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सोमवार, 26 जनवरी 2015

क्या भारत का यह सोशलिस्ट रिपब्लिक इतना कर सकेगा?

क्या भारत का यह सोशलिस्ट रिपब्लिक इतना कर सकेगा?

         अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामाजी गाँधीजी की समाधि पर दोबारा हो आए। हर विदेशी मेहमान राजघाट जरूर ले जाया जाता है । दूसरी तरफ देश की राजधानी में क्रांतिकारी शहीदों के लिए एक भी स्मरण स्थल नहीं है। शायद बिस्मिल के शेर- 'शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा' की मर्यादा रखने का भी किसी के मन में विचार नहीं आया है। भारतीय क्रांतिकारियों का इतिहास,उनकी वीरगाथा, उनका त्याग एवं संघर्ष, घर-परिवार के साथ सर्वस्व न्यौछावर कर देने की भावना और जिस तरह एक समय में पूरे भारत के क्रांतिकारियों को एकजुट करने की कोशिश की गई तथा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की नींव रखी गई ; वह सब अभिभूत कर देता है। अनेक बार यह सब पढ़ते हुए जहाँ गौरव की अनुभूति होती है, वहीं कई बार आँखें गीली हो जाती हैं । क्या दिल्ली में कोई कभी इनके लिए भी एक सुन्दर स्मारक बनाने की बात करेगा जहाँ देशवासियों के साथ-साथ विदेशी मेहमान भी जाएं और उन्हें मालूम हो कि हमारे पास ऐसी भी विभूतियाँ थीं । क्या दिल्ली के चुनावों के दौरान कोई पार्टी वोट-प्राप्ति से ऊपर उठकर यह वादा भी कर पाएगी? क्या अपना सब कुछ लुटा देने वाले आजादी के परवानों के लिए भारत का यह सोशलिस्ट रिपब्लिक 66वें गणतंत्र दिवस पर इतना भर करने की दिशा में कुछ कर पाएगा?

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