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बुधवार, 17 दिसंबर 2014

पेशावर( पहले का पुरुषपुर) में नामर्दानगी पर! (गजल)

      -पेशावर( पहले का पुरुषपुर) में नामर्दानगी पर-

ऐ किस्साख्वानी बाजार वाले पेशावर, ये कैसी खबर आती है
असुर आए नए भेस में और मासूमों की जान पर बन आती है।।

कुछ अश्वत्थामाओं ने घुस तमाम द्रौपदियों की कोख उजाड़ी
खून -सने जूते-किताबें देख वो महाभारत फिर याद आती है।।

'पुरुषपुर' तेरे बौद्ध कनिष्क ने भरे-पूरे देश पर राज किया था
ऐ शहर वहीं से नामर्दानगी के कारनामे की ये कैसी बू आती है ।।

 जुदा होकर अलग घर बनाया तो क्या ,हमारा घर एक ही था
 दिल रोए न क्यूँ ,जब तुम्हारे घर में बच्चों की जान जाती है ।।

मेरा बच्चा उसका बच्चा किसी का भी हो, बच्चा तो बच्चा है
जहालतभरी दहशतगर्दी कहर बन क्यूँ इनपे बरस जाती है ।।

खबर ये थी कि एक सौ बत्तीस फरिश्तों की जानें चली गईं
बड़ी खबर ये है कि हैवानियत अब स्कूलों के रास्ते आती है।।

शैतानों को ठिकाने लगाना है तो उन्हें पालना भी तो छोड़ो
बताओ तो कि उनकी राह खुदा तक नहीं दोजख को जाती है।।

कुछ ऐसा करो कि माँ की गोद न किसी बाप का चमन उजड़े
संभल  जाओ कि इंसानियत की रूह भी अब काँप जाती है।।

पड़ोसी के घर लगाई आग की आँच खुद के घर तक आती है
तुम भी समझ लो' संजय' मासूम बेगुनाहों पे भी बन आती है।।
                                                                 -संजय त्रिपाठी

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