hamarivani.com

www.hamarivani.com

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

गाँधीजी,सांप्रदायिकता और स्वच्छता (विमर्श )

रघुवंशमणि (मेरे मित्र)-
          गाँधीजी के विचारों में सबसे महत्वपूर्ण विचार धर्मसमभाव का था। जब तक धर्म के नाम पर घृणा और पूर्वाग्रह बने रहेंगे गाँधीजी के विचार प्रासंगिक बने रहेंगे। जब तक मन साफ नहीं होगा बाहरी सफाई बेकार है। पहले मन साफ होना चाहिए। मन के कलुष पर झाडू मारिए।

अनिल अविश्रांत (रघुवंशमणिजी के मित्र)-
          रघुवंश सर जब धर्म में ही समभाव नहीं है तो उनसे संबन्धित विचारों में कहाँ से होगा. धर्म जिन भौतिक कारकों से प्रेरणा ग्रहण करता है अनिवार्य रूप से उसके पक्ष में झुका रहता है और एक बड़े तबके के शोषण का कारण बनता है.

मेरी प्रतिक्रिया-
          शहरों में दंगों का भयंकरतम रूप मलिन बस्तियों में और उनके आस-पास देखने को मिलता है जबकि सफेदपोश इलाके अपेक्षाकृत सुरक्षित रहते हैं. यह इस तथ्य का संकेतक है कि बाहरी सफाई शायद कहीं मन को भी प्रभावित करती है. जब हम अपने घर में या बाहर कहीं निष्कलंक अथवा नैसर्गिक वातावरण में बैठते हैं तभी मन में अच्छे विचार भी आते हैं. कूडे-कचरे के बीच संभवत: हम सभी अच्छे चिंतन को जन्म नहीं दे सकते. धर्म के नाम पर घृणा और पूर्वाग्रह भी व्यक्ति विशेष के चतुर्दिक प्रदूषित (विचारों का प्रदूषण) वातावरण में पनपते हैं. समग्र स्वच्छता का भाव मन और बाहर दोनों ही जगह की मलिनता के निराकरण में सहायक होगा. सारे सांप्रदायिक लडाई-झगडों के मूल में धर्म का स्थूल स्वरूप और अधिकांश लोगों की समझ का वहीं तक सीमित होना है . इस बारे में अनिल अविश्रांतजी के विचार काफी हद तक सच्चाई के निकट हैं. समग्र स्वच्छता इसके निराकरण में सहायक होगी.

रघुवंशमणि-
       तमाम वातानुकूलित कमरों में बैठे कलुषित मन वाले नेता और राजनीतिक लोग दंगे कराते हैं ।यह एक बहुत बड़ी गलतफहमी है कि दंगे होते हैं । दंगे कलुषित मन वाले राजनीतिक संभ्रांत कुटिल लोगों द्वारा कराए जाते है। इसलिए जब तक विचार और मन साफ नहीं होगा, तब तक ये समस्याएँ बनीं रहेंगी । गरीबों के सिर पर ठीकरा फोड़ना उचित नही^ । उन्हें सफेदपोश लोग ही बरगलाते हैं । साफ- सफ्फाक लोग कितनी कालिमा फैलाते हैं इसका प्रमाण वे तमाम दंगे हैं जिनके सूत्र दिल्ली की राजनीति से जुड़े रहे हैं । यह विडम्बना ही है कि साम्प्रदायिक लोगों के हाथ में ही सफाई की बागडोर है। करते गंगा को खराब देते गंगा की दुहाई! सामान्य जनता को मूर्ख बनाया जाता है और इस्तेमाल किया जाता है। उच्च स्थानो पर बैठे कुटिल लोग जब तक ठीक तरीके से सोच नहीं बदलेगे कुछ नहीं ठीक होने वाला । मीडिया के सामने झाड़ू नाचना दूसरी बात है।

