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सोमवार, 30 सितंबर 2013

मुंबई तुझे सलाम!

          आज जब विविध रिपोर्टें बताती हैं कि भ्रष्टाचार के  उपलब्ध सूचकांकों के अनुसार भारतवर्ष विश्व के भ्रष्टतम देशों  में से एक है,  तब इसी समय यह रिपोर्ट सुखद अहसास कराती है कि मुंबई दुनिया का दूसरा सबसे ईमानदार शहर  पाया गया है. विगत सप्ताह विश्व के सोलह शहरों  में लोगों की ईमानदारी परखने के लिए एक परीक्षण किया गया. इस परीक्षण के दौरान इन सोलह  शहरों में से प्रत्येक शहर में बारह स्थानों पर 50 डालर अथवा उसके बराबर स्थानीय मुद्रा में धनराशि एक बटुए में भरकर शॉपिंग माल,सडक के किनारे अथवा पार्क जैसे भीडभाड वाले स्थानों पर छोड दी गई. इनके साथ एक बिजनेस कार्ड,पारिवारिक फोटो और सेल फोन नं. भी रख दिए गए तथा इस बात  पर नजर रखी गई कि इन्हें पाने वाले कितने व्यक्ति  बटुए को लौटाने हेतु संपर्क करते हैं. हेलसिंकी में सबसे सबसे अधिक .-बारह में से ग्यारह लोगों ने बटुए लौटाए और इसके बाद मुंबई  का स्थान रहा जहाँ बारह में से नौ बटुए संबंधित व्यक्ति से संपर्क कर उसे लौटाए गए. इसके बाद बुडापेस्ट और  न्यूयॉर्क आठ बटुओं  के साथ तीसरे स्थान पर रहे, बर्लिन छ: बटुओं के साथ चौथे स्थान पर और  लंदन  एवं वारसा  पाँच बटुओं के साथ  पांचवे स्थान पर रहे . बुखारेस्ट,ज्यूरिच, रियो और प्राग चार बटुओं के साथ छठवें स्थान पर रहे. सबसे नीचे 1 बटुए के साथ लिस्बन रहा और उसके ऊपर  2 बटुओं के साथ मैड्रिड रहा.

          नौकरी शुरू करने पर  मेरी पहली तैनाती मुंबई के ही एक  उपनगर में हुई जिसने मुझे इस महानगर को जानने-समझने का मौका दिया.  बाहर से आए व्यक्ति को प्राय: आरंभ में मुंबई अपरिचित सी लगती है क्योंकि यहाँ का व्यक्ति समय नष्ट नहीं करना  चाहता और इस कारण वह किसी भी नए या अपरिचित व्यक्ति से अंतर्व्यवहार ( इंटरैक्शन) नहीं करना चाहता. उसके पास समयाभाव इतना रहता है कि वह परिचित  व्यक्ति को भी अधिक से अधिक हाय-बाय कह कर निकल जाता है. आरंभ में इस महानगर के लोगों के निरपेक्ष से दिखने वाले भाव और सुनने में वर्णसंकर सी लगने वाली हिंदी भाषा और साथ ही वर्णसंकर सी संस्कृति ने उत्तर प्रदेश के छोटे से नगर से आने वाले मुझको विरत सा किया.  पर जब आप किसी को समझ लेते हैं और उसके अंत: स्थल को देख पाते हैं तब वह आपको अपना लगने लगता है. मैं भी जैसे-जैसे  इस महानगर की आत्मा से परिचित होता गया, यह मुझे अपना लगने लगा. एक बार उत्तर प्रदेश से आए मेरे एक परिचित ने मुझसे कहा- यहाँ के लोग कितनी बेकार सी हिंदी बोलते हैं जिसे सुन कर गुस्सा आता है. मैंने उनसे कहा- जब आप रोज यह भाषा सुनेंगे और समझने लगेंगे तो आपको इसी में प्यार नजर आएगा. आरंभ में मुंबई के निरपेक्ष से दिखने वाले लोग बाद में आपके इतने अपने हो जाते हैं कि आपके भी किसी सुख - दुख में वे हिस्सा बाँटना  नहीं भूलते.

           मैं इस महानगर के लोगों की समयबद्धता(पंक्चुअलिटी) , व्यवसायपरकता (प्रोफेशनलिज्म) और नागरिक भाव(सिविक सेंस) से प्रभावित हुआ. यह गुण देश के शेष मेट्रो शहरों में उस  तरह नहीं मिलते जिस तरह मुंबई के लोगों में देखने में आते हैं.  मैंने लोकल ट्रेन में कई बार बच्चों  तक को अपना होमवर्क करते और यहाँ तक कि ड्राइंग और ज्यामिति बनाते हुए पाया है. कई बार कार्यालय जाने वाले आपको लोकल ट्रेन में ही अपना काम करते हुए मिलेंगे. नौकरीपेशा महिलाएं  लोकल में  ही सब्जी आदि काटते हुए और शाम के भोजन की तैयारी करती हुई दिखाई दे जाएंग़ी. घर छोटा सा ही सही पर सुव्य्वस्थित  होगा. समय और स्थान का सदुपयोग करना कोई मुंबई के लोगों से सीखे.  अनुशासन का आलम यह है कि चाहे आप आप बस पकडने के लिए जाएं अथवा शादी  या पार्टी में ;लोग  स्वत: कतार बना लेते हैं , भले ही भोजन लेना हो या फिर दूल्हा-दुल्हन से मिल कर उन्हें भेंट देनी हो.

          मुंबई कभी  रुकती नहीं क्योंकि मुंबई के लोगों ने सिर्फ चलना सीखा  है, वे कभी कभी थकते नहीं सिवाय उस स्थिति के जब भारी बरसात होने के कारण लोकल ट्रेनों के  ट्रैक में पानी भर जाए और इस कारण उनका आना-जाना रुक जाए . आतंकवादियों ने तमाम आतंकी वारदातें कर देश के इस  आर्थिक केंद्र की  आत्मा को चोटिल करने  की कोशिशें कीं  पर वे कभी  उसे घायल करने  में सफल नहीं हुए और यह इस महानगर की जीवटता ही है जिसने उन्हें कामयाब नहीं होने दिया. अपितु जब भी ऐसा हुआ अस्पतालों  के बाहर खून देने वालों की कतारें लग गईं  और मुंबई के  लोग अगले दिन बिना किसी बात की परवाह  किए हर दिन की तरह काम पर जाते हुए दिखाई दिए. मुंबई में स्त्री और पुरुष का दर्जा बराबर है. यहां कहीं पर भी पुरुष और  स्त्री की लाइन अलग-अलग नहीं लगती और  घर हो या बाहर, हर जगह महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे  से कंधा मिलाकर उनका हाथ बँटाती हैं.अगर मुंबई की तरह ही अनुशासन,समयबद्धता,व्यवसायपरकता, काम  के  प्रति निष्ठा,  नागरिक भाव तथा स्त्री-पुरुष में  समानता का भाव हमारे देश के  सभी  शहरों में आ जाए तो नि:संदेह हमारा देश तरक्की के अनेक पायदान चढ जाए.

  

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