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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

कुकडूँ-कूँ-कुकडूँ-कूँ! हैप्पी न्यू इयर! (व्यंग्य-Satire)

          एक कसाई  की दूकान ' ताजा मटन शॉप'  और उसके बगल में एक मुर्गे तथा चिकन वाले की दूकान 'दि बेस्ट चिकन मीट शॉप ' है . कुछ दूरी पर एक देशी शराब का  ठेका 'रस अमृत' है  तथा उसके सामने ही' विक्टोरिया इंग्लिश वाइन शॉप' है. पास में ही 'दि डिवाइन ईटरी' नाम का रेस्टोरेंट है. हर जगह भारी भीड  उमडती नजर आ रही  है. कसाई की दूकान के भीतर दो बकरे मार कर टांगे गए हैं.  चार बकरे  दूकान के बाहर बँधे हुए हैं. मुर्गे तथा चिकन  वाले की दूकान  के बाहर दो बडे-बडे  दडबे रखे हुए हैं जिसमें से एक में मुर्गे बंधे हुए टुकुर- टुकुर ताक रहे हैं. दूसरे दडबे में चूजे जैसे दीन-दुनिया से बेखबर एक दूसरे के साथ  खेल रहे हैं तथा महीन-महीन सा कोलाहल कर रहे हैं.  तभी बाहर बँधा चितकबरा बकरा कुछ बुदबुदाता है. उससे कुछ दूरी पर स्थित मुर्गे के दडबे में से एक लाल मुर्गा उसे गौर से देखता है.

लाल मुर्गा अपने बगल के काले  मुर्गे से पूछता है -"ये चितकबरे चाचा  क्या कह रहे हैं?"

काला मुर्गा- "लाली अभी तो तुम्हारी उमर इतनी हुई नहीं. क्या कान कुछ कमजोर हो गए हैं? मैं उनकी  आवाज  तो सुन पा रहा हूँ.पर मैं बकरों की भाषा समझता नहीं . तुम ऐसा करो सफेदू चाचा(सफेद बकरा जो चितकबरे के बगल में खडा  है) से पूछो , वे तो हमारे साथ ही रह  रह रहे थे. वे मुर्गों की भाषा समझते हैं."

लाल मुर्गा आवाज लगाता है- "सफेदू चाचा! सफेदू चाचा!"

सफेदू लाली की तरफ  देखता है और कहता है-" यहाँ जान पर बनी हुई है. तू क्यों  चिल्ला रहा है?"

लाली-" वो तो जो यहाँ आ गया उस पर बनी ही रहती है. मैं तो ये पूछ रहा था कि ये चितकबरे  चाचा क्या कह               रहे हैं?

सफेदू-" ये कह रहे हैं- भीड देख रहे हो, आज हममें से कोई लौट कर घर नहीं जाएगा."

लाली-" हाँ चाचा भीड तो बहुत है और ये भीड लगता  है कि हम पर शामत ढाने  वाली  है. पर चाचा आज न तो              हिंदुओं का कोई त्योहार है,न ही मुसलमानों का और न ही ईसाइयों  का. पर इस भीड में तो देखो  जय                भी हैं,जगजीत भी हैं,रहमत भी हैं,डेविड  भी हैं . आखिर ये कौन  सा त्योहार है चाचा."

सफेदू- " अरे ये इंसान  कंबख्त जो इंसान कहलाने लायक  नहीं हैं, नया साल मनाने की तैयारी में हैं"

चितकबरा-" और नए साल को मनाने का सबसे बेहतर तरीका ये यही समझते हैं कि हमको जिबह कर दें और                   पका कर खा जाएं. साथ-साथ "रस अमृत" और " विक्टोरिया" में मिलने वाले द्र्व्य का कम  से कम                   इतना पान कर लें कि उल्टी आने लगे या फिर जमीन पर लोट जाएं."

कालू (काला मुर्गा)- " अरे चाचा !वो देखो मेरे बगल  वाले घर में रहने वाला रमुआ रिक्शेवाला रस-अमृत पर                                     लाइन में लगा हुआ है. जब ये घर पहुँचता है इसकी बीबी रोज झगडा करती है क्योंकि                                      कभी घर पर खाने के लिए कुछ नहीं रहता है   और कभी फीस न दे पाने की वजह से    
                             बच्चों  का स्कूल से नाम कट गया रहता  है  और  ये हमेशा नशे की  हालत में ही घर  
                             पहुँचता है."

चितकबरा-"जानता  हूँ ,सब जानता हूँ."

सफेदू-" और  वो 'विक्टोरिया' पर देखो, हमारे सामने वाली ऊँची बिल्डिंग में जो बडे साहब रहते हैं;बोतलें बैग में             डाल रहे हैं.आज ये क्लब में बैठकर इतनी  पीने वाले हैं  कि बाद में चलने-फिरने लायक नहीं रह      
           जाएंगे और इनका ड्राइवर इन्हें उठाकर गाडी  में डालेगा और घर पहुँचाएगा.जब ये घर पर कालबेल    
           दबाएंगे तो मेमसाहब नींद  से उठकर इन्हें गालियाँ देते हुए घर का दरवाजा खोलेंगी."

