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मंगलवार, 6 जनवरी 2015

हम आखिर हूँ कौन - एलियन ! (व्यंग्य/ Satire)

          "आखिर हम हूँ कौन  ?" भागवतजी बोले हैं कि जौन भी हिंदुस्तान में पैदा हुआ है ऊ सब हिंदू है अऊर ओवैसीजी बोले हैं कि हर केऊ मुस्लिम पैदा होता है। एक जगह हम पढा हूँ कि वेद में लिखा है कि हर केऊ शूद्र पैदा होता है अऊर संस्कार से आदमी अलग-अलग वरण वाला होय जाता है। ई सब पढ ,देख अऊर सुन के हम बडा चक्कर में आ गया हूँ कि हम आखिर कौन हूँ।  कौनौ क्रिश्चियन अब तक क्लेम नहीं किया है कि हर पैदा होय वाला क्रिश्चियन होता है। अब हमै पता लगा कि हमार दोस्त टामीचन टी जे काहे हमसे कहत रहा कि क्रिश्चियन बन जाव और परभू ईशू के शरण मां आय जाव। जब कौनौ पैदाइशी क्रिश्चियन नाहीं है तौ क्रिश्चियन तौ बनावै का पडी तबै तौ क्रिश्चियन होइहैं। खैर हम तौ अपने दोस्त टामीचन की चिट्ठियन- "क्रिश्चियन बनौ -बनौ"  से इतना तंग आय गया कि जवाब देना छोड दिया और तंग होय के आखिर ऊ भी हमको चिट्ठी लिखना छोड दिया। वैसे ऊ हमका बोले रहा कि अगर हम क्रिश्चियन बन जाऊँगा तौ हमारा बियाह सुंदर मलयाली लडकी से करावैगा।

           जब हम पैदा हुआ रहा हमको अपना जात-धरम कुछौ मालूम नाही रहा। हमरे ननियौरे के सामने रहै वाले इस्लाम नाना बडा प्यार करते रहे हमको। जब हम कुछ बडा होय गया तब हमै मालूम पडा कि इस्लाम चाचा मुस्लिम हैं और हम हिंदू हूँ। हमरे नाना सुकुल रहे और हमै सुक्लाजी सुनै मां एकदम नीक नाहीं लागत रहा। एक जने केऊ जब नाना के घरे में आए के बैठत रहा और सब लोग उन्है तेवारीजी कहि के बोलावत रहा तौ हमार दिल बडा खुश होय जात रहा। हमरे घर मां एक दिन हमरे पिताजी एक ठौ नेमपिलेटिया बनवा के लाए तब हमैं पता चला कि हम तेवारी हूँ। हम बहुतै खुस हुआ कि हमार सरनेम तौ हमरै पसंद वाला है।हम जब कुछ बडा भया तो हमैं हिस्टरी मां बडा इंटेरेस्ट आवै लगा। हिस्टरी मां हम पढा कि मुसलमान लोग डिमांड करके अपने लिए अलग पाकिस्तान बनवाया। हम सोचा कि इस्लाम नाना फिर हियां कैसे रह गया। एक दिन हमार नाना अपने दवाखाना मां मरीज देखत रहे तबै हुआं इस्लाम नाना आय गए और हम उनसे पूछ बैठा नाना जब मुस्लिम लोग अपने लिए पाकिस्तान बनाया तब आप पाकिस्तान काहे नहीं गया। हमरे नाना मरीज छोड हमैं मारै दौडे पर इस्लाम नाना उनका हाथ पकड लिए और बोले ठीकै तो पूछ रहा है और बोले - "बेटवा हमैं तो तुम्हार नाना-नानी, मामा-मामी प्यारे हैं। हम इन्है छोड के कैसे जाते। बेटवा हमै तो यहीं की धरती प्यारी है। पाकिस्तान तौ जिन्ना बनाए हैं बेटवा, उन्है गवर्नर जनरल बनै का रहा। हमैं तो यहीं किसानी करना मंजूर रहा बेटवा।" हमरे पिताजी एक टेक्निकल इंस्टीट्यूट मां रहे । हुआं एक प्रिंसिपल रहे अहसन साहब ,धरम से मुस्लिम थे। एक दिन इस्लाम नाना कुछ काम से अहसन साहब के पास आए। फिर बोले हमारे दामाद आपै के हियां हैं। 'कौन' अहसन साहब पूछे। 'तेवारीजी' , इस्लाम नाना बोले। अहसन साहब बहुत चक्कर में आय गए और हमरे पिताजी को बुलाए और बोले 'तेवारीजी ई कह रहे हैं कि आप इनके दामाद हैं। आप मुस्लिम फैमिली में शादी किए हैं ई बात हमसे अब तक काहे छिपाए थे।' अब इस्लाम नाना बोले 'अरे प्रिंसिपल साहब, तेवारीजी सुक्लाजी के दामाद हैं और सुक्लाजी हमारे भाई हैं तौ ई हमारे दामाद नहीं हैं?' प्रिंसिपल साहब अपनी मूडी हिला दिए ,और करते भी क्या?

