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गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

भारतीयता, हिंदुस्तानियत और धर्मनिरपेक्षता

          आज कोई कह रहा है  कि भारतीयता खतरे में है,कोई कह रहा है कि हिंदुस्तानियत खतरे में है और  कोई कह रहा है कि धर्मनिरपेक्षता खतरे में है. लोग इन्हें बचाने की अपीलें कर रहे हैं.  ऐसे लोगों से मेरा कहना है कि वे भारतवर्ष की समुत्थान शक्ति (Resilience)  को कम करके आँक रहे हैं. वे इस  देश को कमतर आँक रहे हैं. इस देश की धर्मनिरपेक्षता कोई मिट्टी का ढूहा नहीं जिसे कोई एक लात मार कर गिरा देगा.

          यह देश उन तमाम लोगों से बहुत बडा और महान है जो स्वयं को इसका भाग्यविधाता समझ रहे हैं. कोई खुद को कितना भी बडा समझता हो, किसी में वह कुव्वत नहीं है कि इस देश को नाजीकाल का जर्मनी बना देगा या किसी खास समुदाय को कुचल देगा या फिर सारे भ्रष्टाचार के बावजूद गद्दी सँभाले रहेगा. इस देश की अधिकांश जनता सीधी-सादी है  जिसे दो वक्त की रोटी और पहनने को कुछ मोटा-झोटा चाहिए. इतने में ही वे संतुष्ट रहते हैं. हाँ पिछले बीस-पचीस वर्षों में जो नवजवान पीढी तैयार हुई है वह  जरूर जीवन की बेहतरी चाहती है और यथास्थितिवाद से संतुष्ट नहीं है. मध्यवर्ग भी महत्वाकांक्षी  हो गया है और 'कोउ नृप होय हमहि का हानी' की भावना को त्याग कर  बेहतर शासन व्यवस्था की आकांक्षा में वोट देने के लिए भी निकलने लगा है तथा इन दो वर्गों की मानसिकता में परिवर्तन के कारण वह जनता भी प्रभावित हुई है जो कुछ भी मिल जाए, प्रसन्न रहा रहती  थी और परिवर्तन की आकांक्षी हो गई है. 

           पर  कोई कुछ भी  करे यह सीधे-सादे लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे ऐसा नहीं है. इंदिरा गाँधी , जिन्हें इन सीधे-सादे लोगों ने बहुत ही प्यार दिया था,जब निरंकुश बनने लगीं तो इन्होंने उन्हें अर्श से फर्श पर ला दिया. राजीव गाँधी को इन्होंने रिकार्डतोड बहुमत दिया पर जब बोफर्स तोप को लेकर भ्रष्टाचार के  आरोप  लगे तो इन्होंने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया, आजादी के बाद  पिछले तिरसठ वर्षों में इस देश ने बार-बार दिखाया है कि समय के साथ-साथ यहाँ का लोकतंत्र अपनी सारी सीमाओं के बावजूद और सुदृढ एवं समझदार बना है तथा यह प्रक्रिया अभी भी चल रही  है. 

          यह देश धार्मिक होने के बावजूद धर्मनिरपेक्ष इसलिए है कि यहाँ के लोग स्वभाव से  ही धर्मनिरपेक्ष हैं. धर्मनिरपेक्षता उनका स्वभाव है, उनका चुनाव नहीं. यह स्वभाव स्थाई  है जिसे  बदला नहीं जा सकता और इस पर सदियों से  तमाम आघात होने के बावजूद यह यह यूँ ही बना हुआ है  . वे मंदिर को देखकर सर झुकाते हैं तो पीर बाबा की मजार  देखकर सजदा भी करते  हैं.  हो  सकता है कि  इस देश के सीधे  लोगों में से कभी कुछ लोग भावनाओं में बह जाएं या किसी के कहने से भरमा  जाएं तो भी वे  बडी ही जल्दी अपनी गलती का अहसास भी कर लेते हैं और उसे सुधार लेते हैं. जिस भी राजनीतिज्ञ को इस देश  के मूल स्वभाव  "सर्वधर्म समभाव" का ज्ञान है   वह कभी भी इस स्वभाव पर प्रहार करने  की हिमाकत  नहीं करेगा क्योंकि इसका उसे  क्या परिणाम भुगतना पडेगा वह उसे मालूम है. सभी जानते हैं कि देश  की जनता बेहतर भविष्य,विकास और सुरक्षा के लिए वोट दे  रही है किसी धर्म अथवा संप्रदाय को आगे बढाने या फिर किसी धर्म या संप्रदाय  के साथ दोयम  दर्जे का व्यवहार करने के  लिए नहीं. औरंगजेब जैसा प्रबल शासक भी अपना कट्टरपंथी एजेंडा तब तक नहीं लागू कर सका था जब तक मिर्जा राजा जयसिंह और राजा जसवंत सिंह जिंदा  थे. इसलिए यदि आज की परिस्थितियों में किसी का कोई छिपा कट्टरपंथी एजेंडा है तो भी वह उसे लागू नहीं कर सकता. प्रत्येक दक्षिणपंथी को दक्षिण छोडकर केंद्र की तरफ देखना पडेगा क्योंकि उसे मालूम है  कि इसी से वह  उस जगह मजबूती से खडा हो पाएगा जो उसे जनता की कृपा से मिली है. यदि किसी को भी इस प्रकार का मुगालता होगा कि जनता ने विकास के लिए वोट न देकर किसी प्रकार के ऐसे  एजेंडे के लिए वोट दिया है  जो इस देश के मूल स्वभाव के विरुद्ध है  तो यह जनता उसे सबक सिखाने में  देर नहीं करेगी.

          इसलिए जो लोग "भेडिया आया,भेडिया आया ' की तर्ज पर भारतीयता ,हिंदुस्तानियत तथा धर्मनिरपेक्षता को खतरे में बता रहे हैं उनसे मेरी अपील है कि अनावश्यक जनता को डरवाने का प्रयास  न कर नकारात्मकता  से बचें तथा जनता से सकारात्मक पहलुओं की चर्चा कर सकारात्मक  आधारों पर वोट देने की अपील  करें.

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