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मंगलवार, 19 मार्च 2013

तत्वज्ञान- रेलयात्रा के दौरान (लघुकथा-संस्मरण पर आधारित)

           आज से लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व की बात होगी.मैं अपनी कॉलेज शिक्षा समाप्त करने के उपरांत प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था तथा फैजाबाद से, जहाँ मेरे पिताजी उन दिनों नौकरी के सिलसिले में तैनात थे,प्राय: लखनऊ जाया करता था.ऐसे ही अपने एक सफर के लिए जब मैं फैजाबाद  रेलवे-स्टेशन पहुँचा तो पता चला कि लखनऊ के लिए दून एक्सप्रेस आने वाली है.मैंने थोडी देर इंतजार  किया और जब दून एक्सप्रेस आ गई तो उसके एक जनरल डिब्बे में  दाखिल हो गया.डिब्बे में मैंने इधर-उधर निगाह घुमाई तो एक तरफ खाली जगह नजर आई.मैं उस तरफ जाकर खाली पडी जगह पर बैठ गया.मेरे बगल में एक नौजवान बैठा हुआ था और सामने की सीट पर, खिडकी के बगल एक बुर्कापोश मोहतरमा बैठी हुई थीं. थोडी देर के बाद के बाद किसी स्टेशन पर एक व्यक्ति और चढा तथा उन मोहतरमा के बगल पडे खाली स्थान पर बैठ गया.कुछ देर में इस नए यात्री ने अपनी जेब से एक सिगरेट निकाली और सुलगा ली.कुछ देर के बाद मैंने देखा कि वह नौजवान अपने स्थान से उठा और मोहतरमा के बगल की खिडकी जो शायद परदा करने के  लिहाज से या अन्य किसी वजह से बंद कर दी  गई थी,खोल दी.नए यात्री ने अपनी एक सिगरेट खत्म करने के बाद दूसरी सिगरेट निकाली और सुलगा ली.अब नौजवान उसकी तरफ मुखातिब हुआ तथा नफीस अंदाज में उससे बोला-"आप जरा मेहरबानी कर सिगरेट दूसरी तरफ जाकर पी लेंगे.सिगरेट पीने के बाद फिर यहाँ आकर बैठ जाइएगा".इस पर दूसरा यात्री खडा हो गया,उसने डिब्बे में इधर-उधर नजर डाली तथा थोडा आगे खिडकी  के किनारे एक अकेली सीट देख कर वहाँ चला गया.उस नौजवान का तौर-तरीका मुझे पसंद  आया. आगे  रुदौली स्टेशन आया .यहाँ पर डिब्बे में एक मौलाना साहब चढे जो लहीमोशहीम व्यक्तित्व के स्वामी थे. काली टोपी एवं शेरवानी तथा लहराती हुई दाढी उनके इस व्यक्तित्व में चार चाँद लगा रहे  थे. मौलाना साहब ने    भी डिब्बे में नजर घुमाई तथा नौजवान के सामने खाली जगह देख कर वहाँ आकर बैठ गए.थोडी देर में मौलाना साहब ने नौजवान से बातेँ शुरू कर दीं-"कहाँ जा रहे हैं ?"
"लखनऊ"नौजवान ने उत्तर दिया.
"क्या किसी खास मकसद से जा रहे हैं"
"हाँ,सामने मेरी बहन बैठी हैं.इन्हें मेडिकल कॉलेज में दिखाने के लिए ले जा रहा हूँ"
"क्या इनकी तबियत नासाज है?"
"हाँ,इनका इलाज अकबरपुर में चल रहा था.पर फायदा नहीं हुआ.वहाँ अस्पताल में दिखाने पर उन्होने मेडिकल कॉलेज में दिखाने के लिए कहा है."
"अच्छा,तो आप अकबरपुर में रहते हैं"
"नहीं,मैं रहता तो दिल्ली में हूँ.पर हॉं,मेरा घर अकबरपुर में है.मैं इन दिनों छुट्टी पर आया हूँ."
"अच्छा तो आप दिल्ली में नौकरी करते हैं"
"हॉं,मैं प्लानिंग कमीशन में हूँ."
"आप क्या हैं वहाँ पर?"
"मैं इंजीनियर हूँ."
"साहबजादे! आपने अपना नाम नहीं बताया"
"अशरफ"(काल्पनिक नाम,वास्तविक नाम मुझे भूल चुका है)

