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सोमवार, 29 जुलाई 2013

टंच,चक्कू और छप्पन छूरी! (व्यंग्य /Satire)

          दिग्विजय सिंह की टंच माल संबंधी टिप्पणी पढ कर बहुत पहले कहीं पढी एक घटना  याद  आ गई है.सुप्रसिद्ध रूसी हिंदी  विद्वान चेलिशेव उन दिनों प्रयाग- प्रवास कर अपनी हिंदी को पुख्ता करने का प्रयास कर रहे थे.उनके  पास एक डायरी और कलम सदैव रहती थी और वे जब भी कोई नया हिंदी शब्द या वाक्यांश सुनते जो  उनकी समझ से परे होता तो उसे अपनी डायरी में नोट कर लेते और किसी साथी विद्वान से मिल कर उसका अर्थ पूछते. एक दिन वे किसी पान की दूकान के पास से गुजर रहे थे तभी खूब सजी- धजी सी नवयौवना जाती हुई दिखाई दी. जब वह  पान की दूकान के बगल से निकलने लगी वहाँ खडा कोई मनचला जोर  से चिल्लाया-"जियो राजा चक्कू"!चेलिशेव के लिए जो किताबी ज्ञान प्राप्त करने के बाद हिंदी का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने में लगे हुए थे,यह  वाक्यांश बिल्कुल नया था जिसका अर्थ वे नही समझ सके.उन्होने उसे  अपनी डायरी में नोट कर लिया.इसके बाद उन्होने कुछ विद्वानों से उसका तात्पर्य पूछा पर उनके द्वारा बताए गए  उत्तर भी घुमावदार थे   जिनसे चेलिशेव संतुष्ट नहीं हो पाए.किसी ने चेलिशेव को अर्थ समझने के लिए फिराक गोरखपुरी के पास भेज दिया .फिराक ने चेलिशेव को अर्थ तो  समझा दिया पर उस अर्थ को सुनकर चेलिशेव बेचारे शर्म से लाल हो गए.

          दिग्विजय सिंह की टिप्पणी के बाद लगता है हमारे नेतागण जल्दी ही लोगों के गुणों का बखान करने  के लिए 'चक्कू'और 'छप्पन छूरी' जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल करेंगे जिन्हें सुनकर चेलिशेव सदृश विदेशी हिंदी विद्वानों को लगेगा कि उनका हिंदी का ज्ञान अधकचरा है और वे दोबारा अपना हिंदी ज्ञान ठीक करने के लिए भारतवर्ष की  यात्रा  करने के लिए मजबूर हो जाएंगे.फिराक गोरखपुरी तो अब रहे नहीं, इसलिए इन विदेशी विद्वानों को इनका ठीक अर्थ समझने के लिए दिग्गी राजा के पास ही जाना पडेगा जो कन्टेक्स्ट को देखते हुए शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करने तथा उनका अर्थ समझाने में इतनी महारत हासिल कर चुके हैं कि लोग कंटेक्स्ट को देखते हुए 'टंच माल' बनने और कहलाने के लिए भी बिना किसी एतराज के राजी  हैं .

           हमारे नेताओं की भाषा देखकर लगता है कि आम  जनता का ही कंटेक्स्ट सही नहीं है और वह नाहक ही महिलाओं के साथ होने वाले अभद्र व्यवहार,अपराध और ज्यादतियों को लेकर हल्ला-गुल्ला मचाती रहती है.आखिर इस तरह की घटनाएं उनके द्वारा बताए गए कंटेक्स्ट का ही विस्तार हैं.विदेशी भले ही हमारी भाषा सुनकर शर्माएं और शर्म से लाल  हो जाएं ;पर हम  काले हैं तो क्या हुआ  दिलवाले तो हैं का गान करते हुए सही कंटेक्स्ट में चीजों को समझने की और उनकी व्याख्या करने की कोशिश में लगे रहेंगे.चलिए  हम सब अपने-अपने शब्दकोष अपने ढंग से बनाने और शब्दों के अर्थ अपने कंटेक्स्ट के हिसाब से निकालने और हिंदी के शब्द-भंडार को समृद्ध बनाने में लग जाएं.


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