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शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

काली-पीली सिस्टर!

       कुमार  विश्वासजी  द्वारा  संचालित  कुछ कवि  सम्मेलनों  में  मैंने बतौर  श्रोता  शिरकत  की  है  और  उनके संचालन  को  मैंने  काबिल-ए-तारीफ  पाया है. पर  इधर  उनके  पहले  के  कुछ  कार्यक्रमों  को  लेकर  आपत्तियाँ  उठाई  गई  हैं.  मुआमले  पर  गौर  करने  पर  ये आपत्तियाँ  जायज  लगती  हैं. वस्तुत: लोगों  का  मनोरंजन  करने के  प्रयास  में कार्यक्रमों  की  प्रस्तुति करने  वाले  कई  बार  यह  भूल  जाते    हैं  कि  सार्वजनिक  रूप  से क्या  कहना  उचित   है  और   क्या  कहना  अनुचित  है. यह  कई  बार  कार्यक्रमों के  दौरान  मैंने  अनुभव  किया है. पर कुमार  विश्वास प्रबुद्ध  हैं , इसलिए यदि  वे  यह  कह  कर  अपने  को  बचाने का  प्रयास  करें कि  उन्होंने लिखी  हुई  स्क्रिप्ट  पढी  है तो गलत  है.  वे  अपनी  तुलना  अभिनेताओं से  नहीं कर  सकते  क्योंकि  वे  अभिनय  नहीं  कर  रहे  थे,  बल्कि  बतौर एक  कवि  अपनी  प्रस्तुति  दे  रहे  थे.  कुमार  विश्वासजी द्वारा केरल की  नर्सों को  काली - पीली  सिस्टर  कहने  का मैं  तीव्र  विरोध  करता  हूँ. ऐसा  लगता  है  कि  उन्हें  इनकी सेवाओं   का  कोई  अनुभव  नहीं  है  अन्यथा शायद  उनके  हृदय  से  स्वत:  सिस्टर  शब्द  निकलता . हमारा  किसी  से  कोई  भी प्राकृतिक  रिश्ता कभी  भी उसके  रंग-रूप पर  निर्भर  नहीं  करता. हम  अपनी  माँ को  और  बहन  को  सदैव  उसी  रूप  में  देखते  हैं  भले  ही  उनका रंग-रूप कुछ  भी  हो. फिर  मैं  यह  नहीं  समझ  पाता कि  कुमार  विश्वास  ने  यह  कैसे  कहा कि  काली-पीली  नर्सों  को  देखकर स्वत:  ही ये  विचार  आता  है  कि  ये  सिस्टर ही  हैं. यहीं  वे  आगे  कहते  हैं  कि  अब  उत्तर  भारत   से  नर्सें  आने  लगी  हैं - एकदम  शानदार. किसी  को  शानदार  कहना  गर्व  की   बात  हो  सकती  है  पर  यहाँ  उन्होंने  जिस  संदर्भ में इस  शब्द  का  प्रयोग किया  है वह उस  पेशे  की अवमानना है जो  मानवता  से  और  सेवा  से  जुडा  हुआ  है. दूसरे केरल की हमारी  जो  बहने  नर्सिंग  से  जुडी हुई हैं  यदि  उनके  कार्य को, उनकी  भावना  को और  उसके  प्रति  उनके समर्पण को  कोई देखे तो  निश्चय  ही  वह  यह   स्वीकार  करने के  लिए  बाध्य  होगा  कि  वे  शानदार  हैं; कुमार  विश्वास  द्वारा इस  शब्द  के   प्रयोग  के  संदर्भ  में  नहीं बल्कि  इसके   संपूर्ण  संदर्भों में. यहाँ  मैं कुछ   अनुभव  बाँट  रहा  हूँ जो  शायद  आपके मन  में  भी  इस  धारणा को  पुख्ता  करेंगे.