लाली-" और चाचा !जरा 'डिवाइन ईटरी' की तरफ भीड  देखो. अंदर टेबल  नहीं मिल पाने की वजह से लोग      
           बाहर इंतजार कर रहे हैं."

चितकबरा-" और उनको भी देखो जो अपनी तोंद पर हाथ फिराते हुए बाहर  निकल  रहे हैं.  हमारे  भाई- बहनों                    को निगल  कर ये तृप्ति अनुभव कर रहे  हैं. "

सफेदू-"भगवान हमारे भाई-बहनों की आत्मा को शांति प्रदान करें."

तभी अंदर से  कसाई निकल कर आता है और चितकबरे का कान पकड कर उसे अंदर ले जाने लगता है.
चितकबरा-" भाई-बहनों, खुदा हाफिज."

सफेदू-"खुदा हाफिज! हैप्पी न्यू इयर चितकबरे!"
चितकबरा- "हैप्पी न्यू इयर, सफेदू ! अब तो खुदा का प्यारा बनकर  ही अपना हैप्पी न्यू इयर होगा."

तभी "दि बेस्ट चिकन मीट शॉप "  का वधिक बाहर आकर लाली  को पकड कर ले जाने लगता है.लाली कुकडूँ-कूँ-कुकडूँ-कूँ चिल्लाने लगता है.

कालू-" चिंता मत कर.मैं तेरे लिए सुप्रीम कोर्ट में पी आई एल  दाखिल करवाऊँगा. पर वहाँ तो केवल इंसानों की            बात सुनी जाती है.मैं नए मुख्यमंत्री केजरीवाल के पास जाऊँगा. वो शाकाहारी है,शायद हमारे लिए कुछ            करे."

लाली-"पर तू भी बचेगा तब तो.अच्छा चल, इंसानों की तरह हैप्पी न्यू इयर करते हैं-हैप्पी न्यू इयर कालू!"

कालू- "भगवान तेरी आत्मा को शांति प्रदान करे."

लाली (रोते हुए)- "और तेरी भी आत्मा को इंसानों की जुबान और पेट के लिए कुर्बान होने के बाद शांति मिले.  
                          हैप्पी न्यू इयर!."

कालू (स्वगत)- शायद दो चार दिन और जिंदा रहते पर इस हैप्पी न्यू इयर  ने जिंदगी और मौत का फासला  
                        हमारे लिए मिटा दिया.मैं नहीं करूँगा हैप्पी न्यू इयर! मैं नहीं करूँगा हैप्पी न्यू इयर!

वधिक लौटकर आता है और कालू को भी पकड कर ले जाता है.कालू जोरों से चिल्लाता है-"कुकडूँ-कूँ-कुकडूँ-कूँ." !

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

आतंकी परमाणु हमले का खतरा वास्तविक है !

           आतंकी परमाणु हमला कोई दूर की कौडी या कल्पनालोक की अवधारणा नहीं बल्कि एक वास्तविकता  है. समाचारपत्रों में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडियन मुजाहिदीन के मुखिया यासीन भटकल ने पूछ्ताछ के दौरान एन आई ए तथा पुलिस को बताया है कि उसके इरादे सूरत पर आतंकी परमाणु हमला करने के थे तथा ऐसा कर सकने की संभावना को टटोलने के लिए उसने पाकिस्तान  स्थित अपने भाई तथा मार्गदर्शक रियाज भटकल से इस विषय में बात  की थी कि क्या इसकी व्यवस्था की जा सकती है. इस पर रियाज ने उसे उत्तर दिया कि पाकिस्तान में सब कुछ संभव है. रियाज ने कहा कि  परमाणु हमला किया जा सकता है पर  उसे यह झिझक थी कि उसमें मुसलमान भी मारे जाएंगे. यासीन ने इसका निदान यह बताया कि मस्जिदों में प्रचार कर मुस्लिमों को शहर खाली कर देने के लिए कह दिया जाएगा. यासीन के द्वारा सुझाया गया यह समाधान किसी नौसिखिए की सी बात लगती है क्योंकि मस्जिदों के माध्यम से सभी मुसलमानों  को शहर  खाली करने के लिए  कहने पर इंटेलीजेंस एजेंसियों  को इसकी खबर नहीं हो जाती इसकी संभावना न के बराबर थी.  पर जब किसी के ऊपर शैतान सवार हो जाता है तो वह ऐसे तथ्यों को नजरंदाज करने पर भी उतारू  हो जाता है.  यासीन के अनुसार वह थोडे दिनों के बाद ही गिरफ्तार हो गया और इस कारण  अपनी कार्ययोजना को अंजाम नहीं दे सका.

