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मंगलवार, 7 मई 2013

ये लो कहाँ आ गए हम-भारतीय राजनीति में निर्लज्जता की नई पराकाष्ठा!

      हमारे एक  रेलमंत्री लालबहादुर शास्त्री थे जिन्होने रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी स्वयं पर लेते हुए त्यागपत्र दे दिया था और एक हमारे वर्तमान रेलमंत्री हैं जिनकी छत्रछाया में एक सदस्य रेलवे बोर्ड की नियुक्ति हुई और इसके लिए उनके भांजे-भतीजे ने दो करोड रूपयों का सौदा किया जिसकी पहली नब्बे लाख रूपयों की नकद किस्त की रंगे  हाथों बरामदगी हुई,लेकिन  साहब उनकी कोई जिम्मेदारी नही बनती है !.घरवाले,रिश्तेदार,दोस्त-अहबाब,राजनीतिक एजेण्ट राजनीतिज्ञों के नाम पर जो चाहे करें,जिससे जितने चाहे रूपए लें ,दस-दस करोड तक की माँग करें पर साहब नेताजी की कोई जिम्मेदारी नही है!नेताजी जो नेताजी ठहरे!नैतिकता की सारी  सीमाओं से परे!उनका दर्जा अब भगवान का हो गया है.उनके प्रति सिर्फ श्रद्धा रखनी  चाहिए.उन पर किसी भी प्रकार का प्रश्नचिह्न लगाना पाप है.राम-राम!ऐसा पाप मत करना.इसीलिए तो साहब पूरी  पार्टी पूरी ताकत से एक तथाकथित ईमानदार प्रधानमंत्री के नेतृत्व में उनके पीछे खडी है.बेवकूफ थे  के डी मालवीय, बूटासिंह और बंगारू लक्ष्मण  जिन्होने इस्तीफा  दिया था  और जिन्होने  उन्हे इस्तीफा दिलवाया था वह भी छोटी रकमों के लिए.

        कालिख धोने का हक सबको है तो फिर  सरकार को क्यों नही. सी बी आई हमारी नौकर है,हमने  रिपोर्ट बदलवाई तो क्या?हम कालिख न धोएं क्या?हमारे प्रधानमंत्री ईमानदार हैं,इसलिए ईमानदारी का तमगा हमारे पास है.परदे के पीछे हम जो चाहे वह करें,अगर परदा खुल भी गया तो क्या!नया जमाना आ गया है साहब!अब लोग नई तरह की फिल्में,नए तरह के  नाटक देखना पसंद करते हैं.मल्लिका शेरावत और सनी लियोन को भूल गए क्या? अरे साहब वह तो पी एम ओ के एक अदने अधिकारी ने रिपोर्ट देखी थी और व्याकरण की त्रुटियों को सुधारने के निर्देश दिए थे.कानूनमंत्री,सॉलिसिटर जनरल सब तो यही कर रहे  थे,व्याकरण संबंधी  त्रुटियाँ ठीक करवा रहे थे.यह सरकार व्याकरण का विशेष ख्याल रखती है.इस देश का और कुछ बुलंदियों पर पहुँचे न पहुँचे ,अपनी भाषाई सतर्कता के चलते यह सरकार भाषा को जरूर नई  ऊँचाइयों पर पहुँचा देगी.भाषा को ऐसा बना देगी जो जनता की समझ से परे हो.भूल जाओ अब्राहम लिंकन को.यह जनता का शासन जनता के द्वारा जनता के लिए नही है.अब तो जनता के द्वारा जनता के शोषण के लिए देश को लूटने का अरमान रखने वालों का शासन है. फिर   जनता ने मालिक बनाया है पूरे पाँच साल के लिए,हम इसी प्रकार पुरजोर सेवा करेंगे जनता की.भला  सेवा करने के लिए भी इस्तीफा देना पडता है क्या?सेवा करने से तो मेवा मिलता है,यह इस देश की  पुरानी कहावत है,फिर हम क्यों न  खाएं मेवा !

       हम्माम में नंगे वह भी  हैं, हम  भी हैं.हम नागनाथ हैं तो वह  साँपनाथ हैं, इसलिए जनता को तो हममें से ही एक को चुनना है. हम नही तो वह सही,वह नही तो हम सही.देख लो कर्नाटक  में हम वापस आ रहे हैं .काटजू साहब ने कुछ दिनों पहले बताया ही है कि इस देश की अधिकांश जनता क्या है.इसलिए हमारा खेल बंद होने वाला नही है,यह चलता ही रहेगा.जाति और धर्म के नाम पर  लोगों को बाँटकर हम थोक में वोट पाते रहेंगे,चिल्लाने वालों चिल्लाते रहो तुम सब!


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