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मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

गडबड पॉलिटिकल मैथ ! (व्यंग्य/Satire)

          दिल्ली और यहाँ की जनता की करामात देखिए ! अभी कुछ समय पहले बी जे पी ने अमित शाह को पॉलिटिकल मैथ का बहुत माहिर आदमी मान लिया था और अपना चीफ मैथमेटीशियन नियुक्त कर दिया। अ‍ॅमित शाह धडाधड पॉलिटिकल मैथ लगाने लगे और बी जे पी किले पर किले फतह करने लगी। पर दिल्ली पॉलिटिकल मैथ का वो समीकरण निकली जिसे हल करने में अमित शाह नाकामयाब रहे। गरीब तबका, अल्पसंख्यक और मध्यम वर्ग का एक बडा हिस्सा इस गणित के वो क,ख एवं ग निकले जिनके बारे में यह कहा जाना कि अमित शाह ने उन्हें नजरंदाज कर दिया था ; गलत होगा। अमित शाह ने ये क, ख, ग देख लिए थे और उन्हें इस बात का अंदाजा हो गया था कि सवाल का हल गलत दिशा में जा रहा है। इसीलिए  किसी जादूगर की तरह उन्होंने सिम-सिम करते हुए किरण बेदी को अचानक प्रकट कर दिया। आप और कांग्रेस छोडकर आने वालों को पार्टी में जगह और टिकट दिया। पहले चुनाव को किरण केंद्रित किया और फिर भी जब लगा कि अभी भी प्रश्न का हल गलत दिशा में जा रहा है तो चुनाव को फिर से मोदी केंद्रित करने की कोशिश की। पर वस्तुत: चुनाव अरविंद केंद्रित हो चुका था और राजनीति की ज्यामिति में इस केंद्र को बदल कर किरण या मोदी पर ले आने में अमित शाह असफल रहे।

          इस जनता का जब मन बदलता है या जब ये पलटती है तो बडे-बडे राजनीतिक महारथियों की गणित को गलत साबित कर देती है। बी जे पी के लिए नए पॉलिटिकल मैथ फार्मूले तलाशने का वक्त आ गया है । बी जे पी को मोदीजी की इमेज को प्रो-कार्पोरेट से प्रो - गरीब बनाना होगा। अपनी पार्टी और संघ के आनुषंगिक संगठनों के उन लोगों की जुबान पर ताला डालना होगा जो अल्पसंख्यकों को शंकालु और भयाक्रांत कर देने वाले बयान समय-समय पर देते रहते हैं । अगर ये एकजुट होकर तराजू के किसी पासंग पर बाट गिरा देंगे तो उसके ही झुकने की संभावना ज्यादा रहेगी।

          शाह का पॉलिटिकल मैथ का कैलकुलेशन तो खैर पहली बार गडबड हुआ है पर हमारे देश के एक और राजनीतिज्ञ हैं जिनका यह कैलकुलेशन प्राय: गडबड रहता है। वो हैं श्री नितीश कुमार जिन्हें उनके आज के धुर विरोधी सुशील मोदी ने कभी प्राइम मिनिस्टीरियल मैटेरियल बताया था। नितीश कुमार ने नरेंद्र मोदी से अपनी एलर्जी के चलते उन्हें प्रमुखता दिए जाने पर बी जे पी से अपने सारे रिश्ते तोड लिए। उन्हें  लगा था कि इससे उनके मुस्लिम वोट सुरक्षित रहेंगे। पर नरेंद्र मोदी उनके जले पर जैसे नमक छिडकते हुए प्रधानमंत्री बन गए। ये मंजर देखकर नितीश कुमार को सबसे सहूलियत भरा ये लगा कि उसूल और शहादत का जामा ओढ लिया जाए। उन्होंने  हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया और बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए एक रबर स्टाम्प जैसा दिखने वाला आदमी ढूँढना शुरू कर दिया ( कम से कम वे लालू यादव से इस मायने में अच्छे निकले कि उन्हें यह छवि अपनी पत्नी में नहीं दिखाई दी)। घूमते-घूमते उनकी निगाहें जीतनराम माँझी पर टिक गईं। नितीश बाबू को लगा कि उनकी खोज पूरी हो गई क्योंकि पॉलिटिकल मैथ के इस फार्मूले में महादलित का कांन्सटैंट भी फिट हो जा रहा था। उनको लगा कि ये नया फार्मूला जो उन्होंने खोजा है बिहार के राजनीतिक समीकरण को उनके पक्ष में सही कर देगा।