              अब मौलाना साहब ने स्वत: अपना परिचय देना शुरू कर  दिया.उन्होने बताया कि वे रहने वाले रुदौली के थे और लखनऊ में सेल्स टैक्स विभाग में नौकरी करते थे.
"अच्छा तो आप सेल्स टैक्स में हैं"नौजवान ने टिप्पणी की.
"श्री.....'क' (काल्पनिक नाम),लखनऊ में सेल्स टैक्स कमिश्नर  हैं न"नौजवान ने पूछा.
"हॉं-हॉं,तुम उन्हे जानते हो"
"मेरे कुछ साथी सेल्स टैक्स डिपार्टमेंट  में डाइरेक्ट पी सी एस ऑफीसर हैं जो मेरे साथ इलाहाबाद युनिवर्सिटी में पढते थे.उन्होने उनके  साथ काम किया है"
" नेक आदमी हैँ मेरा उनके साथ खास अपनापन है. "
"पर मेरे साथी बताते हैँ कि वे बडे भ्रष्ट अधिकारी हैं"
" ऐसा कुछ नहीं है, 'क' साहब भले आदमी हैं  "
              पर नौजवान 'क' साहब के सारे कारनामों से परिचित था.उसने उनकी गतिविधियों का ब्यौरा  देना शुरू कर दिया.मौलाना साहब के पास उसकी बातोँ का जवाब नहीं था.जैसे-जैसे मौलाना साहब श्री 'क' के बचाव में उतरते  नौजवान उनकी  करतूतों का और प्रामाणिक वर्णन प्रस्तुत करता.आखिरकार मौलाना साहब ने हार मानते हुए अपने दोनों हाथ नौजवान के दोनों गालों पर लगाए और कहा-"बेटा ये बताओ कि कौन ये सब नहीं करता.तुम इस तरह की बात,सच्चाई  की ये तरफदारी इसलिए कर रहे हो क्योंकि तुम्हें वह चीज मिली है जो सबको नहीं मिलती,और वह चीज है -इस्लामी तालीम"
            अब नौजवान और मौलाना साहब की बातों का रुख दूसरी तरफ मुड गया.नौजवान ने कहा-"देखिए मै जो बात कह रहा हूँ वह किसी एक धर्म या किसी खास मजहब की नहीं है.ईमानदारी और सच्चाई की बात तो हर धर्म और हर मजहब करता है,वह चाहे हिंदू धर्म हो या इस्लाम या फिर क्रिश्चियनिटी  या भले ही  कोई और मजहब हो."
"पर तुम्हे तो खुदापरस्ती  इस्लाम से ही मिली है."
"देखिए मैं इस्लाम और दूसरे धर्मों में कोई बुनियादी फर्क नहीं पाता हूँ. GOD के तीनों अक्षर G,O एवं D हिंदू धर्म में जिसे ब्रह्मा,विष्णु,महेश कहा गया है उसे ही रिप्रेजेंट करते हैं-Generator,Operator एवं Destroyer के तौर पर, वही इस्लाम में खालिक,खलक और राकिब है{यहाँ मुझे लगता है कि नौजवान को  खालिक (ईश्वर),खल्लाक(सृष्टिकर्ता) और राजिक(अन्नदाता,पालनकर्ता) अथवा राहिम(दयालु)  शब्दों का प्रयोग करना चहिए था,पर मैंने वही शब्द लिखे हैं  जो उसने कहे थे}..गीता में सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में जाने की बात कही गई है,इस्लाम या क्रिश्चियनिटी भी तो यही कहते हैँ.मैं रामकृष्ण मिशन के आश्रम मेँ भी जाता हूँ.वहाँ वे योग से ईश्वर तक जाने का रास्ता बताते हैं.हम जो नमाज पढते हैं वह भी तो एक तरह का योग ही है.गीता कर्म करने की बात कहती है और कुरान भी.मुझे चरैवेति-चरैवेति की बात बहुत पसंद है और मैं इस्लाम से किसी भी प्रकार से इसका विरोधाभास नहीं पाता हूँ"
            मौलाना साहब चुपचाप नौजवान की बात सुनते रहे  और मैं उसकी बातें सुनकर सोच रहा था कि काश हमारे देश का हर नौजवान इसी प्रकार देश की तरक्की और खुशहाली ,भ्रष्टाचार के विरोध तथा साम्प्रदायिक सौहार्द्र की बात सोचता.खैर, अब तक लखनऊ नजदीक आ गया था और हम सब  उतरने की तैयारी करने लगे.



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