है जिसमें वे नेताजी के भतीजे अमियनाथ बोस की टोक्यो यात्रा के दौरान उनकी गतिविधियों के बारे में रिपोर्ट करने के लिए कहते हैं , साथ ही इस बात के बारे में खास तौर पर बताने के लिए कहते हैं कि वे रेंकोजी टेम्पल जहाँ नेताजी के कथित अवशेष रखे हैं, गए अथवा नहीं। इसका उद्देश्य एकमात्र यह जानना हो सकता है कि नेताजी का परिवार उनकी मृत्यु की कहानी पर विश्वास करता है अथवा नहीं।

          गुमनामी बाबा के बारे में शोधकारों ने अब तक जो तथ्य खोजे हैं उनके अनुसार वे 1955 में गोरखपुर स्थित भारत-नेपाल सीमा क्रास कर भारत आए तथा सन 1955 से 1957 तक शृंगारनगर, लखनऊ और 1957 से 1963 तक नीमसार, सीतापुर में लोगों  की जानकारी या संपर्क में आए बिना पूरी तरह छिपकर रहे। सन 1963 से सन 1985 के दौरान उन्होंने फैजाबाद एवं अयोध्या तथा कुछ समय के लिए निकटवर्ती बस्ती  को अपना निवास स्थल बनाया। सन 1983 से 16 सितम्बर 1985 के दिन देहावसान होने तक वे  ठाकुर गुरुदत्त सिंह के फैजाबाद सिविल लाइंस स्थित घर में बिल्कुल पीछे की तरफ एक कमरे मे बतौर किराएदार रहे। इन दो वर्षों के दौरान ठा. गुरुदत्त सिंह या उनके घर के किसी सदस्य ने भी गुमनामी बाबा की शक्ल नहीं देखी । यह स्वयं में एक विचित्र लगने वाली बात है। गुमनामी बाबा किसी भी आगंतुक से परदे के पीछे से मिलते थे । सबको वे अपने पास आने या मिलने की इजाजत भी नहीं देते थे। केवल कुछ गिने- चुने लोगों को इसकी अनुमति थी और शायद फैजाबाद में ऐसे लोग संख्या में दो से अधिक नहीं थे जो उनसे प्रत्यक्ष रूप से मिलते थे। उनसे कुछ लोग 23 जनवरी या दुर्गापूजा के समय बंगाल से मिलने आते थे पर वह भी रात के अँधेरे में। कभी-कभी सरकार के कुछ बड़े लोग भी सरकारी गाडी में आते थे पर वह भी रात के अँधेरे में।

          16 सितम्बर को देहावसान होने के बाद उनका दाह संस्कार फैजाबाद के गुप्तारघाट पर, जहाँ रामचंद्रजी ने जलसमाधि ली थी, 13 लोगों की उपस्थिति में तिरंगे में लपेट कर वह भी रातोंरात अँधेरे में किया गया। इन 13 लोगों में जहाँ तक मेरी जानकारी है डॉ. आर एन. मिश्रा, डॉ. टी.सी. बनर्जी तथा श्री कृष्णगोपाल श्रीवास्तव भी शामिल थे । श्री कृष्णगोपाल श्रीवास्तव मेरे अध्यापक रह चुके थे तथा मेरी नजर में वे धीर-गंभीर स्वभाव के व्यक्ति थे। उनके द्वारा अनायास झूठ बोले जाने का कोई कारण मुझे नहीं दिखता। उन्होंने ही गुमनामी बाबा का दाह संस्कार हो जाने के बाद सर्वप्रथम किसी से रोते हुए यह बात कही थी कि फैजाबाद में गुप्तरूप से रह रहे सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु हो गई है और फिर यह अखबारों में छपी । फिर कुछ लोग गुमनामी बाबा पर शोध करने में लग गए। पर सारे शोध जैसे कि किसी बंद गली के आखिरी छोर तक पहुँच कर समाप्त हो जाते हैं। इसी कारण जस्टिस मुखर्जी आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में गुमनामी बाबा के नेताजी सुभाषचंद्र बोस होने की संभावना मात्र को संकेतित किया है।

          अधीर सोम ने अपने आलेख में बड़ा मौजूँ सवाल उठाया है कि अगर गुमनामी बाबा नेताजी नहीं थे तो आखिर कौन थे । निश्चय ही इस परिप्रेक्ष्य में कि गुमनामी बाबा के सामानों ( 25 ट्रंकों में यह सामान फैजाबाद जिला ट्रेजरी में न्यायालय के आदेशों के अनुसार बंद है) में नेताजी के आजाद हिंद फौज और परिवार संबन्धी फोटोग्राफ तथा उनकी निजी सी लगने वाली वस्तुएँ हैं, यह रहस्य और गहरा जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें