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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

क्या केजरीवाल नए वी पी सिंह बनेंगे ?

           पूरा विपक्ष पिछले नौ महीनों से मोदी से आक्रांत है । मोदी पर कितने भी हमले किए गए , हर प्रादेशिक चुनाव के बाद मोदी और ताकतवर बनकर उभरे । जनता परिवार को आखिरकार मोदी  रूपी ज्वर का इलाज मर्जर  में नजर आया पर अमीबा की प्रकृति से ग्रस्त जनता परिवार में मर्जर को कार्यरूप देने के पहले ही बिखराव के लक्षण प्रकट होने लगे हैं।  राजपरिवार की मानसिकता से ग्रस्त  कांग्रेस मोदी के मुकाबले के लिए स्वयं कुछ करने के बजाय मोदी सरकार द्वारा किए जाने वाले सेल्फ गोलों का इंतजार करते हुए सोच रही है कि ऐसी स्थिति में आम स्वयं आकर उसके मुँह में टपक जाएगा।

          पर इस सबके बीच एक आदमी और उसके अनुयाई चुपचाप दिल्ली में काम करते रहे हैं। अत: स्वाभाविक है कि दिल्ली के आम चुनावों में यह व्यक्ति और उसके अनुयाई न सिर्फ बी जे पी को टक्कर दे रहे हैं बल्कि उनकी सरकार बन जाने की भी संभावना नकारी नहीं जा रही है और कुछ सर्वे तो 'आप' की सरकार बनने की ही बात कर रहे हैं।

          ऐसे में मोदी से त्रस्त विपक्ष को उक्त व्यक्ति यानी कि अरविंद केजरीवाल में आशा की एक किरण दिखाई दी है। कम से कम मोदी के बाद देश में एक ऐसा आदमी है जिसके नाम पर कहीं जनता वोट देने को तैयार है । आप पार्टी एवं अरविंद केजरीवाल के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, ममता दीदी, नितीश कुमार ,  शरद यादव आदि ने दिल्ली के चुनावों में समर्थन की घोषणा एवं अपील की है।  नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बढ -चढ कर बातें करने की अपेक्षा केजरीवाल का सहूलियत और विनम्रता भरा तरीका कुछ लोगों को भा रहा है। अरविंद केजरीवाल में अब  विपक्ष के कुछ नेताओं को वह व्यक्ति दिख रहा है जो मोदी के विजय-अभियान  रथ को थामने की क्षमता रखता है। विपक्ष को जैसे अर्जुन के मुकाबले के लिए कर्ण की तलाश अरविंद केजरीवाल में पूरी होती दिखाई दे रही है। बी जे पी ने भी अरविंद की चुनौती को गंभीरता से लेते हुए 'आयरन लेडी' किरण बेदी को मैदान में उतार दिया है। पर सवाल ये है कि क्या ' रबरमैन' (आम आदमी रबरमैन ही होता है जिसके प्रतिनिधित्व का दावा अरविंद केजरीवाल करते हैं) 'आयरन लेडी' पर भारी पडेगा? यदि रबरमैन ऐसा करने में सफल रहता है तो निश्चय ही यह भारतीय राजनीति का एक और निर्णायक क्षण होगा। यह अरविंद केजरीवाल को विपक्षी भारतीय राजनीति के केन्द्र में लाने में सहायक होगा और यदि अरविंद केजरीवाल ने अपने पत्ते ठीक से खेले तो वे सन दो हजार उन्नीस में होने वाले आम चुनावों में सन उन्नीस सौ नवासी के बाद विपक्ष के दूसरे वी पी सिंह बन सकते हैं क्योंकि मोदी अपना कद बढाते हुए विपक्ष को अपने सामने बौना सिद्ध करने में लगे हैं और इस स्थिति में विपक्ष को एक फोर्स मल्टीप्लायर की जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही है। अगर अरविंद केजरीवाल दिल्ली में होने वाले आम चुनावों में कुछ हद तक अपने को वह मैग्नेट सिद्ध करते हैं जिसमें जनता को खींचने की क्षमता है तो विपक्षी खेमा स्वाभाविक तौर पर यह समझ कर उन्हें अपने केन्द्र में रखना चाहेगा कि वे उसके लिए फोर्स मल्टीप्लायर हो सकते हैं। भारतीय राजनीति नेहरूजी से लेकर इंदिरा गाँधी , राजीव गाँधी,अटल बिहारी बाजपेयी, सोनिया गाँधी और नरेन्द्र मोदी तक प्राय: वोट कैचर राजनीतिक व्यक्तित्वों के इर्द- गिर्द घूमती रही है। मोदी भी बी जे पी में अपने समकक्ष अन्य नेताओं से इसीलिए आगे निकल कर स्वयं को स्थापित कर सके कि उनमें वोटों को खींचकर ले आने की जो क्षमता है, वह वर्तमान में अन्य किसी बी जे पी नेता में नहीं है।

          इतिहास गवाह है कि वक्त किसी को बार-बार मौके नहीं देता। एक मौका गंवा देने के बाद दूसरा तो कतई नहीं। पर केजरीवाल पर वक्त कुछ हद तक मेहरबान दिखाई दे रहा है और शायद उन्हें दूसरा मौका मिल जाए। पर अगर यह मौका भी उन्होने सेल्फगोल करके खो दिया तो न तो उन्हें इतिहास माफ करेगा और न ही वक्त माफ करेगा। संभावनाएं अपार हैं पर राजनीति के गंदे  खेल में सफलता के लिए जनलोकप्रियता के साथ - साथ चतुराई, सजगता और एक सीमा तक मौकापरस्ती मददगार होती हैं। फिलहाल भारतीय राजनीति में इस खेल का सबसे चतुर खिलाडी नरेंद्र मोदी है जो स्वयं को दूसरे इंदिरा गाँधी के तौर पर स्थापित करने में लगा है। वी पी सिंह तक का सफर तय करने के लिए अरविंद केजरीवाल को भी उपर्युक्त गुणों का सहारा लेना पडेगा। अंततोगत्वा सन दो हजार उन्नीस ही यह निर्णय करेगा कि कौन इंदिरा गाँधी बनेगा या फिर कौन वी पी सिंह बनेगाा। पर यदि अरविंद केजरीवाल वी पी सिंह बनने में सफल हो जाते हैं तो मैं चाहूँगा कि वे अपना रास्ता थोडा बदलेंगे ताकि वे भी वी पी सिंह की गति को न प्राप्त हों विशेषकर यह देखते हुए कि उनमें भी शहादत का जामा ओढने की प्रवृत्ति वी पी सिंह की तरह ही मौजूद है। अंतिम रूप से सफल होने के लिए उन्हें एक राजनेता के साथ- साथ एक राजनीतिक प्रशासक के गुणों का प्रदर्शन करते हुए कार्य करना पडेगा।


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