             नि:संदेह पाकिस्तान एक-दो दिन में इसका खंडन कर देगा तथा कहेगा  कि उसके परमाणु ठिकाने पूरी  तरह सुरक्षित हैं  और उसके परमाणु ठिकानों एवं परमाणु सामग्री की सुरक्षा के लिए की  गई व्यवस्था  फूलप्रूफ  है. पर इसमे दो पेंच  हैं.पहला तो यह कि पाकिस्तान में प्रत्येक स्थान पर आतंकियों  से सहानुभूति रखने वाले तत्व हैं जो उनकी मदद के लिए तैयार रहते हैं.पाकिस्तानी सेना में ऐसे तत्व निश्चित रूप से हैं और साथ ही यह तत्व पाकिस्तान की परमाणु व्यवस्थाओं में  भी हो सकते हैं. दूसरे अभी कुछ महीने पहले आतंकियों ने पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने पर हमला किया था जिसमें वे असफल रहे थे. पर  उन्होंने इस तरह की जुर्रत की तथा वे प्रथम रक्षा पंक्ति पर असफल  ही सही, हमला कर सके यह स्वयं में बडी बात है.

          एक अन्य तथ्य  है  जिससे  न्यूक्लियर फिजिक्स पढने  वाले वाकिफ हैं, और वह यह है कि परमाणु विस्फोट की मैकेनिज्म कोई बहुत उलझी हुई नहीं बल्कि  साधारण है, मुख्य समस्या वीपन ग्रेड यूरेनियम या थोरियम की उपलब्धता है और इसके उपलब्ध हो जाने पर इस्लामी आतंकी संगठनों के पास इतना टेक्निकल एक्सपर्टाइज  निश्चित रूप से है कि वे परमाणु विस्फोट को अंजाम दे  सकते हैं  क्योंकि उनके  साथ तकनीकी ज्ञान रखने वाले तथा इंजीनियर भी हैं. इसी के बलबूते वे 9/11 की घटना को अंजाम दे सके थे.

          अत: विश्व के  सभी जिम्मेदार देशों को  आतंकी परमाणु हमले की वास्तविकता को समझते हुए इस समस्या पर  मिल- बैठ कर  विचार करने और  इसके निमित्त निवारक तथा प्रतिकारात्मक उपाय तत्परता से करने की जरूरत है  अन्यथा ऐसा न हो कि जब कुछ भयावह घटित हो जाए तभी दुनिया जगे पर तब तक बहुत बडा नुकसान हो चुका होगा. 

रविवार, 29 दिसंबर 2013

उम्मीद की एक नई किरण!


          28 दिसंबर 2013 का दिन स्वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास के एक महत्वपूर्ण  पडाव के रूप में सदैव याद किया जाएगा. जब हम राजनीति को भ्रष्टाचार, बे‌ईमानी, जातिवाद,परिवारवाद तथा साम्प्रदायिकता के पर्याय और विभिन्न प्रकार के  माफिया गिरोहों और उनके सरगनाओं की शरणस्थली के रूप में देखने के आदी हो गए थे;उस समय अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों के राजनीतिक दृश्यपटल पर आगमन के बाद दिल्ली विधानसभा के चुनावों में उनकी अप्रत्याशित सफलता तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद का  शपथग्रहण  उम्मीद की एक नई किरण लेकर आया है. ईमानदार आदमियों के साथ ईमानदारी के पैसे से चुनाव लडना असंभव माना जाने लगा था, पर केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' ने इसे संभव कर दिखाया है.

           कुछ समय पहले तक यह कहा जा रहा  था कि मोदी आज की भारतीय राजनीति  में एजेंडा सेट कर रहे हैं तथा  कांग्रेस उनके पीछे-पीछे  नाच रही है. पर, आज निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि इस एजेंडे का एक हिस्सा अरविंद केजरीवाल सेट करने लगे हैं जिसकी नोटिस लेने के  लिए कांग्रेस और बी.जे. पी.दोनों विवश हैं. चूँकि अरविंद जो एजेंडा सेट कर  रहे हैं वह राजनीतिक- सामाजिक क्षेत्र में स्वच्छता और शुचिता को स्थान देने के साथ जुडा हुआ है, इसलिए नि:संदेह  इसमें समस्त भारतीय समाज का हित निहित है. इस बात को शायद बहुत से लोग मानेंगे कि बी.जे.पी. के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में हर्षवर्धनजी का मार्ग प्रशस्त करने में "आप" की नैतिकतापरक राजनीति की भूमिका अहम रही है अन्यथा विजय गोयल इतनी आसानी से मानने  वाले  नहीं थे. अरविंद  इस मायने में भाग्यशाली हैं कि उन्हें विपक्षी दल के  नेता के तौर पर हर्षवर्धन जैसे स्वच्छ,सौम्य और शिष्ट  व्यक्ति का सामना करना होगा. कांग्रेस की बैसाखी ही अरविंद के पैरों की बेडी है अन्यथा अरविंद और हर्षवर्धन  के आमने-सामने रहते हुए दिल्ली के  लोग दिल्ली के विकास के साथ-साथ   दिल्ली के बाह्य पर्यावरण तथा नैतिक पर्यावरण दोनों में ही अप्रत्याशित सुधार की आशा कर सकते थे.  

