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गुरुवार, 15 अगस्त 2013

मंत्रियों के मानकीकरण के लिए हो परीक्षा!



          पिछले दो से तीन दशकों के बीच भारतीय राजनीति और राजनीतिज्ञों के स्तर में धीरे-धीरे गिरावट आई है.इसका प्रमुख कारण अपराधी तत्वों और कबीलाई मानसिकता वाले तत्वों का राजनीति के साथ जुडना रहा है.राजनीतिक पार्टियों ने इस आधार पर कि ऐसे तत्व संसद और विधानमंडलों के लिए सीटें जीतने में सहायता कर सकते  हैं; पहले तो इनसे चुनावों को जीतने में मदद ली और फिर गठबंधन सरकारों के दौर के साथ राजनीति के मैदान में ज्यादा  खिलाडी आ जाने,जाति और धर्म का चुनावों पर असर बढ जाने और प्रतिद्वंदिता तगडी हो जाने पर इन्हे सीधे-सीधे उम्मीदवार के तौर पर चुनावों में उतारना ही शुरू कर दिया. नैतिक पृष्ठभूमि गौण होती गई है और इनमें से कई चुनाव  जीतने के बाद अपने प्रभावक्षेत्र के कारण या फिर जोड-तोड की राजनीति के चलते मंत्री  बनने में भी सफल  रहे हैं.प्रशासन तो दूर  की बात है,सामान्य शिष्टाचार का भी पालन न करते हुए अनर्गल प्रलाप करने और अनाप-शनाप बकने में भी इन्हें कोई परहेज नहीं है.पिछले  दिनों  इसकी कुछ बानगियाँ देखने में आई हैं जो नीचे दी गई हैं.

  •  उत्तर प्रदेश के एक मंत्री श्री अहमद हसन ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की  उपस्थिति में  निलम्बित  आई.ए.एस. दुर्गाशक्ति नागपाल  की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर प्रश्नचिह्न खडे किए और  कहा कि यदि वे उसके बारे में  बता देंगे तो दुर्गाशक्ति को समर्थन देने वाले लोगों को अपने  इस समर्थन पर  पश्चाताप होगा.(तथ्य यह है  कि दुर्गाशक्ति के पिता डिफेंस इस्टेट सेवा में अधिकारी थे और अपने कार्यों के लिए प्रेसीडेंट मेडल से सम्मानित हो चुके हैं और  उनके पितामह पुलिस अधिकारी थे जिन्होने अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए प्राण गंवाए थे. )
  • बिहार सरकार के एक मंत्री भीम सिंह ने कहा कि जो लोग सेना और पुलिस में जाते हैं,शहीद हो जाना  उनका पेशागत काम है.यह कोई बडी बात नहीं है और इसके लिए उनके दरवाजे जाया जाए यह जरूरी  नहीं है.  .
  • कर्नाटक के मांड्या लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवार राम्या के बारे में जनता दल एस नेता एम श्रीनिवास ने जो  दो बार एम.एल.ए. रह चुके हैं कहा कि वे टेस्ट  ट्यूब बेबी हैं,उनके पिता, जाति और मूलनिवास का पता नहीं है. उन्होने ऐसा कहते हुए इस बात की परवाह नहीं की कि राम्या के पालक पिता आर टी नारायन अभी कुछ दिन पहले ही दिवंगत हुए हैं और राम्या को अभी उससे उबरने का भी अवसर नहीं मिला है.   
         एक ओर तो हम भारतीय सिविल सर्विसेज जैसी  प्रतियोगिता का आयोजन कर अपने प्रशासनिक अधिकारियों को चुनते हैं  और दूसरी ओर उनकी देख- रेख करने के लिए ऊपर वर्णित नेताओं को चुनते हैं.इससे पूरी व्यवस्था का विकृत होना स्वाभाविक है.

          इसलिए  क्या यह उचित नहीं होगा कि हम दो व्यवस्थाएं करें-

1.प्रथम तो मंत्रियों का मानकीकरण करने  के लिए एक परीक्षा का आयोजन हो.इस परीक्षा के आयोजन के लिए एक समिति बनाई जाए जिसके अध्यक्ष राष्ट्रपति हों और प्रधानमंत्री,नेता विपक्षी दल ,लोकसभा अध्यक्ष ,राज्यसभा के सभापति तथा सभी राष्ट्रीय स्तर के मान्यताप्राप्त दलों के एक-एक प्रतिनिधि इसके सदस्य हों.इस समिति की एक परीक्षा आयोजन उपसमिति हो  जिसके अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सचिव यू.पी.एस.सी. के अध्यक्ष हों जो पारस्परिक सहमति से और मुख्य समिति के अनुमोदन से विभिन्न क्षेत्रों के ख्यातिलब्ध विद्वानों को पाठ्यक्रम तैयार करने तथा  परीक्षा की व्यवस्थाएं करने  के लिए नियुक्त करें.इसके तत्वावधान में प्रत्येक वर्ष मंत्री मानक परीक्षा  का आयोजन हो और जो भी एम.पी.,एम.एल.ए  मंत्री बनना चाहते हैं वे इस परीक्षा में बैठें और उसे उत्तीर्ण करें.परीक्षा उत्तीर्ण करने वालों को ही मंत्री बनाया जाए .यदि प्रधानमंत्री या कोई मुख्यमंत्री इनसे बाहर जाकर किसी का चयन मंत्री के रूप  में करना चाहते हैं तो उसके लिए राष्ट्रपति से (राज्यों के मामले में गवर्नर के माध्यम से)  विशेष अनुमति प्राप्त करें.

नोट-चूँकि मुझे विश्वास है कि राजनीतिक दल  इस प्रस्ताव से सहमत नहीं होंगे अत: कोई  आई.एस.ओ. जैसी संस्था निजी पहल कर बनाई जा सकती है  जो  इस प्रकार की परीक्षा का आयोजन करे और राजनीतिक दलों से अपने प्रतिनिधियों को परीक्षा में बैठने के लिए भेजने का आग्रह करे.जो भी राजनीतिज्ञ परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं उन्हें यह संस्था आई.एस.ओ. कि तरह प्रमाणपत्र  देकर मानकीकृत करे.अभी यह विचार किसी को अव्यवहारिक या हास्यापद लग सकता है,पर कार्यान्वित करने का प्रयास करने पर वैसे ही चल निकलेगा जैसे आई.एस.ओ. के प्रमाणन के लिए व्यवसायी संस्थाएं उत्सुक रहा करती हैं.

2.राजनीतिक नेताओं और एम.पी. तथा एम.एल.ए. के लिए विशेष प्रशिक्षण शिविरों का  आयोजन किया जाए जहाँ उन्हें सामान्य राजनीतिशास्त्र,प्रशासन और अर्थशास्त्र के अलावा सामान्य तथा राजनीतिक शिष्टाचार का प्रशिक्षण दिया जाए.

नोट-वैसे तो कुछ राजनीतिक दलों द्वारा प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जाता है पर इन्हें और उद्देश्यपरक बनाए जाने, इनमें शिष्ट राजनीतिक व्यवहार का आवश्यक तौर पर प्रशिक्षण दिए जाने, आयोजन नियमित रूप से किए जाने और सक्रिय कार्यकर्ताओं को इनमें अनिवार्यत: प्रशिक्षित किए जाने   की जरूरत है.

         

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