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शुक्रवार, 9 मई 2014

बेगानी शादी और जान अब्दुल्ला की! ( व्यंग्य/ Satire)

          इन दिनों हमारे भारतवर्ष में एक माह से भी अधिक लम्बा चुनाव महोत्सव चल रहा है. नेताओं का एड्रेलीन का स्तर काफी ऊँचाई पर है. देश को स्वर्ग बना देने जैसे वायदे तथा प्यार और मनुहार के साथ-साथ धमकियाँ और गालियाँ भी ली- दी जा रही हैं. नए-पुराने मुद्दे उठाकर पूरी शक्ति के साथ-साथ वाकयुद्ध लडा जा रहा है. जनता को भी इसमें आई पी एल जैसा मजा आ रहा है या यूँ कहें कि लोग इसके आगे आई.पी.एल. भूल गए हैं. परसों कोलकाता के  काँकुरगाछी  में जिन लोगों ने भी नरेंद्र मोदी का  भाषण आमने-सामने   या फिर टी.वी. पर सुना वे सभी अगले दिन बस उसी भाषण की चर्चा में लगे थे. यहाँ तक कि बडे-बडे क्रिकेटप्रेमी भी क्रिकेट भूल इसी कार्य में लग गए, आई. पी. एल. को मारो गोली! वामपंथी भाई भी हतप्रभ थे कि जो भूमिका उन्हें निभानी चाहिए वह खांटी दक्षिणपंथी कैसे निभाने लगा. पर इस भाषण से किसी को बहुत चोट पहुँची और जिसे चोट पहुँची वह अगले दिन अपने भाषण में सारी  बाँगला  संस्कृति और सभ्यता तथा कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के आने वाले जन्मदिन  को भूलकर वैशाखनंदनजी को याद कर रहा था. जब किसी की बात  किसी को तिलमिला दे तो बडा स्वाभाविक है कि उसे वह बात जफीर और शहीक(उर्दू में ढेंचू-ढेंचू के दो भेद जिनमें से एक उसकी छोटी तान और दूसरा बडी तान को दर्शाता है) जैसी लगे. पर अगर यह जफीर और शहीक किसी के ज्ञानचक्षु खोलने में सहायक हों तब बात है. प्रकृति का कब कौन सा दृश्य किसी के लिए दार्शनिक अर्थ ग्रहण कर ले और वह ज्ञान प्राप्त कर मोह-माया के बंधनों से मुक्त हो जाए, भरोसा नहीं.सारा संस्कृत साहित्य ऐसे उदाहरणों से भरा पडा है. पर हमारे  राजनीतिज्ञ!  वे मोह-माया के बंधनों से मुक्त हो जाएं ? अजी राम भजो! जो अस्सी बसंत देख चुके हैं वे भी बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने और मक्खन चखने की आस लगाए बैठे हैं. कब्र में पैर लटके हों तो भी किसने कहा कि दूल्हा नहीं बन सकते. ये अच्छा है कि अभी तक किसी को गिन्नीज बुक में दर्ज मोरारजी देसाई का   शपथ लेते समय दुनिया का सबसे बुजुर्ग राष्ट्राध्यक्ष होने का रेकार्ड तोडने  का ख्याल नहीं  आया है. 

          कल कोलकाता में  नन्हे बाबा का आगमन हुआ. नन्हे बाबा ने कहा कि वे ओबामा के हाथ में वो घडी देखना चाहते हैं जिस पर मेड इन कोलकाता लिखा हो. इसके पहले वे मिर्जापुर में ओबामा के हाथ में मेड इन मिर्जापुर घडी और तेलंगाना में ओबामा के हाथ में मेड इन तेलंगाना घडी देखने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं. नन्हें बाबा की ये इच्छाएं स्वागतयोग्य हैं पर अगर ओबामा नन्हें बाबा की इन  इच्छाओं को सुन रहे होंगे तो सपने में उन्हें घडियाँ ही घडियाँ दिखाई देती होंगी और वे रात भर करवटें बदलते होंगे . भारतवर्ष के छ: सौ जिलों की मेड इन घडियाँ  बाँधने की विवशता देखकर उनका जी व्हाइट हाउस से  भागने का हो जाएगा. मैं नहीं समझ पाता हूँ कि नन्हें बाबा को घडियों से इतना लगाव क्यों हो गया है जबकि इन दिनों तमाम लोग मोबाइल में समय देख लेते हैं और घडियाँ बाँधने के झंझट से मुक्ति पा चुके हैं. नन्हे बाबा परिवर्तन के तौर पर कहीं  मेड इन .............मोबाइल, मेड इन................ कंप्यूटर  की बात करते. कोलकाता में बंद पडी जूट और अन्य मिलों की बात करते , मिर्जापुर में वहाँ के कालीन उद्योग की बात करते, तेलंगाना में फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की बात करते तो जरा बात बनती. गाँधी परिवार को संघियों का मुकाबला करने के लिए अच्छे भाषण लेखकों की  बहुत जरूरत है.

          चुनाव का यह महोत्सव सरकारी कर्मचारियों के लिए 'बेगानी शादी और जान अब्दुल्ला की' जैसा हो गया है. नन्हें बाबा की तीन बूथों में ई वी एम के साथ फोटो छप गई और चुनाव आयोग तीन प्रेसाइडिंग अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने जा रहा है. बेचारे कोस रहे होंगे उस दिन को जब नन्हें बाबा ने उन्हें अपने दर्शनों से कृतार्थ किया था. चुनाव ड्यूटी में लगा सरकारी कर्मचारी भगवान से यही मनाता है कि उसके बूथ पर ठीक से चुनाव संपन्न हो जाए और वह सकुशल घर पहुँच जाए. कुछ इलाके तो ऐसे हैं कि वहाँ ड्यूटी पर जाने वाला सरकारी कर्मचारी इस बात के लिए ही सशंकित रहता है कि वह फिर वापस लौटकर अपने बाल-बच्चों से मिल पाएगा या नहीं. इस चुनाव महोत्सव के दौरान कानून- व्यवस्था देखने वाले अधिकारियों की हालत अलग खराब रहती है. कहाँ कब कौन नेता पधार रहा हो और कहाँ क्या अनहोनी हो  जाए, बेचारे अधिकारी की जान पर बन आती है. प्रांजल यादव के लिए सुरक्षा कारणों का हवाला देकर बेनियाबाग में मोदीजी को रैली की अनुमति न देना भारी पड गया . कोई उन्हें पक्षपाती तो कोई मुलायम सिंह यादव का रिश्तेदार बता रहा है जबकि मैंने कहीं पढा कि मायावती उन पर भरोसा करती थीं. सो इस बेगानी शादी में किस सरकारी कर्मचारी या अधिकारी को कब कौन किसका एजेंट बता दे भरोसा नहीं. बेचारा अब्दुल्ला इस बेगानी शादी में अपनी जान बचाए तो कैसे, दीवाना होना तो बहुत दूर की बात है. फिलहाल तो वह इस बेगानी शादी के खत्म होने की राह ही देख सकता है.

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