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बुधवार, 24 दिसंबर 2014

जब तालिबानी मुकाबिल हो तो खवातीन को लडा दो! (व्यंग्य/Satire)

          जब तालिबानी मुकाबिल हो तो खवातीन को लडा दो!

          कारगिल की लडाई के दौरान कभी-कभी पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सैनिकों से कहते थे कि वे माधुरी दीक्षित के बदले जम्मू-काश्मीर का दावा छोड देंगे और जवाब में भारतीय सैनिक कहते थे कि जम्मू-काश्मीर रहे न रहे माधुरी दीक्षित तो हिंदुस्तान की हैं और हिंदुस्तान की रहेंगी। पर एक खबर के मुताबिक अब पाकिस्तानी तालिबानियों के मुकाबले के लिए पाकिस्तानी सरकार माधुरी दीक्षित के शार्पशूटर रूपी पाकिस्तानी संस्करण उतार रही है। यह वास्तव में पाकिस्तान का आतंकवाद विरोधी महिला कमांडो दस्ता है। कभी शिखंडी  का उपयोग कर अर्जुन ने भीष्म पितामह पर प्रहार किया था। आज पाकिस्तान के शरीफ द्वय(नवाज और राहिल) महाभारत के इस फार्मूले का पाकिस्तान में प्रयोग करने की चेष्टा कर रहे हैं। भीष्म पितामह जहाँ औरतों और नपुंसकों पर शस्त्र नहीं उठाते थे वहीं तालिबानी जेहादियों के बीच अवधारणा है कि औरतों के हाथ मरने वालों को जन्नत नसीब नहीं होती। तालिबानी ठहरा जेहादी जो धर्मयुद्ध लड रहा है,वह भी खुदा के लिए और खुदा का रास्ता जन्नत से होकर ही गुजरता है इसलिए उसकी यह मजबूरी है कि इन महिला शार्पशूटर को देखकर वह किनारा कर ले।पाकिस्तान के इस महिला शार्पशूटर कमांडो दस्ते को सख्त ट्रेनिंग दी गई है और इनका निशाना अचूक है इसलिए इनसे मुकाबिल होने पर पाकिस्तानी तालिबानियों के लिए जन्नत से वंचित हो जाने का डर वास्तविक है।

          अगर तालिबानी एक बार यह इरादा कर भी लें कि चलो इन खवातीन से दो-दो हाथ कर लेते हैं और मरने के बजाय मार कर जन्नत का रास्ता खुला रखेंगे तो फाइटर पायलट आयशा फार्रूख की अगुवाई में  महिला फाइटर पायलट दस्ता बमबारी करने के लिए तैयार है । आयशा की हजार वाट की मुस्कराहट पर तमाम हिन्दुस्तानी यूँ ही मरने को तैयार हो जाएंगे ( वे सभी जिन्होंने हिना खार का पलक-पाँवडे बिछाकर स्वागत किया था और उनके चले जाने के बाद महीनों उनकी खूबसूरती और ड्रेस सेंस की चर्चा करते रहे थे)  पर इनकी टुकडी के महिला बमों की चपेट में आने पर जेहादियों का जन्नत का रास्ता पक्का बंद हो जाएगा। इसलिए फिलहाल जेहादियों को उत्तरी वजीरिस्तान से अफगानिस्तान भागना ही मुफीद दिखाई दे रहा है।

          अपनी तरुणाई के दिनों में मैंने लिखा था- 'अपनी आँखों का सागर यूँ न लहराइए,डूब कर मर न जाएं कहीं। जो डूब गए इनमें एक बार तो शायद फिर न उबर पाएं कहीं।।' मैं तो आखिरकार किसी की आँखों में डूब ही गया जिनमें से आज तक निकल नहीं पाया हूँ। पर इस शेर को और हिजाब के पीछे से झाँकती आँखों को पढने का आनन्द तो मेरे जैसे काफिर ही उठा सकते हैं जो गालिब के इस शेर पर यकीन करते हैं-' हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल बहलाने को गालिब खयाल अच्छा है '। जहाँ तक खवातीन कमांडो देखकर  मरने- मारने के लिए तैयार जेहादियों के भागने की बात है , उनके लिए तो बकौल कतील शिफाई यही कहा जा सकता है- "जिसे मौत भी न मार पाई 'कतील' उसे जिंदगी ने मारा" । इन तालिबानी जेहादियों में से जो बुढापा आने तक शहीद होने से बचे रहेंगे उनके लिए बकौल एक शायर-'क्या खुश्क शेख की जिंदगानी गुजरी,बेचारे की न एक शब सुहानी गुजरी। दोजख के तसब्बुर में बुढापा गुजरा, जन्नत की दुवाओं में जवानी गुजरी।।

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