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गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

धर्मपरिवर्तन के मुद्दे पर राजनीतिक दलों का प्रवंचनापूर्ण व्यवहार

धर्मपरिवर्तन के मुद्दे पर राजनीतिक दलों का प्रवंचनापूर्ण व्यवहार

          संसद का शीतकालीन सत्र 22 दिसंबर को समाप्त हो गया ।इस सत्र के दौरान लोकसभा में जहाँ तय विधायी कार्यों के निष्पादन की दर 105 % रही वहीं राज्यसभा के लिए यह मात्र 21% रही। राज्यसभा को कुल आवंटित समय के मात्र 1% का उपयोग हुआ और पूरे सत्र के दौरान मात्र 2 सवालों के जवाब दिए गए। इसका एकमात्र कारण यह रहा कि विपक्ष ने धर्मपरिवर्तन का मुद्दा उठाकर इस पर प्रधानमंत्री के जवाब की मांग की और जब सरकार की तरफ से यह कहा गया कि जवाब गृहमंत्री देंगे तो विपक्ष हंगामा खडा करता रहा और उसने संसद को चलने नहीं दिया।

          यहाँ एक बडा प्रश्न यह खडा होता है कि हमारे माननीय सांसदजनों का संसद में दायित्व क्या है? संसद में उनका दायित्व विधायी प्रक्रिया में भाग लेकर उसे संपादित एवं निष्पादित करवाना है न कि संसद को चलने से रोकना और वहाँ हंगामा खडा करना है। हंगामा संसद के बाहर और पूरे देश भर में किया जा सकता है, संसद इसके लिए तो नहीं है।संसद का सत्र समाप्त हो जाने पर जब सरकार ने विलंबित हो गए विधेयकों के लिए अध्यादेश लाने का इरादा जाहिर किया है तो सीताराम येचुरी का कहना है कि यह लोकतंत्र की भावना के विपरीत है और विपक्षी दल राष्ट्रपतिजी से आग्रह करेंगे कि वे इन विधेयकों को मंजूरी न प्रदान करें। यहाँ सवाल यह उठता है कि फिर क्या विपक्ष सरकार को पैरालाइज करना चाहता है।एक तरफ तो वह सरकार को सदन में विधायी काम संपन्न नहीं करवाने देगा और दूसरी तरफ राष्ट्रपति को अध्यादेशों पर हस्ताक्षर करने से भी मना करेगा। विपक्ष के द्वारा ऐसा करना कहाँ तक देशहित में है ?  एक अन्य प्रश्न यह खडा होता है कि हमारे सांसदजन वेतन और भत्ते लेते हैं और जब उसके बाद संसद को चलने नहीं देते ,विधायी कार्यों को संपन्न नहीं करते तो उनके द्वारा संबंधित वेतन एवं भत्तों को क्या वापस नहीं कर दिया जाना चाहिए (कम से कम उनके द्वारा जो संसद के चलने को सक्रिय रूप से बाधित कर रहे हैं)। मेरे विचार से इस संबंध में नियम बनाए जाने की जरूरत है।

          नि:संदेह विपक्ष की धर्मपरिवर्तन संबन्धी जो शंकाएं हैं उनका निराकरण यदि वे प्रधानमंत्रीजी से चाहते थे तो प्रधानमंत्रीजी को ऐसा करना चाहिए था। पर यदि वे यह दायित्व गृहमंत्री को दे रहे थे तो विपक्ष को अपना विरोध दर्ज कराने के बाद विधायी दायित्वों को निभाना था।

          धर्मपरिवर्तन के मसले को विपक्ष स्वयं कितना महत्व देता है इसका पता इससे चलता है कि केरल के मुख्यमंत्री ओमन चंडी ने अलप्पुझा जिले के चेप्पड में आठ ईसाई परिवारों के 30 सदस्यों के हिन्दू धर्मांतरण में हस्तक्षेप करने से यह कह कर इनकार किया है कि राज्य में जबरन या पुनर्धर्मपरिवर्तन जैसा कोई मामला नहीं हुआ है। यह बताता है कि राजनीतिक दलों के मापदण्ड अपने लिए कुछ और हैं दूसरों के लिए कुछ और तथा संसद में किया जाने वाला सारा हंगामा प्रवंचना मात्र है।

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