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सोमवार, 12 अगस्त 2013

टोपी पहनना और पहनाना कितना जरूरी?

          जब से शिवराज सिंह चौहान की नमाजी  टोपी पहने हुए और रजा मुराद से गले मिलते हुए फोटो अखबारों में छपी है,तरह- तरह  के कयास लगाए जा रहे हैं.हैं.कुछ लोगों का ख्याल बना कि यह शिवराज सिंह ने मोदी के मुकाबले खुद की उदार और सेक्यूलर छवि पेश करने के लिए किया जिन्होने सदभावना उपवास के दौरान एक मुस्लिम धर्मगुरु द्वारा  नमाजी टोपी पहनाए जाने का प्रयास करने पर इससे इंकार कर दिया था .रजा मुराद ने यहाँ तक कह डाला कि जिन मुख्यमंत्रियों को टोपी पहनने से इतराज है उन्हें शिवराज सिंह से सीख लेनी चाहिए. कुछ को ख्याल आया कि जैसे बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद आडवाणी की स्वीकार्यता का अभाव देखकर आर एस एस -बी जे पी  को अटलजी का नाम प्रधानमंत्री के रूप में आगे बढाना पडा वैसा ही कुछ मोदी और शिवराज सिंह के मामले में हो सकता है.आडवानी पहले ही शिवराज सिंह की तुलना अटलबिहारी से कर चुके हैं.

          पर इन सबसे  परे एक सवाल यह उठता है कि क्या मात्र नमाजी टोपी पहनने से कोई व्यक्ति उदार या सेक्यूलर हो जाता है और उसका  किया- धरा सब कुछ स्याह से सफेद हो जाता है . यदि ऐसा है तो आडवानी  की   मंदिर-मस्जिद संबंधी भूमिका पर  किसी  को ऐतराज नहीं होना चाहिए और उन्हे सेक्यूलर मानना चाहिए क्योंकि इफ्तार पार्टियों  में नमाजी टोपी लगाए हुए उनकी फोटो काफी पहले अखबारों में छप चुकी है. पंडित नेहरू नमाजी टोपी  पहनने की  कसौटी पर खरे न उतरने के कारण(उन्होने यह  टोपी कभी  नहीं पहनी) सेक्यूलर होने के इस मापदंड को पूरा नहीं करते ,जबकि उनकी धर्मनिरपेक्षता पर कोई भी प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकता. जिन  समुदायों के वोट अधिक नहीं हैं या फिर जो समुदाय टैक्टिकल वोटिंग नहीं करते यथा पारसी  अथवा यहूदी ,उनके द्वारा धार्मिक प्रयोजनों या अन्य अवसरों पर पहनी जाने वाली   टोपी  पहन कर  यह नेतागण फोटो क्यों नहीं खिंचवाते.  जिन्होने मैकियावेली को पढा है उन्हे मालूम होगा कि मैकियावेली का कहना है  कि खास समुदाय का समर्थन पाने के के लिए उनके पूजा स्थलों पर जाकर श्रद्धा भाव प्रकट करना चाहिए और उनके जैसी ही  वेश-भूषा पहननी चाहिए.तो हमारे अधिकांश राजनीतिज्ञ जो टोपी लगा कर फोटो खिंचवाते हैं, इसी मैकियावेलियन प्रयास में लगे हुए हैं और ऐसा कर जनता को ही टोपी पहनाने में लगे हुए हैं .  अपने इसी तरह के एक प्रयास के तहत जिन्ना की मजार पर जाकर खिराज-ए-अकीदत  पेश करते हुए आडवानी ने उन्हे सेक्यूलर होने का प्रमाणपत्र देकर अपना पूरा राजनीतिक कैरियर चौपट कर लिया. ऐसे राजनीतिज्ञों से मोदी कम  से कम इस मायने में सच्चे हैं कि वे अपनी असलियत को छिपाने का प्रयास नहीं करते.

          बहुत पहले मेरा एक मित्र मुझे गुरुद्वारे ले गया.तब मैं पहली बार गुरूद्वारे गया था.उस मित्र के कहने पर मैंने अपना सर  रूमाल से ढंक लिया था.गुरुद्वारे में सर ढंकना  आवश्यक है ऐसा उसने मुझे बताया था .मैं ऐसे कुछ मुस्लिमजन को भी जानता हूँ जिन्होने हिंदू मित्रों के  साथ  किसी  पूजा में शामिल होने पर या मंदिर में जाने पर तिलक भी लगवाया और प्रसाद ग्रहण किया.पर इस सबके पीछे मित्र के समुदाय का आदर करने की भावना थी.इसके पीछे वोट पाने  जैसा कोई लालच नहीं था .इसलिए वोट पाने की मंशा से पहनी गई टोपी के पीछे छिपे असली भाव को जनता को समझना चाहिए और ऐसा  करने वालों के वास्तविक कृतित्व के आधार पर ही उनके विषय  में कोई धारणा बनानी चाहिए.

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