          पर नितीश बाबू की पॉलिटिकल मैथ शुरू से कमजोर रही है।  कभी वे बिहार में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान लालू यादव के साथ-साथ इस आंदोलन का युवा चेहरा थे । पर आगे चलकर लालू के आगे इनकी सारी गणित फेल रही । लालू मुख्यमंत्री बन गए और कैलकुलेशन के गडबड रहते इनको पीछे रहना पडा। वो तो भला हो जॉर्ज फर्नांडीज का जिनका साथ इन्होंने पकडा। उन्होंने इनका नाता बी जे पी से जुडवाया। इसके चलते आगे चलकर एन डी ए सरकार में  नितीश कुमार मंत्री बने। एन डी ए शासनकाल के दौरान लालू के खिलाफ तरह-तरह के पॉलिटिकल मैथ के फार्मूले आजमाए गए पर बंदा अंगद की तरह ऐसा पाँव जमाए हुए था कि टस से मस नहीं होता था। आखिरकार होते-होते एक फार्मूला सफल हुआ और नितीश बाबू  की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा पूरी हो सकी। बीमारी के चलते जब फर्नांडीज राजनीति के वीतरागी बन गए तो नितीश कुमार ने पॉलिटिकल मैथ के अपने प्रयोगों को शुरु कर दिया। पाँच साल मुख्यमंत्री रहने के बाद बिहार के अगले चुनाव के समय अपने साथ नरेंद्र मोदी का नाम देखकर ये बेहद खफा हो गए। उन्हें लगा कि लालू के पाले से मुस्लिमों को छुडाकर अपनी तरफ ले आने का यही सुनहरा फार्मूला है। बिहार में एन डी ए की भारी जीत के बाद नितीश को लगा कि उनका कद और बडा हो गया है। वे समय-समय पर नरेंद्र मोदी के नाम पर हल्ला मचाते रहे। आखिरकार बी जे पी द्वारा  नरेंद्र मोदी को नम्बर एक दर्जा दिए जाने पर नितीश बाबू ने अलग हो जाने का ऐलान कर दिया।  पर नितीश बाबू की सारी पॉलिटिकल मैथ फिसड्डी साबित हुई और पार्लियामेंट के चुनावों में इनकी पार्टी औंधे मुँह गिरी।

          नितीश बाबू ने माँझी को पतवार थमाकर जो अपना लेटेस्ट पॉलिटिकल कैलकुलेशन किया था वह भी गलत ही साबित हो रहा है। माँझी के थोडे ही दिनों में पर निकल आए और उन्होंने पतवार को आडा-तिरछा घुमाना शुरु कर दिया। नितीश बाबू को जब लगने लगा कि नौका डगमगा रही है तो वे माँझी से पतवार फिर से अपने हाथ में लेने लगे। पर माँझी है कि पतवार देने को राजी नहीं । आखिर नितीश बाबू ने माँझी को नाव से ही नदी में धक्का दे दिया । कंबख्त माँझी है कि नदी में गिरकर भी नाव पकडकर लटका हुआ है और पतवार छोडने को राजी नहीं। अगर नाव डूबी तो नितीश बाबू एक बार फिर पॉलिटिकल मैथ में फिसड्डी ही साबित होंगे। नितीश बाबू के लिए बेहतर यही होगा कि अब वे जॉर्ज फर्नांडीज वाला स्थान लालूजी को दे दें जो पॉलिटिकल मैथ के पुराने धुरंधर हैं। उन्ही की अगुआई में उनका कुछ कल्याण हो सकेगा। बडी जालिम है ये दुनिया और यहाँ रहने वाली जनता । ये जिसको देती है उसे छप्पर फाड कर देती है और जिससे लेती है उसके तन पर कपडे भी नही छोडती। इसलिए पॉलिटिकल मैथ लगाने वालों इससे संभल कर रहना सीखो!


1 टिप्पणी:

  1. प्रसन्नता हुई कि आपको आलेख अच्छा लगा। हार्दिक धन्यवाद अवधेश कुमार दुबेजी !

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