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बुधवार, 3 दिसंबर 2014

भोपाल की वो सर्द रात !


                                                          भोपाल की वो सर्द रात

           आज से तीस वर्ष पूर्व मैंने कम्बाइंड डिफेन्स सर्विसेज की लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की थी और मुझे साक्षात्कार हेतु 15 दिसम्बर ,1984 के दिन भोपाल सर्विसेज सेलेक्शन बोर्ड के समक्ष उपस्थित होना था। दिनांक 2-3 दिसम्बर ,1984 की रात भोपाल गैस काण्ड घटित हो गया और मैं यह आशा कर रहा था कि साक्षात्कार स्थगित हो जाएगा परंतु ऎसी कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई यद्यपि इस बीच यह खबर भी अखबारों में आ गई कि यूनियन कार्बाइड के प्लांट में बची हुई एम आइ सी गैस को भी खत्म करने के लिए उसे 16 दिसम्बर के दिन पेस्टिसाइड में परिवर्तित किया जाएगा।

          अंततोगत्वा मैं 14 दिसम्बर के दिन लखनऊ से भोपाल के लिए रवाना हो गया। इसके पूर्व रेलवे स्टेशन पर मेरी और मेरे पिताजी की बातचीत सुनकर एक बुजुर्ग सज्जन पास आए और कहने लगे- 'आप भोपाल जा रहे हैं? इस समय वहाँ जाना ठीक नहीं है।' जब हमने उन्हें प्रयोजन बताया तो कहने लगे-' मैं तो मानवता के नाते आप को मना कर रहा था,बाकी आपकी मर्जी।

          ट्रेन में मेरे साथ एक बंगाली परिवार बैठा था जो भोपाल से लखनऊ किसी विवाह समारोह में भाग लेने आया था और उसके उपरान्त वापस भोपाल लौट रहा था। उन लोगों ने बताया कि जिस रात गैस का रिसाव हुआ उन लोगों की नींद रात में तकलीफ होने के कारण खुल गई। किसी के द्वारा यह बताने पर कि यूनियन कार्बाइड में गैस लीक हो गई है वे परिवार सहित कार में बैठकर तुरंत शहर से बाहर चले गए। उन्होंने बताया कि इस समय भी लोग भोपाल छोडकर भाग रहे हैं ,अधिकांश घरों में ताले बंद हैं तथा प्रशासन ने इस आशय की घोषणा शहर में करवा दी है कि जो लोग ताला लगा कर घर छोडकर जा रहे हैं उनके यहाँ यदि ताला टूट जाता है या अन्य कोई घटना घट जाती है तो प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

           सर्विसेज सेलेक्शन बोर्ड के साक्षात्कार पाँच दिनों तक चलते हैं तथा साक्षात्कार स्थल तक  उम्मीदवारों को ले जाने और उनके रहने आदि की व्यवस्था बोर्ड के द्वारा ही की जाती है। मैं चिंतित था कि पता नहीं साक्षात्कार होगा या नहीं और यदि साक्षात्कार नहीं होता है तो  मुझे वापस लौटना होगा तथा जब तक वापस लौटना नहीं हो पाता है तब तक कहीं रहने की व्यवस्था करनी होगी और जैसा कि सूचनाएं मिल रही थीं भोपाल में प्राय: अधिकांश प्रतिष्ठान बंद थे और इस स्थिति में मैं क्या करूँगा। एक सहयात्री युवा सज्जन  लखनऊ के थे और नाबार्ड की भोपाल शाखा में तैनात थे । उन्होंने मुझे अपना पता और फोन नं. दिया एवं कहा कि किसी भी तरह की परेशानी होने पर मैं उनसे संपर्क कर लूँ या फिर उनके आवास पर आ जाऊँ।  ट्रेन लेट हो गई थी और रात 1 बजे के लगभग भोपाल पहुँची। पहाडियों में बसा भोपाल शहर रोशनी में जगमगाता हुआ दूर से सुंदर दिखाई दे रहा था , पर इस शहर के आँचल तले दूसरा ही नजारा था जो मैंने वहाँ पहुँचने पर देखा। मुझे कुछ गंध का भ्रम हुआ और जब मैंने एक सहयात्री से इसकी चर्चा की  तो वे हँसने लगे और बोले कोई गंध नहीं है , मनोवैज्ञानिक कारणों से आपको ऐसा लग रहा है।