मेरी प्रतिक्रिया-
          दंगे जहाँ कई बार प्रायोजित होते हैं वहीं स्वत:स्फूर्त भी होते है। स्वत:स्फूर्त दंगों के पीछे प्राय: गोवध, धार्मिक जुलूस और उन पर पत्थर फेंका जाना, उसका मंदिर या मस्जिद के बगल से निकलना, मस्जिद के सामने हिन्दू धार्मिक संगीत का बजना अथवा हिन्दू धार्मिक कार्यक्रम के समय अजान का होना, दो अलग-अलग संप्रदायों के जुलूसों का आमने-सामने आ जाना,उन्हें एक खास रास्ते से ले जाने की जिद करना जैसे कारण होते हैं । इन दिनों इनमें एक नया कारण समुदाय विशेष की लड़की को छेड़ा जाना और जुड़ गया है। दंगा प्रायोजित हो अथवा स्वत:स्फूर्त दोनों में ही लोगों की नासमझी एक बहुत बड़े कारक और उत्प्रेरक ( catalyst)  दोनों का काम करती है। इसी का फायदा सांप्रदायिक जहर फैलाने वाले उठाते हैं । मैंने अपनी पहले की टिप्पणी में कहा है कि धर्म के नाम पर घृणा और पूर्वाग्रह भी व्यक्ति विशेष के चतुर्दिक प्रदूषित (विचारों का प्रदूषण) वातावरण में पनपते हैं भले ही ऐसा व्यक्ति वातानुकूलित वातावरण में रह रहा हो तो भी क्या? जिन्हें आप सांप्रदायिक कहते हैं उनका सत्ता में आना भी उनकी असफलता का द्योतक है जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं । उन्हें स्वयं का विश्लेषण करना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ। वे क्यों भारतवासियों की नजर में असफल थे जिसके कारण उन्होंने तथाकथित साम्प्रदायिक लोगों के हाथों में सत्ता सौंप दी । उन्हें स्वयं से यह प्रश्न भी करना चाहिए कि उन्होंने गाँधीजी को क्यों अनाथ छोड दिया था जिससे एक दक्षिणपंथी को गाँधीजी को अपना बनाने का मौका मिल गया । अब यह तथाकथित कम्यूनल लोग लोग पावर में आ गए हैं और पूर्ण बहुमत के साथ अगले पाँच साल तक रहेंगे। तो आने वाले पाँच सालों तक क्या उनके द्वारा उठाए जाने वाले अच्छे कदमों का विरोध भी मात्र इस आधार पर किया जाए कि वे कम्यूनल हैं । क्या सड़क पर,स्टेशन पर और चौराहों पर पड़ा कचरा आपको विचलित नहीं करता? क्या यह कचरा और गंगा में डाला जाने वाला कचरा मात्र कम्यूनल लोगों का योगदान है? क्या इसके लिए सभी भारतीय जिम्मेदार नहीं हैं और क्या सभी भारतीयों को अपने चारों तरफ के वातावरण को साफ रखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए? वैसे मुझे व्यक्तिगत तौर पर मोदी के स्वच्छता अभियान की सफलता में संदेह है क्योंकि हम भारतवासी अपनी आदतों विशेषकर गंदी आदतों को बदलेंगे यही संदेहास्पद है, पर एक अच्छा प्रयास सराहनायोग्य है। अगर कोई आसमाँ की तरफ पत्थर उछाल कर सूराख करने की कोशिश भर कर रहा है तो भी उसके हौसले की दाद देनी चाहिए. मेरे पिताजी कहते थे कि यदि अपने मातहतों से काम कराना चाहते हो तो पहले खुद काम करके उनके सामने उदाहरण प्रस्तुत करो । मैंने अपने काम के दौरान इसे सफलतापूर्वक आजमाया है। वही काम मोदी कर रहे हैं, इसमें महज फोटो खिंचवाने जैसी बात नहीं है। सांप्रदायिकता और स्वच्छता दो अलग-अलग मुद्दे हैं जिनका एक दूसरे में घालमेल करने से एक अच्छी बात दब जाएगी । सांप्रदायिकता का विरोध एक अलग मुद्दे के रूप में किया जाना चाहिए। मन के कलुष को साफ करने के लिए अलग दूसरे प्रयासों की जरूरत है। वैसे मन की सफाई करना बाहरी भौतिक सफाई से बहुत अधिक कठिन और श्रमसाध्य है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार !
    बहुत सुन्दर रचना
    आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा !
    मै आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हूँ
    मेरा आपसे अनुरोध है की कृपया मेरे ब्लॉग पर आये और फॉलो करें और अपने सुझाव दे !

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद मनोजजी!

    जवाब देंहटाएं