         नवंबर, 2013 के महीने में  मैं  उत्तरप्रदेश गया था. मेरा वहाँ अपने ननिहाल में जाना हुआ जहाँ चुनावी माहौल था, क्योंकि जिला पंचायत के सदस्य पद संबंधी कुछ रिक्तियों को  भरने के लिए चुनाव आयोजित किए गए थे. ग्रामीण क्षेत्र में भी उम्मीदवारों के बडे-बडे कटआउट तथा पोस्टर लगे हुए थे. जिस दिन नामांकन होना  था उस दिन उम्मीदवारगण बडे भारी-भरकम  जुलूसों के साथ जिनमें कई-कई  वाहन शामिल थे, अपना नामांकनपत्र दाखिल   करने जिला कचहरी पहुँचे. हर उम्मीदवार ने अपने-अपने साथ क्षेत्र के अधिक से अधिक बाहुबलियों को  लाने की चेष्टा की थी. मैंने यह सब देखकर अपने एक भतीजे से जो राजनीतिक  रूप से सक्रिय है,इस  सब पर होने वाले खर्च के बारे में पूछा. वह विलेज डिफेंस कमेटी के सदस्य का  चुनाव लड चुका है. उसने मुझे बताया कि उस इलेक्शन में उसके दो-ढाई लाख रूपए खर्च हो गए  थे ,फिर इस चुनाव में तो लोगों को कहीं ज्यादा पैसा खर्च करना पडेगा. लोग पैसा  खर्च ही इस आशा में करते हैं कि वे बाद में इससे कुछ अधिक गुना कमा  सकेंगे. उसने मुझे बताया कि समाजवादी पार्टी का जो उम्मीदवार है उसने सरे आम फरसे से किसी का सर काट दिया था तथा  बी जे पी के उम्मीदवार ने हथौडी से सर कूँच कर किसी को मार दिया था.  अगले दिन बी.जे.पी.के उम्मीदवार  का पर्चा उसके खिलाफ आपराधिक मामला होने के कारण खारिज हो  गया.पर उसकी पत्नी ने रिजर्व उम्मीदवार के रूप में पर्चा दाखिल कर रखा था तथा अपने पति के  बदले में वह उम्मीदवार हो गई.  मेरे दिमाग में  स्वत: यह प्रश्न उठा कि मोदी द्वारा भ्रष्टाचार  और परिवारवाद को खत्म करने के सारे वादों एवं आवाह्न के बावजूद वह ऐसी स्थिति  में कहाँ तक कामयाब हो पाएंगे .पर यदि "आप" को दिल्ली जैसा ही प्रतिसाद देश के अन्य भागों में मिलता है तो निश्चय ही हम इस प्रकार की स्थिति में सुधार की आशा कर सकते हैं क्योंकि सबको "आप"  के एजेंडे के अनुसार सुधरना पडेगा. आखिरकार देखिए राहुल ने भी अपराधी राजनैतिक उम्मीदवारों  के पक्ष में लाए जा रहे विधेयक तथा आदर्श सोसाइटी के मामले में नैतिकता के अलमबरदार की  भूमिका निभाई है.


          आगे केजरीवाल और "आप" की सफलता दिल्ली का प्रशासन चलाने में उनकी निपुणता,  लोगों  की उम्मीदों पर खरा उतरने और चुनावी वायदों को पूरा करने पर निर्भर करेगी. पर यहाँ यह भी याद रखना आवश्यक है कि दिल्ली एक सिटी स्टेट की तरह है तथा पूरे देश में सफलता पाने के लिए केजरीवाल एवं "आप" को विविध समुदायों के हितों में सामंजस्य साधने के साथ-साथ उद्योग,कृषि तथा व्यापार संबंधी नीतियों, व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण  और राष्ट्रीय तथा सामाजिक महत्व के बिंदुओं के बारे में, जिसमें रक्षा और विदेश नीति भी शामिल हैं,  अपनी कार्ययोजना तथा दृष्टिकोण को जनता के सामने स्पष्ट करना आवश्यक है. "आप" को जनता नैतिकता के लिए आंदोलन का पर्याय समझती  है तथा दिल्ली के आज के मूमेंटम का लाभ उठाने के लिए  केजरीवाल  एवं उनकी टीम  को अपनी पार्टी के साथ-साथ  इस आंदोलन को पूरे देश में विस्तार देना आवश्यक है.

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

जमीन देखने और दिखाने की कोशिश!

          आखिरकार देवयानी खोब्रागडे के मामले ने भारत सरकार को अमेरिका को इस बात का   अहसास कराने के लिए मजबूर कर दिया  कि भारतीय रीढविहीन समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते.  सवाल यह है कि किसने आपसे कहा था कि गौरांग बंधुओं को देख  कर जमीन पर बिछ-बिछ  जाइए जो अब आप उनके दूतावासों के कर्मचारियों तथा राजनायिकों  को दी गई विशेष रियायतों को वापस लिए जाने की घोषणा  करते फिर रहे हैं,ऐसी रियायतें जो वे हमारे राजनायिकों को नहीं  देते.  अब तक इनका दिया जाना  हमारी "माई-बाप" मानसिकता और साथ ही हमारी हीनभावना को दर्शाता है.