          जब हम बडा होय के नौकरी करने मुंबई पहुंच गया तो हुआं भी गडबडझाला देखै का पडा। हुआं जौनपुरिया ठाकुर लोग बहुत रहता रहा। सब लोग हमरे अंदर पता नहीं का देखा ,हमैं भी ठाकुर साहब , सिंह साहब कहने लगा। पर हम आफिस के बाहर  किसी को नहीं बताया कि हम कौन हूँ। जब हमारी सिरीमतीजी बियाह के आईं तो सब उन्हैं ठकुराइन कहि के बोलावै लगे । हमारी सिरीमतीजी चक्कर मां पड गईं। हमसे बोलीं-'आप इन्हैं सबका बताते काहे नाहीं कि आप कौन हैं।' हम कहा -'जे जऊन कहता है कहने दो,हम काहे अपना एनर्जी सबका समझावै मां वेस्ट करैं।' हमारी सिरीमतीजी हमका गौर से देखै लगीं अऊर बोलीं -' का ई सब आपका मुछिया देखके आपको सिंह कहिता है'। एक दिन जब केऊ हमै ठाकुर कहि के पुकारा तौ बोलीं-' का ई सब आपकी सोझ नकिया देख के आपको ठाकुर कहिता है?'  एक दिन एक सब्जीवाला हमरी सिरीमतीजी को टोक दिया-' ठकुराइन तोहार हथवा काहे खाली है, चुडिया-उडिया कुछू नाही पहिरे हौ' । 'अरे भैया बच्चों को पढाती हूँ। कहीं चोट-वोट न लग जाय इसलिए चूडी उतार दी है' - सिरीमतीजी बोलीं। सब्जीवाला कहै लगा-' अरे ठकुराइन हथवा मां एक ठौ तगवै बांध लेतियु। खाली हाथ नीक नाही लागत है ।' जब सिरीमतीजी घरे आईं तौ हमरे मित्र नागर जी बैठे रहे। सिरीमतीजी बोलीं -'नागर साहब सब इन्हे सिंह,ठाकुर कह के बुलाते हैं, कभी किसी को सही नहीं करते,इनकी वजह से हमको लोग ठकुराइन कह के बलाते हैं। 'नागरजी बोले -- 'अरे भाभीजी हमको कुछ लोग गुप्ताजी कह के बुलाते हैं, हम आज तक उन्हें सही नहीं किए'। सिरीमतीजी अपना सिर पीट लीं। एक दिन तो हद होय गई, सिरीमतीजी हमैं ले के अपनी एक सहेली के घरे गईं अऊर सहेली के ससुर सियौदिया साहब हमसे पूछै लगे-'आप कौन से ठाकुर हैं?' खैर , जब मुंबई छोडा तौ ई ठाकुर पुराण से हमरा पिंड छूट गया।  