       आज  से  ढाई  वर्ष पूर्व  मेरी  धर्मपत्नी को कुछ   तकलीफ  के  कारण डॉक्टर  के  पास  ले   जाना  पडा.  . डॉक्टर ने  सर्जरी  करने  का सुझाव  दिया और   वह  अस्पताल  में  भर्ती हो  गईं. उसके  तुरंत बाद उनके  कुछ  चेक-अप  होने   थे. बेड  के  लिए  एलॉटेड नर्स की  ड्यूटी  शायद  खत्म होने  वाली  थी. वह  कम  उम्र की  थी. उसे  देखकर  लगता था कि उसे  अभी  कालेज  में  होना चाहिए  था. उसने  बडी    तत्परता के  साथ  दौड-दौड कर  सारी औपचारिकताएं  पूरी  कीं. उसके  बाद  मेरी श्रीमतीजी से  कहा  कि  मेरी ड्यूटी  अब  खत्म  हो  रही  है  अब  आपकी देख-रेख  के  लिए कोई  और  आएगा.  उसके  उपरांत वह मुस्कराती  हुई  तथा  बाय  करते  हुए  चली  गई. मैं और  मेरी श्रीमतीजी बातचीत  के  दौरान अभी  भी  उसे  याद  करते  हैं. अपने  काम  को   हँसते  और  मुस्कराते  हुए दौड कर करना, वह  भी  तब  जब  ड्यूटी खत्म  होने वाली  हो और  एक  नया  काम सर पर  आ  जाए, कितने  लोग  करते  हैं ? यह  केरल की  एक  मलयाली  सिस्टर  थी. जब  मैं  अपनी श्रीमतीजी को  सर्जरी  के  लिए  ले  गया तथा  बाद  में  वहाँ  से  लाया तो  भी  मेरे  साथ  एक  मलयाली  सिस्टर थी जिसने इस  पूरी  अवधि  के  दौरान यह   सुनिश्चित  किया कि  सभी  कुछ  व्यवस्थित और  अच्छी  तरह  से  हो. मेरी  श्रीमतीजी  के अस्पताल  में  रहने की  अवधि के  दौरान  उन  नर्सों  ने  अच्छी  तरह  उनकी देखभाल  की और  औषधि, भोजन, आराम तथा  परिचर्या  सुनिश्चित  की  जिसके  कारण मैं  अपनी  श्रीमतीजी  के  अस्पताल  में  होते  हुए  घर  में  अपने  अन्य दायित्वों को  अच्छी  तरह  देख  सका. बीमारी  और  शल्यक्रिया  के  दौरान तथा  बाद में कई  बार  ऐसा होता है  जब  मरीज  या  उसके  घर  वाले  भावुक  हो  जाते  हैं.  मेरी  धर्मपत्नी   के  साथ  जब  भी  ऐसे  क्षण   आए  तो  उनका ढाढस बँधाने  के  लिए  ये  मलयाली  सिस्टर  सदैव  उनके पास  होती थीं . दो-चार  दिनों के  बाद  अस्पताल  जाने  पर  मैं  देखने  लगा  कि  मेरी  श्रीमतीजी  ठहाका मारकर हँसने और  हँसी  मजाक  करने  में  लगी  हुई  हैं .  मुझे  आखिर  कहना पडा  कि  तुम्हें  देखकर  तो  यह  लगता नहीं  कि  अस्पताल  में  हो  बल्कि  ऐसा  लग  रहा  हो  जैसे  पिकनिक  करने  के  लिए  आई  हो.  पर  आप यह सोचिए  कि  किसी  मरीज  के  लिए  इससे  अच्छी  बात  और  क्या हो  सकती है कि  अस्पताल  पिकनिक स्थल  बन  जाए. एक सप्ताह  के  बाद  मैं अपनी धर्मपत्नी को  अस्पताल से  घर लाने  लगा. उस  समय  इन  सिस्टर  ने  सारी   औपचारिकताएं  पूरी   कीं . मुझे  सारे  निर्देश  बताए. पूरी केसहिस्ट्री मेरे हवाले  की.  जब  मैं  अपनी श्रीमतीजी को  जो व्हीलचेयर पर थीं लेकर लिफ्ट द्वारा नीचे  के  फ्लोर पर  आया और  बाहर निकला; उसी समय कुछ  नर्सें जो  मेरी  श्रीमतीजी के  वार्ड में ड्यूटी पर रहती  थीं, दूसरी  तरफ  से  आ  रही  थीं. यह  सब मेरी श्रीमतीजी को  विदा  कहने के  लिए  आईं  और  उनसे   गले  मिलीं. कुछ  सिस्टर  उनके  गाल  से  गाल  सटा कर  चुम्बन  लेने लगीं. मैंने  अपनी धर्मपत्नी  से  कहा  कि  ये  सब  तो  तुम्हें मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता   की प्रतियोगियों  की  तरह  विदा  कर  रही  हैं. इस घटना के कुछ महीनों के बाद उक्त अस्पताल में आग लग गई और इन्हीं मलयाली नर्सों ने कई मरीजों की जान बचाई  और इस प्रयास में तीन-चार नर्सों की जान चली गई.


       मैं  कुमार विश्वास साहब  से यह  कहना  चाहूँगा  कि  अगर  उन्होंने किसी और की  लिखी   स्क्रिप्ट पढी  थी  जैसा   कि  उनका कहना है ; तो  वह  निहायत  ही   घटिया  आदमी  था जिसने  वह  स्क्रिप्ट लिखी   थी और उन्हें  उस  स्क्रिप्ट को  पढने से  पहले  अपने स्वविवेक का  इस्तेमाल  करना चाहिए  था. वैसे  प्राय: हम  सब  भारतीय  कहीं  न कहीं  कुछ  नस्लवादी  हैं.  हम  प्राय: अपने ही  देशवासी को इंसान के  रूप   में  परिभाषित करने के  बजाय उसके जाति, धर्म और  प्रांतीयता  के  आधार  पर  परिभाषित  करते हैं और सांस्कृतिक वैभिन्य, खान-पान या  रंग-रूप  के आधार पर अलग-अलग समुदायों  को  उपहास  का  पात्र बनाते हैं. . कुछ  अवगुणों को  समुदाय विशेष से   जुडा  मानते  हैं  और  कुछ  गुणों  को  सिर्फ अपने  समुदाय विशेष  की  बपौती मानते   हैं.  यह  समस्या उन  लोगों  के   साथ   कुछ  ज्यादा  है  जो  कभी  अपने  दायरे  से  बाहर  नहीं निकले और  कुएं  के  मेढक बने  रह गए. कुछ  ऐसे  हैं  जो  कुएं से  बाहर निकलने  पर  भी  कुएं के  मेढक की  मनोवृत्ति को  नहीं  छोड  पाए. यह लोग गली  के उस श्वान की  तरह  हैं जो  दूसरी गली  के  श्वान को  देखते  ही  भौंकना  शुरू  कर  देता  है. ऐसे  लोगों   से  मैं  कहना चाहूँगा  कि  दूसरे  की संस्कृति, मान्यताओं, परंपराओं, खान-पान, वेश-भूषा  और  रंग-रूप  का  आदर  करना सीखें. विभिन्नता  में  एकता  ही  हम  भारतीयों   का वैशिष्ट्य है. कृपया इस पर प्रहार   न  करें  तो   देश  की  बडी  सेवा  होगी.

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