           अमेरिका में भारतीयों तथा भारतीय राजनायिकों  के साथ दुर्व्यवहार का यह पहला वाकया नहीं है. इसके पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की एक बार न्यूयॉर्क के जे.एफ. के. हवाईअड्डे पर तथा एक बार कॉन्टिनेंटल एयरलाइंस के स्टाफ द्वारा    नई दिल्ली एयरपोर्ट पर फ्रिस्किंग के साथ तलाशी  ली जा चुकी है.  रक्षामंत्री रहते हुए श्री जार्ज फर्नांडीज की दो बार स्ट्रिप सर्चिंग की गई. अमेरिका  में तत्कालीन भारतीय राजदूत मीरा शंकर को रोककर कर उनकी शारीरिक तलाशी ली जा चुकी है.  संयुक्त राष्ट्र संघ  में भारत के स्थाई प्रतिनिधि हरदीप पुरी को पगडी खोलने से मना करने पर बॉडी-पैट के लिए रोका गया. अभिनेता  शाहरुख खान  ने  भले ही व्यंग्य में कहा हो, पर यह कहते हुए असलियत बयान की है कि जब भी उनके ऊपर स्टारडम ज्यादा हावी होने लगता है तो  उससे मुक्ति पाने के  लिए वे अमेरिका चले जाते हैं तथा अमेरिका वाले  उन्हें जमीन पर ले आते हैं. अमेरिकियों द्वारा इस प्रकार के व्यवहार से उनकी नजरों में हमारे देश की स्थिति और साथ ही गौरांग समुदाय में श्यामवर्णी लोगों को लेकर स्वयं की श्रेष्ठता की भावना (सुपीरियारिटी काम्प्लेक्स)  झलकती है.  शायद आज भी वे 'व्हाइट  मैंस बर्डेन' की ग्रंथि से पीडित हैं अन्यथा भारतीय राजनायिकों को जाहिल समझ कर उन पर अपना कानून थोपने और उन्हें मनुष्य बनाने के प्रयास में लगे रहने की जुर्रत नहीं करते .ऐसा  वे  यूरोपीय अथवा चीनी राजनायिकों के साथ तो नहीं करते.दूसरे नस्लवाद( रेशियलिटी) के किसी भी प्रकार के आरोप से बचने के लिए उन्होंने प्रीत भरारा तथा निशा देसाई बिस्वाल को खडा कर दिया है. कहते हैं कि नया मुल्ला पाँच बार नमाज जरूर पढता है. प्रीत भरारा तथा निशा देसाई बिस्वाल ऐसे ही मुल्ले हैं जो  भारतीय राजनायिक के साथ दुर्व्यवहार के पीछे अमेरिकी कानून की दुहाई देते  हैं. अमेरिका का कानून क्या यही कहता है कि भारतीय राजनायिक को नौकर  को कम तनख्वाह देने तथा गलत ढंग से वीसा पर उसे अमेरिका ले आने  जैसे संगीन जुर्म (अमेरिकी कानून के  अनुसार)  उस समय हथकडी लगाकर गिरफ्तार किया जाए जब वह बच्चों को स्कूल  छोडने आई हो. फिर  उसकी स्ट्रिप सर्चिंग की जाए,डी.एन.ए. स्वैब लिया जाए तथा कैविटी सर्चिंग की जाए  और इस सबके दौरान उसे भयानक अपराधों के दोषी लोगों के  साथ रखा जाए तथा यह सब करने के बाद ;जुर्म इतना भयंकर होने(अमेरिकी कानून के  अनुसार) के बावजूद उसे दो घंटे  के बाद जमानत पर रिहा भी कर दिया  जाए. स्पष्ट रूप  से  यह जमीन पर ले आने या फिर जमीन दिखाने का मामला है.  देर से ही सही कम से कम हमारी सरकार ने भी अमेरिकियों को जमीन दिखाने की कोशिश  की. चलिए देखते हैं कि वे कितनी जमीन देखने को तैयार होते हैं.

         एक अन्य बात यह है कि हम आज भी सामंतवादी मानसिकता से पीडित हैं. अन्यथा क्या कारण है कि हमारी सरकार आई.एफ.एस. अफसरों को विदेश पोस्टिंग पर साथ में नौकर ले जाने की सुविधा प्रदान करती  है. क्या इसलिए कि उन्हें "माई-बाप" होने का अहसास विदेश में भी बना रहे. अमेरिका में  राजनायिकों के  नौकरों को लेकर उन पर आरोप लगने का यह तीसरा प्रमुख मामला है. इसके पहले वहाँ  पर नीना मलहोत्रा तथा प्रभुदयाल भी ऐसे मामलों में फंस चुके हैं. कम  से कम एक दलित आई.एफ.एस. अफसर ने ऐसे मामलों में सरकार को आइना देखने के लिए मजबूर किया,यह एक  अच्छी बात है.


बुधवार, 11 दिसंबर 2013

"आप" की खातिर !

