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शनिवार, 3 जनवरी 2015

वो माशूका थी तुम बीवी हो (व्यंग्य कविता/Satirical. Poem)

एक मित्र की पोस्ट से प्रेरित होकर-

उनअधूरी रातों की वो ख्वाबेपरीशाँ थी ,
इन मुकम्मल रातों की तुम ख्वाबेगफ्लत हो।।

वो शरारतभरी शराबे आतशरंग थी तो
तुम शराफत भरी शराबेमुकत्तर हो ।।

वो एक वालेह जिंदगी की फंटासी थी तो
तुम शिगुफ्ता जिंदगी की रियलिटी हो।।

एक कंबख्त वो माँ को बुला लेती थी
एक कंबख्त तुम वालिद को फोन थमा देती हो।।

वो मुफलिस जिंदगी के लिए निगाहेनाज थी
अब तुम मशहून जिंदगी पे निगाहबान हो।।

सिर तब भी धुनता था अब भी धुनता हूँ
फर्क ये है कि वो माशूका थी तुम बीवी हो।।

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