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मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

सामाजिक सद्भाव को चिनगारियों से बचाना जरूरी!

         पटना में  दिनांक 27अक्टूबर,2013को हुए आठ विस्फोट  दु;खद होने के साथ-साथ बिहार में गुप्तचर और पुलिस व्यवस्था की असफलता और इन बलों में प्रोफेशनलिज्म की कमी को दर्शाते हैं.भले ही बिहार में पहले कोई  बडी आतंकवादी घटना न हुई हो पर बिहार के कुछ  क्षेत्र कई वर्षों से नक्सलवाद का  शिकार रहे हैं.  इसके अलावा आई. एम. के दरभंगा मॉड्यूल ने पिछले कुछ   दिनों में कुख्याति अर्जित कर ली है. फिर  रैली को  संबोधित करने श्री नरेंद्र मोदी आ रहे थे जो कई आतंकवादी संगठनों के निशाने पर हैं. ऐसे में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम बरतने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए  थी. भारतवर्ष में ऐसे तत्व मौजूद हैं जो कोई भी घटना हो जाने पर  पूरे के  पूरे समुदाय को उसके लिए दोषी मानने और उन्हें दंडित करने के लिए दंगे शुरू कर देने में कोई संकोच नहीं करते. 1984, बाबरी मस्जिद के विध्वंस और गोधरा कांड के बाद हुए दंगे इस तथ्य की पुष्टि करते हैं. इस बात के मद्दे नजर कि सामाजिक सद्भाव के ताने-बाने के छिन्न -भिन्न होने के लिए सिर्फ एक चिनगारी  का बहाना काफी होता है सदैव विशेष सावधानी बरती जानी चाहिए विशेषकर तब जब संवेदनशील मुद्दे,राजनीतिज्ञ और राजनीति का जुडाव हो . इस प्रकार की घटनाओं के लिए कोई निर्धारित जगह नहीं है,यह कहीं भी घट सकती हैं.पिछले कुछ अर्से में साम्प्रदायिक और आतंकवादी गतिविधियाँ नए-नए स्थानों पर घटी हैं  उम्मीद की जानी चाहिए कि इस घटना से हमारा सुरक्षा तंत्र आगे के  लिए सबक लेगा.

         इस पूरी घटना के दौरान  जो अच्छी बात हुई वह यह कि श्री नरेंद्र मोदी ने  बम धमाकों का जिक्र न कर संयम का परिचय दिया और  यह  कहते हुए हिंदू-मुस्लिम एकता की और शांति की अपील की  कि हिंदू और मुस्लिम को आपस में लडने के बजाए गरीबी  से लडना चाहिए.  यह सुना जाना सुखद और संतोषप्रद है.

        जहाँ राजनैतिक  बैरभाव भुलाकर प्राय: सभी दलों और उनके नेताओं ने घटना  पर क्षोभ और दु:ख व्यक्त किया वहीं  कुछ राजनीतिज्ञ इस  पर भी राजनीति खेलने से बाज नहीं आए और घटना के समय पर प्रश्नचिह्न लगाकर तथा  इससे होने वाले संभावित राजनीतिक फायदे का संकेत कर अपनी सैडिस्टिक मनोवृत्ति का परिचय दिया है.इस प्रकार के राजनीतिज्ञों से भारतीय राजनीति को निजात पानी चाहिए.

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