          राजनीतिक परिदृश्य पर दिल्ली विधानसभा में 28 सीटों के साथ 'आप' (आम आदमी पार्टी) की धमाकेदार एंट्री  ने अपनी सफलता के आगे तीन राज्यों में बी. जे. पी. की भारी जीत को भी जैसे फीका कर दिया है. राहुल ने जहाँ 'आप' से सीख लेने की जरूरत पर जोर दिया है,  वहीं दिल्ली में बी.जे.पी.के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हर्षवर्धनजी ने 'आप' को अप्रत्याशित सफलता के लिए बधाई दी है.  'आप'  ने इससे उत्साहित होकर लोकसभा चुनावों में भी जोर आजमाने की मंशा जताई है. चुनावों के टिकटार्थी भी 'आप' की तरफ मुखातिब हो रहे हैं.

          पर यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि 'आप' एक आंदोलन का परिणाम है.यह आंदोलन  भ्रष्टाचार और अनैतिकता के खिलाफ था जिसका नेतृत्व अन्ना ने  किया था. भले ही चुनावी राजनीति में आस्था न रखने के कारण अन्ना ने 'आप' के रूप में किए जा  रहे प्रयोग से स्वयं को अलग कर लिया है  तो भी 'आप' के उसी आंदोलन का प्रतिफल होने से इंकार नहीं किया जा सकता  और आप की सफलता वस्तुत: भ्रष्टाचार और अनैतिकता के खिलाफ जनसंघर्ष की सफलता है ;यह वही जनसंघर्ष था जिसके साथ जनता स्वत:उद्भूत प्रेरणा के साथ जुडी थी और जिसका एक रूप उस समय भी देखने में आया था जब दिल्ली बलात्कार कांड के विरोध  में जनता सडकों पर  उतर आई थी और राजनीतिक नेताओं  के हमदर्दी दिखाने के लिए आने पर   जनता ने उन्हें जनसंघर्ष के मंच का प्रयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए करने  से रोक दिया था.

         पर कोई भी आंदोलन जब चुनावी  राजनीति का भाग बन जाता है  तो उसके अपने उद्देश्य से भटक जाने की संभावना सदैव बनी रहती है जिसे शायद अन्ना बहुत अच्छी  तरह समझते हैं. बहुजन समाज पार्टी भी एक आंदोलन का परिणाम थी जिसे कांशीराम ने डी. एस.- 4 के रूप में शुरू किया था. बहुजन समाज पार्टी के आरंभिक दिनों में ऐसे  बहुत से लोग जिन्हें मुश्किल  से दो जून की रोटी नसीब होती थी, पार्टी की बैठक के लिए अपना समय देते थे और अपनी आय का अंश पार्टी के लिए कष्ट उठाकर भी देते थे. पर चुनावी राजनीति के दल-दल में फंसकर आज बहुजन समाज पार्टी उस रास्ते से अलग  चली गई है जिस पर कांशीराम  ने उसे आगे बढाया था.  ऐसे तमाम लोग जो जनहित के लिए नहीं बल्कि स्वयं के हित के लिए राजनीति के साथ जुडे हुए हैं; आज बहुजन समाज पार्टी का हिस्सा हैं. राजनीतिक सफलता प्राप्त होने के बाद ऐसे तत्वों  के 'आप' के साथ जुडने की संभावना  सदैव बलवती रहेगी;  पर ऐसे  लोग जब भी पार्टी के साथ जुडेंगे पार्टी के अपने मूल उद्देश्यों से हटकर अलग रास्ते पर जाने लगेगी. अत: 'आप' के कर्णधारों को इस दृष्टि से सजग  रहना होगा.

          अरविंद केजरीवाल को इस बात का श्रेय देना होगा कि उन्होंने  उच्च एवं निम्न मध्यम वर्ग के साथ-साथ गरीब तबके की जनाकांक्षाओं को भी पहचाना  है तथा विशेषकर बिजली और पानी के साथ जुडी आंदोलनात्मक सक्रियता के बल पर 'आप' को उनके साथ जोडा है. इन अलग-अलग वर्गों को एक बिंदु पर ले आना और एक साथ जोडना ही उनकी सबसे बडी सफलता है.  जब लोगों को लगा कि कोई उनके दिल और  दिमाग से जुडे मुद्दों की बात कर रहा है तो वे अपनी जातीय,धार्मिक और वर्गीय  पहचान स्वत: भूल गए.

          पर  राष्ट्रीय राजनीति की बात करते समय 'आप' को यह समझना होगा कि विभिन्न स्तरों पर विभिन्न तबकों के लोगों को उनके स्वयं के हित , जिसमें वे अपने जातीय और धार्मिक हितों को भी शामिल समझते हैं,से ऊपर उठकर राष्ट्रीय और सामाजिक हितों की बात सोचने के लिए और उस कारण स्वयं से जुडने के लिए प्रेरित  करने हेतु अपना स्वरूप राष्ट्रीय आंदोलन का बनाए रखना होगा तथा स्थानीय के साथ-साथ राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों को भी सक्रियतापूर्वक उठाते रहना होगा. एक अन्य बात यह है कि पार्टी को लोगों को जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि उनके पास इस देश के लिए एक "विजन" है,एक "आर्थिक दृष्टिकोण" है  तथा उसे कार्यरूप देने के लिए निर्धारित योजना और सक्षम व्यक्तियों का समूह  है.
      
