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बुधवार, 7 अगस्त 2013

पाँच और शहीदों के ताबूत (कविता)

पाँच और शहीदों के ताबूत

वो आ रहे हैं पाँच ताबूत सैनिकों की शहादत याद दिलाने
वतनपरस्ती,खुद्दारी,बहादुरी और जाँबाजी की कहानी बताने   
विस्मृत होती जा रही  थी छवि सर कटाने वाले हेमराज की 
फिर  से  सामने  आए देश  की  आन  पर  सर दे देने वाले.

शरीफ साहब की बार-बार दोस्ती की पुकार है
कितनी असली या नकली, यह उनके दिल का राज है
खुदा जाने पाक और फौज में कितना उनका इकबाल है
जब भी सत्ता में आते हैं,कुछ न कुछ घट  जाता  है
चाहे कारगिल,बटालिक,द्रास हो या सेक्टर  पुंछ  हो
चाहे हों अटल बिहारी या फिर मनमोहन सिंह हों
दोस्ती का हौसला पस्त हो जाता है,
मित्रता का इरादा अस्त हो जाता है.

राहुल बेहाल हैं,सोनिया अवाक हैं
प्रधानमंत्री के रूप में सामने  ढाल है
दोनों ने कहा मामले को पाक के साथ
उच्च स्तर पर उठाने की दरकार है
सोनिया ने कहा भडकाऊ कार्रवाई - हम अदम्य हैं
सैनिकों की प्रवंचनापूर्ण, बर्बर हत्या अक्षम्य है
पर उनके द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री मौन हैं
नक्कारखाने में तूती की आवाज सुनता भी कौन है
हो अमन-चैन और पाक के साथ दोस्ती यह उनका सपना है
दोस्ती के अभियान में खलल पडा यही दुख उनका अपना है

हत्यारे थे आतंकी और साथ थे पाक सैनिकों से दिखते वर्दीधारी
यह कर रहे हमारे रक्षामंत्री श्रीमान ए के एंटोनी हैं
पर इसके पीछे पाक  सेना की कारस्तानी है
यह कहने में जैसे जुबान मौन साध जाती है
पाक से दोस्ती का खयाल दिल में रहता इतना है
उसकी बात पर कोई असर न पडे यही चिंता है
कितने नागरिक आतंक का शिकार हुए यह कोई न गिनता है
कितने सैनिक खेत रहे यह कोई नहीं देखता है.

पाक चिकने घडे सा जिस पर नहीं कोई प्रभाव है
सामान्य शालीनता का भी दुष्ट में अभाव है
फायरिंग कोई हुई नहीं कह, रहा वो धिक्कार है
हमारे शहीदों का इस तरह कर रहा अपमान है
झूठा और मनगढंत आरोप बता रहा वो ललकार है
उनकी शहादत को बार-बार रहा नकार है.

इस देश में एक जवान की जान सस्ती है
एक आई.ए.एस.अधिकारी की आन सस्ती है
गरीब की परिभाषा रोज बदल सकती है
इस देश में सिर्फ नेताओं की मस्ती है
नेताओं को छोड यहाँ और कौन बेशकीमती है
जिन्हे बचाने के लिए सुरक्षा गारद साथ घूमती है
भेडिए भी साधुवेष धारण कर पहन लेते हैं खादी
इन दिनों उन्हें भी सुरक्षा मुहैया होती है.

वह देखो आ गए हैं पाँच और शहीदों के ताबूत
हाहाकार करो, दाँत कसमसाओ और पिओ खून के घूँट
चुने स्थान और समय पर बदले  का  वादा हम  गए  थे  भूल
शत्रु ने मौका देख हमारे सीने में फिर से उतार दिया शूल
                                                                    -संजय त्रिपाठी






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