          कुछ दिन हम बरेली मां रहे। हुआं एक दिन कवि कमल सक्सेनाजी हमें एक कवि सम्मेलन मां इनवाइट कर गए। खैर जब हम हुआं पहुँचे तौ मालूम पडा कि  ससुरा कवि सम्मेलन दरअसल एक कायस्थ सम्मेलन का हिस्सा रहा। कुछ लोग हमसे पूछै लगे -'आप सिरीवास्तव हो कि सक्सेना।' हम चुपचाप कविसम्मेलन छोड के पिछले दरवाजे से निकल लिए अऊर घर आय गए। कुछ दिन बाद कमलेश सक्सेना मिलै पे बोले -'त्रिपाठीजी कुछ गलती हो गई क्या? आप उस दिन कवि सम्मेलन छोड के चले आए' । हम कहा-" कमलेशजी आप तो हमै इ बतईबै नाहीं किहे कि ई कायस्थ सम्मेलन रहाऔर हम ठहरे नान-कायस्थ, केऊ हमरे ऊपर पिल पडता तौ हम काव करते?' '।  "अरे त्रिपाठीजी हम वहाँ के पदाधिकारी हैं। ऐसे कैसे होता?'  ' नहीं भैया, ई सब सम्मेलन मां हमें न बुलाया करो' हम कहा।  एक दिन हमरे घरे कवि-वैज्ञानिक सारस्वतजी पधारे अऊर बोले -'त्रिपाठीजी घर में बैठे हो, पूरा ब्राह्मण समाज इनवर्टिस वाले गौतम के कार्यक्रम में जा रहा है, मुलायम सिंह यादवजी पधार रहे हैं। चलो बैठो स्कूटर पर" । हम सारस्वतजी के आगे हाथ जोडा और क्षमा मांग लिया।

          जबसे हम कोलकाता आया हूँ  एक नवा समस्या से जूझ रहा हूँ। मुंबई मां हमारी सिरीमतीजी को मलयाली और हमका यू पी वाला ठाकुर समझत रहा और हियाँ सब हमका बंगाली अऊर हमारी सिरीमतीजी को मारवाडी समझ लेता है। बिना इंटरकास्ट मैरिज किए ही हमैं इसका आनंद प्राप्त होय जाय रहा है। एक दिन तौ विचित्रै कथा होय गई। हम लखनऊ से कोलकाता आय रहे थे। एक सिंधी भाई सपरिवार पास मां बैठा रहे। बात करत-करत बोले- 'आप तौ बंगाली होय के हिंदी अच्छा सीख लिए हैं भाई'। हम अपना मुडवा ठोंक लिए और का करते।  अबहीं कुछ दिन पहिले एक अऊर गडबड होय गई । अमेरिका से हमार सालीजी अपने बिटिया-बेटवा का लै के आय रहीं। केऊ सालीजी के बिटिया से पूछ बैठा कि अपने मौसा कै नाम जानत हौ । सालीजी कै बिटिया बोली-' हाँ'। 'ठीक है, अपने मौसा कय नाम बताओ' पूछै वाला बोल बइठा। सालीजी कै बिटिया जौन जवाब दिया कि हम सुनके चक्कर में आय गया- 'मौसा पांडे'। बिटिया का लाजिक एकदम सही रहा । जब ओकरे  लिए  घर वाले सब पांडे तौ मौसा कैसे गैर-पांडे होय सकत रहे। खैर बिटिया से हम कहा - जब हमरे पिताजी मुस्लिम के दामाद होय सकत हैं, जब हम सिंह- ठाकुर होय सकत हैं, जब हम कायस्थ सम्मेलन मां जाय सकत हैं , जब हम बंगाली होय सकत हैं तौ मौसा पांडे काहे नाही होय सकत हैं  बिटिया। खैर बिटिया जब तक रही हमैं मौसा पांडे बोलावत रही और हम ओके बोली पै बलिहारी जात रहेन।

          पर हमरा ज्ञान-चक्षु कुछ रोज पहिले खुल गवा जब हम पी के सिनेमा देखा। हम जान गया कि हम कौन हूँ। हम तौ एलियन हूँ। हम एलियन आया था , कुछ और बन गवा पर वापस एलियन बन के जाऊँगा। ई हमरा भाषा जरूर कुछ नवा होय गवा है, काहे से कि हम आमीर खान एलियन का फुलझरिया से झारा लैंगुएज सिनेमा देख के ढाँप लिया हूँ। सब लोग कहाँ-कहाँ का जय बोलता है , हम बोलूँगा-जय एलियन। जिस दिन ई सारा दुनिया जय एलियन बोल देगा सब जात- धरम का समस्या मिट जाएगा, अऊर हमरौ समस्या खतम होय जायगा कि हम आखिर हूँ कौन।


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