        कम से कम ऐसे लोगों के लिए जो साफ-सुथरी राजनीति देखना चाहते हैं और अपने राजनीतिज्ञों को भी साफ-सुथरा ही देखना चाहते हैं  'आप' के रूप  में एक विकल्प दिखाई पडा है और ऐसा लगता है कि स्वच्छ राजनीति का सपना पूरा भी हो सकता है. पर  सपनों के टूटने में और मोहभंग होने में समय नहीं लगता और इस कसौटी पर खरा उतरना ही 'आप' के लिए सबसे बडी चुनौती है.

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

टेढी उँगली चाहिए!

          कोलकाता की एक लोकल ट्रेन में सफर करते हुए  देखा गया एक वाकया- लोकल में काफी भीड है. जो लोग बैठ सके हैं वे बैठे हैं.शेष खडे  हैं . जब  भी कोई स्टेशन  आता है जितने उतरते नहीं उससे ज्यादा चढ जाते हैं. बैठे हुए लोगों की दो पंक्तियों के  बीच में तीन नवयुवक  खडे हैं तथा  उनके साथ एक बूढा व्यक्ति खडा है. अपना गंतव्य नजदीक आने के कारण कोई व्यक्ति खडा हो जाता है तथा खाली हुई जगह पर बूढे को बिठा देता है. खडे हुए नौजवान विरोध शुरु कर देते हैं- हम पहले से खडे हैं,हमें जगह देनी चाहिए थी. कोई बांगला में बोलता है- "उनी तोर दादू जोन्य,देखते पाच्चिस ना रे की?"( वो तेरे पितामह की तरह हैं ,देख नहीं पा रहे हो क्या?). उनमें से एक नौजवान बांगला बोलने वाले  व्यक्ति की तरफ मुखातिब होकर कहता है -"आमि तोमार सने कोथा बोलछी न"(हम तुमसे बात नहीं कर रहे हैं) . उस नौजवान के मुँह से शायद शराब का भभका आता है.  इसलिए पहले  बांगला बोलने वाला व्यक्ति बुरा सा मुँह बनाते हुए अपनी नाक और मुँह ढकते  हुए दूसरी तरफ मुँह घुमा कर कहता है-" सकाले नेशा कोरे ट्रेने उठछीस "(सुबह-सुबह नशा करके ट्रेन  में चढते हो). नशा करने वाला नौजवान कहता है-"तोमार बापेर गाडी की?"(तुम्हारे बाप की  गाडी है क्या). 

           नौजवान हिंदीभाषी हैं इसलिए आगे झगडे ने बिहारी बनाम बंगाली का रूप ले लिया.एक व्यक्ति बोला-" आप बिहार के हैं न". अब नौजवान बोला-"तो तुम्हें क्या परेशानी है?". वह व्यक्ति बोला-"आप अपना देश जाइए,बंगाल को गंदा मत कीजिए."  नशे में होने के बावजूद नौजवान ने अच्छा उत्तर दिया -" बिहार केनो कोरे जाबो? आमी एइखाने थाकी,एई  आमार देश"(बिहार क्यों जाऊँ, मैं यहीं रहता हूँ; यही हमारा देश है). अब एक आदमी अंग्रेजी में बोला- बोला- "यू पीपुल आर लाइक दिस. नो वन कैन मेक यू अमेंड योर वेज‌"(तुम लोग ऐसे ही हो.कोई भी तुम्हें सुधार नहीं सकता).  अब नौजवान अंग्रेजी बोला-"  आई स्टे हेयर,आई ऐम बंगाली नाट बिहारी"( मैं यहीं रहता हूँ,मैं बंगाली हूँ बिहारी नहीं). 

         इसके पश्चात झगडे ने प्रांतीय से राष्ट्रीय रूप  ले लिया. एक व्यक्ति जो बोला वह सुनने लायक है- "एई  जोन्य मोदी चाई. ओई सबाईके ठीक कोरे देबे" (इसीलिए  मोदी चाहिए.वह सबको ठीक कर  देगा). एक दूसरा व्यक्ति बोला-"आपनी ठीकेई बोलछेन. मनमोहन-राहुल किछू कोरते पारबेन न. एई देश के मोदी चाई" ( आप ठीक कह रहे हैं . मनमोहन-राहुल कुछ नहीं कर पाएंगे.इस देश को मोदी चाहिए). एक व्यक्ति बोला-"  आमार ममता दीदी तो आछे"(हमारी ममता दीदी तो हैं).अब अन्य व्यक्ति नौजवान की तरफ हाथ उठाकर बोला -"ममता  दीदी तो आछे किंतु देखछेन  की होच्चे?"(ममता दीदी तो हैं किंतु देख रहे   हैं  क्या  हो रहा है?). एक  नया  व्यक्ति बोला-"सोत्ति कोथा बोलछेन दादा"(सही  बात कह रहे हैं भाई).