          भोपाल स्टेशन पर गाडी पहुँची ही थी और अभी रुकी भी नहीं थी कि स्टेशन से धडाधड यात्री मय माल-असबाब के चढने लगे। कुली अलग सामान लादे-फाँदे चढे चले आ रहे थे। हम उतरने वालों के लिए उतरना मुश्किल हो गया था । किसी तरह स्टेशन पर उतरे तो वहाँ अलग ही दृश्य था। चारों तरफ एक जन सैलाब सा दिख रहा था और प्राय: सभी के सर पर गठरी या कुछ सामान लदा हुआ था। अनेक लोग कुली से बात कर रहे और कुली उन्हें आश्वासन दे रहे थे कि वे उन्हें किसी न किसी ट्रेन में सामान सहित घुसा देंगे। कुल मिला कर आलम यह था कि जैसे पूरा भोपाल शहर ही भोपाल छोडकर भाग रहा हो । किसी तरह हम लोग उतरे और अन्य यात्री तो अपने-अपने गंतव्य की तरफ चल दिए और मैं मन में किंकर्तव्यविमूढता का भाव लिए टू टायर वेटिंग रूम की तरफ आ गया।

          वेटिंग रूम में मैं एक आराम कुर्सी पर बैठ गया। मेरी आँखों से नींद गायब थी और मैं पूरी रात भर भोपाल स्टेशन पर  सामान लिए हुए और ट्रेनों में बैठकर भागते हुए लोगों को देखता रहा ,साथ ही मन में एक चिंता समाई हुई थी कि दिन में मुझे क्या करना होगा। खैर प्रात: लगभग चार बजे मुझे एक समवयस्क युवक दिखाई पडा और मुझे लगा कि हो न हो यह भी मेरे ही पथ का राही है। जब मैंने बातचीत की तो मेरा अनुमान सत्य निकला । वे भी मेरी ही तरह साक्षात्कार के लिए हरियाणा से आए हुए एक यादवजी थे। मन में एक सांत्वना का भाव आया कि चलो  एक से दो तो हुए।  प्रात: साढे छ: बजे मैंने फिर एक युवक को कुर्सी पर बैठकर पुस्तक पढते पाया और उन्हें भी अपने जैसा समझ कर जब बात की तो पता लगा कि वे आलोक पाराशर हैं जो सेंट जेवियर्स लेबर इंस्टीट्यूट,राँची से एम.बी.ए. कर रहे हैं तथा मेरी ही तरह साक्षात्कार देने आए हैं। अब हम तीन लोगों की तो टोली हो ही गई । सेलेक्शन बोर्ड के लोगों ने दिन में बारह बजे का समय स्टेशन पर मिलने के लिए दिया था। हम लोग बाहर की खाक छनने के लिए निकल पडे। स्टेशन के सामने कुछ होटल थे जहाँ पोहे के बडे-बडे ढेर लगे हुए थे । होटल वालों ने बताया कि खाने के लिए यही पोहा और चाय  है तथा दस बजे के बाद वह भी नहीं मिलेगा क्योंकि वे सब दस बजे होटल बंद करके भोपाल से बाहर चले जाएंगे । दरअसल भोपाल की जनता 2-3 दिसंबर की घटना को देखते हुए एम.आइ. सी. यानी कि मिथाइल आइसो सायनेट गैस को पेस्टिसाइड में परिवर्तित कर खत्म करने की योजना से बेहद डरी हुई थी। हम लोग पोहा और चाय का सेवन करके तथा दूकान आदि ढूँढकर कुछ अन्य सामान खरीदकर वापस स्टेशन की तरफ लौटे। रास्ते में हमने कुछ लोगों से बात करने की कोशिश की पर लोग प्राय: बात करने के मूड में नहीं थे। एक मौलाना साहब ठेले पर सामान आदि लादे चले आ रहे थे । उनसे जब हम लोगों ने बात करने की चेष्टा की तो पता लगा कि वे भी एम.आई.सी. के डर से शहर छोडकर जा रहे थे। उन्होंने बताया कि गैस के प्रभाव से उनकी माताजी का निधन हो गया है तथा वे बात करने में असमर्थ हैं।  जब व्यक्ति बहुत दु:खी अवस्था में या अवसादग्रस्त हो और फिर से सामने मौत का डर सामने मंडराता दिखाई दे रहा हो तो उसका मौन हो जाना बहुत ही स्वाभाविक है।

