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गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

पाकिस्तान आतंकवाद के कितना खिलाफ?

                  पाकिस्तान आतंकवाद के कितना खिलाफ?

          कभी लाहौर के एक कालेज में,जब भारत और पाकिस्तान के विभाजन की बात लगभग तय हो चुकी थी , कुलदीप नैयर के एक सवाल के जवाब में मुहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि विभाजन के बाद नए राष्ट्रों के बीच कोई द्वेषभाव नहीं होगा और अगर किसी पर कभी कोई संकट आता है तो हम एक साथ खडे दिखाई देंगे। पर आजादी के बाद कभी ऐसा दिखाई नहीं दिया।एक ही मुल्क रहे यह देश सदैव एक दूसरे के कट्टर शत्रु के ही रूप में दिखाई दिए ,भाईचारे की बात तो बहुत दूर है।पर 16 दिसंबर 2014 के दिन पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में आतंकवादियों द्वारा मासूम बच्चों की हत्या ने सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं हिन्दुस्तान के साथ पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया क्योंकि यहाँ आतंकवाद का अब तक का भयंकरतम चेहरा दिखाई दिया ।एक अरसे के बाद उक्त दिन दोनों देश साथ खडे दिखाई दिए।भारतीय प्रधानमंत्री ने न केवल अपने दिली दुःख का इजहार किया बल्कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से बात कर जिस भी सहायता की जरूरत हो मुहैया कराने औरआतंकवाद के खिलाफ साथ खडे होने की बात कही जो आजादी के पहले लाहौर के कालेज में जनाब मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा व्यक्त की गई भारत-पाक के संकट की घडी में साथ खडे होने की भावना के अनुरूप था। पाकिस्तान में इस आतंकी घटना पर हुई तीव्र प्रतिक्रिया और क्षोभ ने बहुत से लोगों में उम्मीद जगा दी कि अब पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ उठ खडा होगा। पर वास्तविकता इससे बहुत अलग है।

          मैंने 17 दिसंबर को पाकिस्तान के वजीरे आजम जनाब नवाज शरीफ का पाकिस्तान की जनता को संबोधन बहुत ध्यानपूर्वक सुना।इसे सुन कर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि जनाब नवाज शरीफ के दिमाग में सिर्फ उस आतंकवाद से लडने की बात है जो उनके अपने देश के लिए खतरा है। उन्होंने अपने मुल्क के अलावा सिर्फ अफगानिस्तान का नाम लिया और अफगानिस्तान के साथ मिलकर आतंकवाद से लडने की बात कही। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तानी सेनाप्रमुख जनरल राहिल शरीफ इसके बारे में विचार- विमर्श करने के लिए काबुल गए हैं। पर उन्होंने एक भी बार अपने भाषण में हिन्दुस्तान का नाम नहीं लिया न ही उस आतंक का कोई जिक्र किया जो समय-समय पर हिन्दुस्तान की जडों को हिलाने की कोशिश करता है और  जिसकी खुद की जडें पाकिस्तान में हैं । न ही उन्होंने  हिन्दुस्तान के साथ मिल कर आतंकवाद के खिलाफ किसी प्रकार की कोशिश करने की कोई मंशा जाहिर की।मैं जनाब नवाज शरीफ की पूरी स्पीच में कहीं कोई संकेत पाने की कोशिश करता रहा कि हिंदुस्तान को प्रभावित करने वाला आतंकवाद उनके जेहन में है पर मुझे यह मिला नहीं।सिर्फ एक स्थान पर मुझे आशा की एक क्षीण किरण दिखाई दी जब उन्होंने  पूरे क्षेत्र से आतंकवाद को खत्म करने तथा पाकिस्तान की जमीन को आतंकवाद के लिए न इस्तेमाल करने देने की बात कही। पर उनकी इस बात को जब मैंने जनाब नवाज शरीफ की पूरी स्पीच के परिप्रेक्ष्य में तौला तो मुझे यह स्पष्ट सा हो गया कि पूरे क्षेत्र से उनका आशय पाकिस्तान -अफगानिस्तान से अधिक नहीं है।इसी तरह उनका पाकिस्तान की धरती को आतंक के खिलाफ न इस्तेमाल न होने देने का जो आश्वासन था वह भी सिर्फ अफगानिस्तान के लिए था। अफगानिस्तान को भी उनका यह आश्वासन सिर्फ इसलिए है कि तहरीके तालिबान पाकिस्तान के लोग बडी आसानी से अफगानिस्तान में जाकर छिप सकते हैं और ऐसी स्थिति में उन पर काबू पाने के लिए अफगानिस्तान का सहयोग पाकिस्तान के लिए जरूरी है।

          काश्मीर में आजादी की तहरीक को नैतिक समर्थन के नाम पर पाकिस्तान का आतंकवादियों को समर्थन जारी रहेगा क्योंकि यह सब कुछ पाकिस्तानी सेना की मिलीभगत से और उसके सक्रिय सहयोग से होता है। भारत और उसकी शक्तिशाली सेना को उलझा कर रखने का पाकिस्तान के पास इससे बढिया दूसरा उपाय नहीं है।इसी तरह 'थाउजैंड कट्स 'की पालिसी के तहत आई एस आई अपने प्राक्सी आतंकवादी संगठनों के माध्यम से भारत को रक्तरंजित करने के प्रयासों में लगा रहेगा और सलाहुद्दीन, रियाज भटकल तथा दाऊद इब्राहिम जैसे भटके हुए भारतीयों को संरक्षण देना तथा जकीउर्रहमान लखवी और हाफिज सईद जैसे पाकिस्तानियों को पोषित करना जारी रखेगा। पाकिस्तान के सियासतदानों का पाकिस्तानी सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसके उलट पाकिस्तानी सेना सियासतदानों को नियंत्रित करती है। इसलिए जब तक पाकिस्तानी फौज की नीतियों में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है भारत पाकिस्तान की तरफ से किसी फौरी राहत की उम्मीद नहीं कर सकता।

          आतंकवाद के खिलाफ लडाई की पाकिस्तान की मंशा पख्तून और बलूच विद्रोहियों तक ही सीमित रहेगी। भारत यदि अमेरिका के सहयोग से पाकिस्तानी फौज पर कुछ दबाव बना सके तो वह कुछ हद तक भारत के लिए पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है। परअफगानिस्तान को लेकर अमेरिका की अपनी मजबूरियाँ हैं और जहाँ तक मैं समझता हूँ वह भारत के पक्ष में पाकिस्तानी फौज पर कोई दबाव नहीं बनाएगा। कुल मिलाकर लब्बोलुबाब यह है कि हिंदुस्तान को अपनी लडाई खुद लडनी होगी, आतंकी घुसपैठ को रोकने के लिए सतर्क रहना होगा, गुप्तचर व्यवस्था को चुस्त और चाक-चौबंद बनाना पडेगा,आतंकियों के मुकाबले के लिए सतर्क,समर्पितऔर संगठित बल रखना होगा तथा देश के अल्पसंख्यक समुदाय में आश्वस्ति का एक भाव पैदा करना होगा ताकि उन्हें कोई बरगला न सके।

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