          कुल बात का लब्ब-ओ-लुबाब यह कि लोगों को लग रहा है कि सीधी उँगलियों से  घी नहीं निकल  रहा है और इसके लिए टेढी उँगली चाहिए.




बुधवार, 4 दिसंबर 2013

रानी और श्वेता :हर बच्चे के विशिष्ट होने के प्रमाण

          रानी और श्वेता दिल्ली म्युनिसिपल  कार्पोरेशन के चौखंडी स्थित प्राइमरी स्कूल की नौ वर्षीय छात्राएं हैं.इन बच्चों को दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन और इंटैक के  तत्वावधान  में उनके स्कूल की विरासत पर एक फिल्म बनाने का काम सौंपा  गया था.इन बच्चों को इंटैक द्वारा अपने वर्कशाप में फिल्म बनाने के मूलभूत तथ्यों से परिचित कराया गया. बच्चों ने पहले  अपने स्कूल के सबसे पुराने वृक्ष पर फिल्म बनाने की सोची. बाद में उन्हें लगा कि क्यों न उनके स्कूल की सफाई कर्मचारी फूलवती जो तैंतीस वर्षों से स्कूल में  काम कर रही थीं तथा सेवानिवृत्त होने वाली  थीं, पर फिल्म बनाई जाए. बच्चों की  प्रधानाध्यापिका तथा अध्यापकों ने बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित किया तथा उनका मार्गदर्शन भी किया. इन बच्चों ने फिल्म बनाई जिसमें शुरुआत में फूलवती को स्कूल में झाडू लगाते हुए दिखाया जाता है ,बाद में रानी फूलवती   का साक्षात्कार लेती है तथा फिल्म, फूलवती की सेवानिवृत्ति के अवसर पर विदाई समारोह के साथ समाप्त होती है.  इस फिल्म को हैदराबाद में आयोजित अट्ठारहवें अंतर्राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव में भेजा गया जहाँ आई हुई लगभग छ: सौ प्रविष्टियों में  से इस  फिल्म को सर्वश्रेष्ठ बालनिर्देशक श्रेणी में दूसरा पुरस्कार मिला.

          यह दोनों ही बच्चे गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं.एक के पिता सफाई कर्मचारी हैं तथा मां घरों में काम करती हैं.दूसरी के पिता सिक्यूरिटी गार्ड  हैं. बच्चों की सोच ,सहजता तथा सृजनात्मकता काबिल-ए-तारीफ है तथा इस  तथ्य की पुष्टि करती है कि प्रतिभा किसी वर्गविशेष की बपौती नहीं है. बच्चों ने अपनी जिस सोच के अंतर्गत एक जीते जागते इंसान को जो उनके विद्यालय की स्वच्छता को सुनिश्चित करता था तथा उन्हें बहुत प्यार करता था  विरासत का प्रतीक माना,वह उनकी मौलिक सूझ-बूझ की परिचायक है. इन बच्चों ने बडे सहज भाव से बताया कि कैसे उन्हें हैदराबाद के  जिस होटल में वे रुके थे, सोफे तथा गद्दों पर कूदने में मजा आया, स्नान के लिए गर्म और ठंडे दोनों प्रकार के पानी की व्यवस्था तथा नाश्ते और खाने के लिए भाँति-भाँति के व्यंजन उनके लिए आश्चर्यप्रद थे तथा शुरू में वे बडे-बडे स्कूलों से आए हुए बच्चों को देखकर नर्वस थे. बच्चों के शिक्षकों  ने उन्हें सहज भाव से रहने तथा बातचीत  का मंत्र दिया था जो उनके बहुत काम आया  विशेषकर तब, जब उनकी फिल्म पुरस्कृत होने पर लोग उनका साक्षात्कार करने के लिए आने लगे. बच्चों ने लोगों द्वारा अंग्रेजी में प्रश्न करने  पर कह  दिया कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती और फिर लोगों ने उनसे हिंदी में प्रश्न पूछे तथा उन्होंने हिंदी में ही जवाब दिए.  बच्चों का कहना है कि उनके हौसले बुलंद हुए हैं तथा उन्होंने स्वयं को किसी भी प्रकार के भय से दूर रखना सीख लिया  है.

          काश कि हम रानी और श्वेता  की  तरह गरीब पृष्ठभूमि के हर बच्चे के मन में यह धारणा घर करवा पाते कि वह विशिष्ट है तथा गरीबी,असमानता और अभाव उसके सपनों के साकार होने में बाधक नहीं  हैं.  रानी और श्वेता के बताए अनुसार वे इस बात को समझ गए हैं ,पर यह भी  ध्यान  देने योग्य है कि उनकी अवस्था अभी बहुत कम है और उनके लिए यह महज शुरुआत भर है.  ऋणात्मक स्थिति में रहते हुए संघर्ष करने पर  हौसला बनाए रखने केलिए सदैव सजग रहना पडता है तथा मन के जरा भी कमजोर पडते ही नकारात्मकता सर उठाने लगती है जिसका सर कुचलने के लिए सदैव   तत्पर रहना पडता है.