         स्टेशन पर बारह बजे सर्विसेज सेलेक्शन बोर्ड की गाडी आई । अब तक तीन उम्मीदवार और आ गए थे और हम छ: लोग उसमें बैठकर कैंट स्थित बोर्ड आ गए। बोर्ड में सामान्यत: जिस दिन उम्मीदवार पहुँचते हैं उस दिन केवल फार्म आदि भरवाया जाता है, पर हम लोगों से कहा गया कि अगले दिन होने वाले सारे टेस्ट ( जो साइकोलॉजिकल टेस्ट होते हैं) उसी दिन शाम को हो जाएंगे । शाम को हमें फार्म आदि भरवाने के लिए एक सज्जन आए जो जे.सी.ओ. रैंक के थे, हालांकि सामान्यत: इस कार्य के लिए कोई मेजर रैंक का अधिकारी आया करता है। उन्होंने कहा - 'स्थिति यह है कि पूरा भोपाल शहर छोडकर भाग रहा है पर फौजी आदमी बांड से बँधा हुआ है वह भाग भी नहीं सकता और शाम को अपनी चिंताओं को परे रखकर पेट में शराब आदि डालकर सो जाता है। चीफ मिनिस्टर को क्या है, वह तो कल मास्क पहनकर अपने चमचों से पूछ रहा था कि उस पर वह कैसा लग रहा है। जहाँ भी स्थिति खराब होती है आर्मी बुला ली जाती है और फौजी आदमी अपनी जान की परवाह न कर काम पर लग जाता है।' उनके जाने के बाद एक सरदारजी आए जो साइकोलॉजिस्ट थे। उन्होंने ऐसी परिस्थिति में  भी भोपाल आने पर हम सबको बहादुर बताया। साइकोलॉजिकल टेस्ट खत्म होने के बाद बताया गया कि हम सब को अगले दिन प्रात: सात बजे नहा-धोकर और नाश्ता आदि करके तैयार हो जाना है। उस दिन कोई भी टेस्ट नहीं होगा पर हम सबको अपनी डॉरमिटरी में ही रहना है। यदि गैस लीक होती है तो तुरंत एक साइरन बजेगा और नियत स्थान पर बस खडी रहेगी जिसमें हम सबको बैठ जाना है।वह बस हम सबको लेकर बीस कि.मी. दूर बैरागढ कैंट चली जाएग़ी। अगले दिन हम लोगों ने दिए गए निर्देशों का पालन किया पर गैस लीक की कोई घटना नहीं हुई और न ही हम सबके बैरागढ जाने की नौबत आई। 

          अगले चार दिनों तक हम लोगों के साक्षात्कार अच्छी तरह संपन्न हुए और हममें से तीन - मुदित शर्मा, आलोक पाराशर और आर एस यादव चयनित होकर सैन्य अधिकारी बने। मेरे उसी बैच के एक साथी आर. के. ठाकुर अगले बैच में चुने गए। वे लोग मेरा इंतजार करते रहे कि मैं अगले बैचों में उन्हें ज्वाइन करूँगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ । मेरे इन मित्रों से मेरा कुछ  समय तक पत्राचार रहा पर अब मैं आउट आफ टच हूँ।





2 टिप्‍पणियां:

  1. शायद आपके मित्रों से इस पोस्ट के माध्यम से फिर से बातचीत का सिलसिला चल पड़े ...खबरसार मिल जाय .. ..
    अच्छा लगा अपने भोपाल के बारे में पढ़कर ...

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