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शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

'रबरमैन' केजरीवाल 'आयरन लेडी' किरण पर भारी!

         
          दिल्ली के चुनावों की आज जो रिपोंर्टिंग आ रही है उसके मुताबिक दिल्ली में 'आप' की सरकार बन जानी चाहिए। बहुत खराब स्थिति में यह हो सकता है कि आप की बहुमत से एक- दो सीटें कम पड़ जाएं । पर उस स्थिति में भी 'आप' को सरकार बनाने में दिक्कत शायद नहीं आएगी।

          दिन भर मतदान की प्रक्रिया क्रिकेट के किसी वन डे गेम की तरह चली जिसमें 'आप' का प्रदर्शन सुबह से ही अच्छा रहा है। दोपहर के बाद के खेल में बी जे पी ने कुछ अच्छा प्रदर्शन किया पर ऐसा लगता है कि आखिरी ओवरों में 'आप' ने बैटिंग करते हुए चौके- छक्के जड़ दिए हैं।

          इस चुनाव के आने वाले नतीजे बी जे पी को आत्ममंथन के लिए मजबूर करेंगे। मेरे विचार से बी जे पी को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-

1. चुनाव जीतने के बाद मोदी जी ने कहा था कि यह गरीबों की सरकार है। यह बातों तक नहीं सीमित रहना चाहिए , वास्तविकता में दिखना चाहिए।

2. मोदी जी को विदेशनीति सुषमा स्वराज के कंधों पर छोड़कर देश के भीतर स्थिति को बेहतर करने की तरफ ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी महत्वाकांक्षा विश्वनेता बनने की हो गई है। पर सच्चे अर्थों में विश्व नेता बनने के लिए पहले देश की स्थिति अच्छी करनी होगी।

3.आर्थिक सुधारों को तेजी से कार्यान्वित किया जाए ताकि देश को उसका लाभ मिले। बी जे पी ने एक साल से कुछ कम का समय यूँ ही गँवा दिया हैं। कमोबेश कांग्रेस की ही बहुत सी नीतियाँ नया मुलम्मा चढ़ा कर चल रही हैं ।

4. सत्ता में आने के बाद बी जे पी को अपने काम से समाज के विभिन्न समुदायों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिए था। पर इसके विपरीत संघ और बी जे पी से जुड़े एक वर्ग के आचरण ने कुछ समुदायों में भय पैदा किया है। इन समुदायों ने फीयर साइकोलाजी के चलते एकजुट होकर बी जे पी के खिलाफ वोटिंग की हैं।

5. पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया जाता रहे और ऊपर से लोगों को थोपा न जाए। निर्णय प्रक्रिया एक- दो व्यक्तियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, उसमें पार्टी के अग्रणी जनों की सामूहिक भागीदारी होनी चाहिए। ऐसी कोई पार्टी जिसमें निर्णय प्रक्रिया एक-दो लोगों तक केन्द्रित हो जाती है, अंदर से घुना जाती है और खोखली होने लगती है। कांग्रेस का हश्र सामने है।

6. भारत में लोगों की आर्थिक स्थिति में बेहतरी हुई है। फिर भी समाज का एक बड़ा तबका कठिनाई से जीवनयापन करता है। एक नेता की जीवनशैली से यह लगना चाहिए कि उसने भी उनके लिए त्यागमय जीवन का वरण किया है। बहुत अधिक Pomp और Show उन्हें नेता से विरत करता है।

          दिसंबर 2014 में 'आप' ने देश की जनता को बड़ी उम्मीदें बँधाई थीं जो दो महीने के बाद धराशायी हो गई थीं। जनता केजरीवाल को यदि एक मौका और दे रही है तो उन्हें अपने काम से यह साबित करना चाहिए कि जनता के लिए एक बेहतर विकल्प मौजूद है। नरेंद्र मोदी को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने देश के Political discourse को एक नई दिशा दी है तथा विकास और सुशासन को राजनीति का मुख्य एजेंडा बना दिया है। इसलिए सत्ता में कोई भी दल आए उसे स्वयं को इन नए मानदंडों पर साबित करना होगा। धर्म,जाति और भावनात्मक मुद्दों को भुनाने वाली राजनीति अब नहीं चलने वाली है।

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